बीजेपी सांसद और सरकार की बनाई एक उच्चस्तरीय कमेटी के अध्यक्ष शांताकुमार ने गुरुवार को कहा कि उनकी पार्टी ने वर्ष 2013 में पास हुए यूपीए सरकार के खाद्य सुरक्षा बिल का विरोध पहले इसलिए नहीं किया, क्योंकि तब चुनाव में पार्टी को इसका नुकसान हो सकता था। शांताकुमार ने कहा, 'हमारी पार्टी में इस बात का चिंतन था कि अगर हम इस बिल का विरोध करेंगे तो हमारे विपक्षी इसका हमारे खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हैं... हमें पता था कि हमारी सरकार आ रही है... सरकार बनेगी तो इसमें बदलाव करवा लेंगे...'
अब केंद्र में नई सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री को दी अपनी रिपोर्ट में शांताकुमार कमेटी ने फूड सिक्योरिटी बिल में कुछ बदलावों के सुझाव दिए हैं, जिनके तहत...
- खाद्य बिल की कवरेज को औसतन 67 फीसदी से घटाकर 40 फीसदी करने की बात कही गई है, लेकिन प्रति व्यक्ति अनाज का मासिक कोटा पांच किलो प्रति व्यक्ति से बढ़ाकर सात किलो करने को कहा गया है...
- कमेटी यह भी कहती है कि किसानों और उपभोक्ताओं को सब्सिडी की जगह कैश ट्रांसफर करना बेहतर होगा...
शांताकुमार ने मीडिया से कहा कि उनके सुझावों से सब्सिडी का फायदा ज़रूरतमंदों को मिलेगा, भ्रष्टाचार पर काबू होगा और लीकेज कम होगी। हालांकि इस कमेटी की सिफारिशों की आलोचना हो रही है। सवाल उठ रहा है कि कमेटी का काम फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को दुरस्त करने और उसकी कार्यप्रणाली में बदलाव के लिए सुझाव देना था या फिर उसे फूड सिक्योरिटी बिल को लेकर ये सुझाव देने का भी अधिकार था। कमेटी के सदस्य अशोक गुलाटी ने कहा कि समिति ने खाद्य से जुड़े तमाम मामलों पर रिव्यू किया है और फूड बिल इसी से जुड़ा मामला है।
उधर कांग्रेस ने शांताकुमार कमेटी की सिफारिशों की कड़ी निंदा की है। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, 'भाजपा की शांताकुमार कमेटी की खाद्य सुरक्षा कानून को 67 प्रतिशत कवरेज से घटाकर 40 प्रतिशत करना देश के गरीब के खिलाफ नरेंद्र मोदी और भाजपा की घिनौनी साजिश है... गरीब के पेट पर लात मारकर और उसके मुंह से निवाला छीनकर यह सरकार यह साबित कर रही है कि वह मन और अंतःकरण से गरीब-विरोधी और धनपतियों की सरकार है... शांताकुमार जी का यह कहना कि भाजपा इस बिल की 67 फीसदी कवरेज के खिलाफ थी और उसने चुनाव तक चुप रहने का मन बनाया था, यह भाजपा की अवसरवादिया और राजनीतिक बेईमानी को दिखाता है...'
अर्थशास्त्री और आईआईटी दिल्ली में प्रोफेसर ऋतिका खेरा ने फूड सिक्योरिटी बिल के तहत कवरेज घटाने और अनाज की जगह कैश ट्रांसफर की सिफारिश का विरोध किया है। खेरा ने एनडीटीवी से कहा, 'कई राज्यों में राशन वितरण प्रणाली सुधर रही है और लीकेज कम हो रहा है... ऐसे में पीडीएस सिस्टम को मज़बूत करने की कोशिश की जानी चाहिए... फूड सिक्योरिटी के तहत लोगों की कवरेज कम करने से भ्रष्टाचार कैसे कम होगा...?'
खेरा ने इन सिफारिशों को जनविरोधी बताते हुए कहा, 'अगर कोयले में या 2-जी या 3-जी स्पेक्ट्रम के वितरण में भ्रष्टाचार होता है और हम कहें कि इन मंत्रालयों के बजट में कटौती कर देनी चाहिए तो लोग कहेंगे कि हम मूर्ख अर्थशास्त्री हैं, लेकिन लोगों को मिलने वाले अधिकार पर कटौती होती है और उसका बजट कम किया जाता है तो कोई उसका विरोध नहीं करता...'
शांताकुमार कमेटी ने बुधवार को प्रधानमंत्री को अपनी रिपोर्ट दी, जिस पर सरकार को फैसला करना है। अगर सरकार ने ये सिफारिशें मानीं तो साल भर के अंदर ज़मीन अधिग्रहण कानून के बाद नई सरकार दूसरे बड़े कानून में बदलाव करेगी।
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