दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भ्रष्टाचार के एक मामले में निचली अदालत द्वारा अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर खारिज करने का अनुरोध करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में दलील दी कि एक राज्यपाल के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
दीक्षित के वकील महमूद प्राचा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 361 (2) के तहत राज्यपाल के खिलाफ आपराधिक मामले की सुनवाई पर रोक है।
दीक्षित अभी केरल की राज्यपाल हैं और अनुच्छेद 361 (2) के तहत 'कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई भी आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता है।'
हालांकि, न्यायमूर्ति सुनील गौड की पीठ ने मामले की सुनवाई 23 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी क्योंकि शिकायतकर्ता विजेंद्र गुप्ता के वकील बीमार होने की वजह से उपस्थित नहीं थे।
गुप्ता ने आरोप लगाते हुए एक शिकायत दर्ज कराई थी कि दीक्षित प्रशासन ने 2008 विधानसभा चुनाव के पहले विज्ञापन अभियान में 22.56 करोड़ रुपये के सार्वजनिक फंड का दुरुपयोग किया और निचली अदालत ने उनके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था।
इसके बाद तत्कालीन दिल्ली सरकार ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया जिसने इस पर रोक लगा दी।
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