
- उत्तराखंड सरकार ने सरकारी कर्मियों के लिए पांच हजार रुपये से अधिक की किसी भी खरीद के लिए विभागाध्यक्ष से अनुमति अनिवार्य कर दी है.
- सरकारी कर्मचारियों को अब बच्चों के कपड़े या पत्नी के लिए साड़ी जैसी सामान्य वस्तुएं खरीदने के लिए भी अनुमति लेनी होगी.
- एसटी-एससी एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष करम राम ने इस आदेश को हास्यास्पद बताया और इसकी सीमा एक लाख रुपये करने की मांग की.
Uttarakhand govt Order: पत्नी के लिए साड़ी खरीदनी हो या बच्चे के लिए कपड़े... उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी 5 हजार से ऊपर की कोई खरीदारी करता है तो उसे अपने विभागाध्यक्ष से इसकी अनुमति लेनी होगी. इस अजब-गजब आदेश के लिए बाकायदा सरकारी आदेश भी जारी किया है. आदेश में लिखा गया है कि "कोई सरकारी कर्मचारी जो अपने एक महीने के वेतन अथवा 5,000 रुपए, जो भी कम हो, से अधिक मूल्य की किसी चल सम्पत्ति के संबंध में क्रय-विक्रय के रूप में या अन्य प्रकार से कोई व्यवहार करता है, तो ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट तुरन्त समुचित प्राधिकारी को करेगा."
5 हजार से ऊपर की खरीदारी पर लेनी होगी अनुमति
जैसा कि आदेश में लिखा हुआ है उसके हिसाब से अब वो न तो बच्चों के कपड़े खरीद पाएंगे और ना ही पत्नी के लिए साड़ी. पत्नी के लिए आभूषण हो या फिर बच्चों के लिए लैपटॉप, घर के लिए एसी हो या फिर कूलर... इन सभी चीजों को खरीदने और बेचने के लिए सबसे पहले अपने विभागाध्यक्ष या फिर सचिवालय के कर्मचारियों को सचिव सचिवालय प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ेगी.

देखें सरकारी आदेश में क्या कुछ लिखा है.
सरकारी आदेश से कर्मचारियों में नाराजगी
इस आदेश को लेकर कर्मचारियों में नाराजगी है. उत्तराखंड एसटी-एससी एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष करम राम का कहना है कि यह आदेश हास्यास्पद है. इस आदेश को सरकार को वापस लेना चाहिए. करम राम ने बताया कि आज के महंगाई के दौर में 10 तरह के टैक्स लगते हैं. बच्चों के लिए पत्नी के लिए जो भी सामान खरीदने जाएंगे तो वह 5 हजार से कम का नहीं आएगा.
फेडरेशन के अध्यक्ष ने कहा कि अब बीवी के लिए अगर साड़ी लेनी हो तो उसके लिए भी क्या विभागाध्यक्ष से अनुमति लेनी होगी? बच्चों के लिए कपड़े हैं वह भी खरीदने के लिए क्या अनुमति लेनी होगी.
एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष बोले- एक लाख होनी चाहिए लिमिट
उत्तराखंड एसटी एससी एम्पलाइज फेडरेशन के अध्यक्ष करम राम कहते हैं कि अगर यह आदेश राज्य के मुख्य सचिव ने जारी किया है इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस तरह का आदेश जारी करने से पहले कर्मचारी संगठनों या उनके प्रतिनिधियों से बातचीत करनी चाहिए थी. उनका मानना है कि कम से कम इसकी लिमिट 5 हजार रुपये नहीं होनी चाहिए इसकी लिमिट 1 लाख रुपये होनी चाहिए.
प्लॉट, वाहन की खरीदारी पर पहले भी देनी होती थी जानकारी
कर्मचारियों का कहना है कि कर्मचारी आचरण नियमावली में अगर उनको प्लॉट या कोई वाहन खरीदना हो तो उसकी जानकारी और अनुमति वे पहले विभाग अध्यक्ष से लेते थे. लेकिन अब हर महीने 5000 से अधिक की जो भी चल संपत्ति खरीदने के लिए उनको अपने विभागाध्यक्ष से अनुमति लेनी पड़ेगी, इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों को अपना साल भर का चल और अचल संपत्ति का हिसाब देना पड़ता था.
जानिए क्या होती है चल और अचल संपत्ति
- चल सम्पति का मतलब है ऐसी संपत्ति जिसे एक-जगह से दूसरे जगह पर आसानी से ले जाया जा सके. जैसे- आभूषण, लैपटॉप, पंखा, वाहन और अन्य.
- अचल संपत्ति वैसी संपत्ति जो एक जगह से दूसरी जगह पर नहीं ले जाई जा सकता है उसे अचल संपत्ति कहते हैं, जैसे- घर, कारखाना, प्लॉट.
2002 में बनी थी नियमावली
सरकारी कर्मचारियों द्वारा चल, अचल तथा बहुमूल्य संपत्ति की खरीद-फरोख्त को लेकर वर्ष 2002 में बनाई गई राज्य कर्मचारियों की आचरण नियमावली को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए हैं. आचरण नियमावली कहती है-
आचरण नियमावली के नियम 22 के अन्तर्गत कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जब कि समुचित प्राधिकारी को इसकी पूर्व जानकारी हो, या तो स्वयं अपने नाम से या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम से, पट्टा, रेहन, क्रय, विक्रय या भेंट द्वारा या 'अन्यथा, न तो कोई अचल सम्पत्ति अर्जित करेगा और न उसे बेचेगा.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं