कांग्रेस और उसके अध्यक्ष पद पर हाल ही में विराजमान हुए राहुल गांधी के लिए साल 2018 काफी अहम साबित होने जा रहा है. गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने के लिए राहुल ने सिर्फ खुद की नहीं, कांग्रेस की भी दिशा और दशा बदलकर रख दी. राहुल गांधी का मंदिरों में जाना कांग्रेस का 'सॉफ्ट हिन्दुत्व' की ओर झुकाव माना गया, और उन्होंने यहां जातिगत राजनीति में घुसने में भी कोई कोताही नहीं की. कई समीकरणों को अपने पाले में करने के बाद भी भले ही कांग्रेस गुजरात जीत न सकी, लेकिन इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस ने बहुत लम्बे अरसे के बाद यहां BJP को टक्कर दी और इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह सिर्फ राहुल की वजह से मुमकिन हुआ. लेकिन सवाल अब भी वही है कि क्या राहुल गांधी का यह बदला रूप वर्ष 2019 तक एक सशक्त विपक्ष खड़ा कर पाएगा, क्योंकि यह सब करने के लिए राहुल के पास बहुत ज़्यादा वक्त नहीं बचा है.
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क्या विपक्ष को एकजुट कर पाएंगे राहुल गांधी...?
BJP के पास इस समय काफी बड़ा और मजबूत संगठन है और PM नरेंद्र मोदी जैसा नेता है. 19 राज्यों में उनकी सरकारें हैं, सो, कांग्रेस के लिए अकेले दम पर BJP को चुनौती दे पाना आसान नहीं है. चुनाव से पहले PM कोई बड़ा लोकलुभावन फैसला भी ले सकते हैं, सो, विपक्ष की एकजुटता ही इसका तोड़ हो सकती है. अब सवाल इस बात का है कि BJP को मजबूत चुनौती देने के लिए क्या राहुल गांधी सभी विपक्षी दलों के एक पाले में ला पाएंगे. क्या वह उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव व मायावती, पश्चिम बंगाल में वामदलों और ममता बनर्जी को साथ ला पाएंगे. उधर दक्षिण में BJP भी डीएमके को अपने साथ लाने में जुटी हुई है, और नई राजनैतिक ताकत बनने की कोशिश में जुटे फिल्म स्टार रजनीकांत का झुकाव भी BJP की ओर ही ज़्यादा लगता है.
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इन विधानसभा चुनावों में होगी असली परीक्षा...
साल 2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, नागालैंड और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें से कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में BJP की सरकारें सत्ता में हैं. इन चुनावों के नतीजे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की तस्वीर को साफ कर देंगे, सो, अब देखना यह है कि क्या राहुल गांधी इन विधानसभा चुनावों में कोई करिश्मा दिखा पाएंगे.
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क्या कांग्रेस के संगठन को मजबूती दे पाएंगे राहुल गांधी...?
संगठन स्तर कांग्रेस की हालत पस्त है, और मध्य प्रदेश में तो कोई नेता ही तय नहीं हो पा रहा है. पार्टी के भीतर ही ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह आमने-सामने खड़े दिखाई दे रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में भी अजीत जोगी कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. इन नेताओं के अलावा कार्यकर्ताओं में भी उत्साह भरने का मुश्किल काम अब राहुल गांधी को ही करना होगा.
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पूर्वोत्तर राज्यों की चुनौती से भी निपटना होगा...
पूर्वोत्तर भारत में पांव पसारने, पैठ बनाने और विस्तार करने की भरसक कोशिशों के तहत BJP ने असम के हेमंत बिस्वा को तैनात कर दिया है, जो कांग्रेस में रह चुके हैं और राहुल गांधी से ही नाराज़ होकर BJP में चले गए थे.
क्या हो सकती है राहुल की भूमिका
साल 2018 में राहुल के पास इन राज्यों में बेहतरीन प्रदर्शन करने की चुनौती होगी. अगर वह ऐसा कर पाए तो कई विपक्षी दल कांग्रेस के साथ आ सकते हैं जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में मिल सकता है. इस लिहाज से कांग्रेस अध्यक्ष को अपनी पूरी ताकत से इन राज्यों में पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए अभी से जुटना होगा और देखने वाली बात यह होगी कि वह इसमें कितना कामयाब होते हैं.
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