
पूरे देश में लोकसभा चुनावों के नतीजे सुर्खियों में हैं और बीजेपी की जीत पर चर्चा-परिचर्चा हो रही है. लेकिन एक राज्य ऐसा भी है जहां के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने पूरे देश का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है. आंध्र प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में सत्ता परिवर्तन हो गया है और वाईएसआर कांग्रेस (YSR Congress) ने बहुमत के साथ प्रचंड जीत हासिल की है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक वाईएसआर कांग्रेस ने 175 विधानसभा सीटों में से 150 सीटों पर जीत हासिल की है और वह एक सीट पर आगे चल रही है. तेलगू देशम पार्टी का यहां बहुत बुरा हाल हुआ है और उसे हार का सामना करना पड़ा है. टीडीपी को केवल 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा और वह 1 सीट पर आगे चल रही है. आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी (Jagan Mohan Reddy) वाईएसआर कांग्रेस की जीत के नायक बनकर उभरे हैं. जैसे ही चुनावी नतीजे सामने आए राज्य के सीएम चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया.
हालांकि राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने कहा है कि नायडू अगली सरकार बनने की प्रक्रिया शुरू होने तक पद पर बने रहें. 2014 के चुनावों में वाईएसआर कांग्रेस को 67 और टीडीपी को 103 सीटें मिली थीं. ऐसे में सवाल उठता है कि वो कौन सी वजह थीं जिससे वाईएसआर ने शानदार वापसी की और टीडीपी को सत्ता गंवानी पड़ी.
ये हैं चंद्रबाबू की हार और जगन मोहन की जीत का कारण
2013 से 2017 तक टीडीपी और एनडीए गठबंधन में थे लेकिन चंद्रबाबू नायडू काफी समय से आंध्र प्रदेश के लिए मोदी सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे थे. केंद्र ने उनके विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग को ठुकरा दिया था. जिसके बाद टीडीपी अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार को झटका देते हुए एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया था. टीडीपी के मंत्री ने केंद्र सरकार से और बीजेपी के मंत्री ने आंध्र प्रदेश में राज्य सरकार से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन एनडीए से अलग होने पर टीडीपी को नुकसान ही उठाना पड़ा.
आंध्र में आम जनता की राय थी कि केंद्र के लिए नरेंद्र मोदी सही नेता हैं और राज्य के लिए चंद्रबाबू नायडू सही हैं. लेकिन एनडीए से अलग होने के बाद नायडू ने पीएम मोदी पर हमला करना शरू कर दिया और जिस समय देश में सर्जिकल स्ट्राइक हुई और बीजेपी के पक्ष में हवा बनी, तब नायडू ने पीएम पर सवाल उठाए. इसका खामियाजा भी नायडू को भुगतना पड़ा और आंध्र की जनता उनसे नाराज हो गई. नायडू के मन की महत्वाकांक्षा ने भी उन्हें हार दिलाई. केंद्र में गठबंधन सरकार बनाने के लिए नायडू पूरे देश में विपक्ष के कई नेताओं से मिलते रहे जिसकी वजह से आंध्र की जनता बहुत भ्रमित हुई कि आखिर नायडू चाहते क्या हैं? क्योंकि वह पहले भी कई गठबंधन में जोड़-तोड़ करने का हिस्सा रहे हैं. उनकी बढ़ती हुई महत्वाकांक्षा को लोग पचा नहीं सके और आखिर में नायडू हार गए.
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वहीं जगनमोहन की जीत में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बड़ी भूमिका रही है. प्रशांत किशोर ने जगनमोहन को जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी. इसके अलावा अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की पार्टी ने भी टीडीपी को नुकसान पहुंचाया जिससे वाईएसआर कांग्रेस की राह आसान हुई. रेड्डी ने जनता को अपने पक्ष में करने के लिए कई हजार किलोमीटर की पदयात्रा की और घर-घर जाकर वोट मांगे. उन्होंने 13 जिलों में पदयात्रा की. इससे पहले रेड्डी के पिता वाईएसआर राजशेखर रेड्डी भी 2004 में ऐसा कर चुके हैं. वाईएसआर कांग्रेस ने एससी, एसटी और मुस्लिम वोटरों को खूब लुभाया और इन समुदायों से उन्हें मनमुताबिक रिजल्ट मिले.
Video: आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस को मिला बहुमत
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