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This Article is From Nov 04, 2015

बलात्कार के बाद पैदा हुई संतान जैविक पिता की सम्पत्ति में हकदार : अदालत

बलात्कार के बाद पैदा हुई संतान जैविक पिता की सम्पत्ति में हकदार : अदालत
सांकेतिक तस्वीर
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था देते हुए कहा है कि बलात्कार के परिणामस्वरूप पैदा हुई संतान का अपने असल पिता (बलात्कारी) की जायदाद में वारिस के तौर पर हक होगा।

न्यायमूर्ति शबीहुल हसनैन तथा न्यायमूर्ति डी.के. उपाध्याय की पीठ ने मंगलवार को यह अहम फैसला देते हुए कहा कि बलात्कार के कारण जन्मी संतान को दुराचार के अभियुक्त की नाजायज औलाद माना जाएगा और उसका उसकी सम्पत्ति पर हक होगा।

हालांकि न्यायालय ने यह भी कहा है कि अगर ऐसे बच्चे को किसी और व्यक्ति या दम्पति द्वारा बाकायदा गोद ले लिया जाता है तो उसका अपने असल पिता की सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं रह जाएगा।

अदालत ने कहा 'हम यह मान सकते हैं कि जहां तक उत्तराधिकार का मामला है तो सम्बन्धित संतान का जन्म किन परिस्थितियों में हुआ, यह मायने नहीं रखता। उत्तराधिकार का मसला सम्बन्धित पर्सनल लॉ से तय होता है। यह बात अप्रासंगिक है कि नवजात शिशु बलात्कार का नतीजा है या फिर आपसी सहमति से बने यौन सम्बन्धों का परिणाम है।'

न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर बलात्कार के कारण जन्मी औलाद को कोई व्यक्ति या दम्पति गोद नहीं लेता है तो उत्तराधिकार के लिए उसे अदालत के किसी निर्देश की जरूरत नहीं होगी और वह सम्बन्धित पर्सनल लॉ के जरिए अपने असल पिता की सम्पत्ति में हिस्सा पाने की हकदार होगा।

पीठ ने कहा कि असल पिता की सम्पत्ति पर वारिस के तौर पर हक का मामला जटिल पर्सनल लॉ से जुड़ा है जो या तो कानून या परम्परा से संचालित होता है। न्यायपालिका के लिए बलात्कार के नतीजे में पैदा हुई औलाद के लिए वारिस के तौर पर हक से सम्बन्धित कोई सिद्धान्त या नियम तय करना सम्भव नहीं होगा।

अदालत ने कहा कि न्यायालय का ऐसा कोई भी कदम कानूनी शक्ल पा जाएगा और उसे भविष्य में निर्णयों के लिए उद्धत किया जाएगा, लिहाजा ऐसा कुछ करना उचित नहीं होगा।

अदालत ने यह आदेश एक बलात्कार पीड़ित 13 वर्षीय लड़की के बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी चाइल्ड वेलफेयर सोसाइटी को सौंपते हुए दिया। याची ने अदालत से अपने अच्छे भविष्य की व्यवस्था तथा उसके बच्चे को गोद देने की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश देने का आग्रह किया था। याची का कहना है कि वह तथा उसका पिता नवजात बच्चे को अपने साथ रखने को तैयार नहीं है।

अदालत ने राज्य सरकार को दुष्कर्म पीड़ित लड़की को स्नातक तक मुफ्त शिक्षा दिलाने तथा पहले से मिले तीन लाख रुपये के अलावा 10 लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा है कि इन रुपयों को किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट किया जाए। लड़की जब 21 साल की हो जाएगी तब वह पूरी धनराशि की हकदार होगी। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए हैं कि राज्य सरकार बलात्कार पीड़िता की पढ़ाई पूरी होने के बाद उसे नौकरी भी देगी।

कोर्ट ने बलात्कार पीड़ित के नवजात बच्चे की अस्पताल में समुचित देखभाल के निर्देश भी दिए हैं। चाइल्ड वेलफेयर सोसाइटी न्याय मित्र की निगरानी में उसे गोद देने की प्रक्रिया पूरी करेगी।

गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली 13 वर्षीय लड़की इस साल के शुरू में बलात्कार के कारण गर्भवती हो गई थी। परिजन को करीब सात महीने बाद इस बारे में पता लगा था, लेकिन तब तक सुरक्षित गर्भपात के लिए निर्धारित अधिकत्तम 21 हफ्तों का वक्त बीत चुका था। ऐसे में लड़की के परिजन ने गर्भपात की इजाजत लेने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। पीड़िता का कहना था कि वह अपने साथ हुई भयावह घटना की निशानी को साथ लेकर नहीं जी सकती।

अदालत के निर्देश पर बनाए गए डाक्टरों के एक पैनल ने जांच करके बताया था कि सात माह के गर्भधारण के बाद उसे गिराने से गर्भवती लड़की की मौत हो सकती है। बाद में उसने एक बच्ची को जन्म दिया था।

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