बिहार में पांच विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर सोमवार को उपचुनाव में वोट डाले जाएंगे. इस चुनाव को लेकर जहां एनडीए बहुत कॉन्फ़िडेंट हैं वहीं आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपने चार विधानसभा क्षेत्र में प्रत्याशियों को लेकर कई जनसभाओं को संबोधित किया है. लेकिन दोनों दलों के नेताओं का कहना हैं कि एक दरौंदा सीट जहां बीजेपी के स्थानीय नेता बाग़ी उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में हैं और जिसके कारण त्रिकोणीय मुक़ाबला है. बाक़ी के सभी सीटों पर अगर पिछले लोकसभा चुनाव के परिणाम को देखे तो निश्चित रूप से जहां एक लोकसभा सीट समस्तीपुर में एलजेपी का पलड़ा भारी है तो नाथनगर , बेलहर और सिमरी बख़्तियारपुर में जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों का.
बात करें किशनगंज सीट की तो यह कांग्रेस पार्टी का गढ़ रहा है और यहां पर फ़िलहाल कोई उलटफेर की संभावना न के बराबर है. पिछले लोकसभा चुनाव में दरौंदा सीट और जहां जनता दल यूनाइटेड को 26987 वोट का बढ़त थी और उस समय उम्मीदवार कविता सिंह थी जिनके पति अजय सिंह अभी विधान सभा में पार्टी के उम्मीदवार हैं, के बारे में कहा जाता हैं कि उन्होंने आधा दर्जन लोगों को लोकसभा चुनाव के दौरान मदद के बदले विधान सभाचुनाव में उम्मीदवार बनाने का वादा तो कर दिया लेकिन ऐन मौक़े पर ख़ुद टिकट लेके मैदान में आ गये.
पूरे इलाक़े में उनके बढ़ते राजनीतिक प्रभुता को भी कम करने के लिए भी एक मुहिम चली हुई है. इसके बाद बेलहर सीट पर जहां जनता दल यूनाइटेड को 29722 वोट का बढ़त लोकसभा चुनाव में हासिल थी और उस समय त्रिकोणीय संघर्ष था लेकिन इस बार पार्टी के उम्मीदवार वर्तमान सांसद गिरिधारी यादव के भाई हैं. जनता दल यूनाइटेड का मानना है कि इस सीट पर जीत दर्ज करना बहुत मुश्किल नहीं है.
जहां तक सिमरी बख़्तीयरपुर और नाथनगर दोनों जगह लोकसभा चुनाव में 41209 और 36462 वोट से जनता दल यूनाइटेड के प्रत्याशी आगे थे. वैसे ही किशनगंज सीटऔर त्रिकोणीय संघर्ष के बाद कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनाव में आठ हज़ार वोटों की बढ़त हासिल की थी जिसके कारण भी इस बार BJP के उम्मीदवार के मैदान में रहने के बावजूद माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी को यहां कोई बहुत दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
और शायद यही कारण है कि जहां नीतीश कुमार ने एक-एक जनसभाओं से ज्यादा प्रचार नहीं किया वहीं उनके सहयोगी बीजेपी के नेता दमख़म से गठबन्धन धर्म निभाने के लिए जनसभा के अलावा रोड शो भी किया. वहीं तेजस्वी यादव का पूरा ध्यान उन चार विधान सभा इलाक़ों में रहा जहां उनके पार्टी के प्रत्याशी थे. हालांकि बहुत आलोचना के बाद समस्तीपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में आखिरकार उन्होंने एक सभा की लेकिन इस बार के चुनाव परिणाम के बाद अगर कांग्रेस पार्टी से किनारा करती है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
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