Assam: लॉकडाउन में नहीं मिला काम, तो ग्रामीणों ने बेची किडनी, दलालों ने भी डकारी रकम

गांव में कम से कम अबतक 12 लोगों ने पुलिस को लिखित में दिया है कि वो पैसे के लिए किडनी बेच रहे थे. हालांकि, किडनी बेचने वालों को कभी उतनी रकम नहीं मिली, जितने का वादा उनसे किया गया था. इस गोरखधंधे में कोलकाता का एक अस्पताल भी शामिल है.

गुवाहाटी:

असम (Assam) में किडनी के अवैध कारोबार का अब तक का सबसे बड़े रैकेट का भांडाफोड़ हुआ है. गुवाहाटी से 85 किलोमीटर पूर्व मोरीगांव जिले का धरमतुल गांव किडनी की अवैध खरीद-फरोख्त की वजह से सुर्खियों में है. गांव की विलेज डिफेंस पार्टी ने किडनी बेचने वाले गिरोह की पोल तब खोली, जब उन्होंने एक महिला और उसके बेटे को गांव के एक गरीब से कुछ कागजात पर दस्तखत करवाते देखा. वो गरीब पैसे के बदले अपनी किडनी बेचने जा रहा था. पुलिस ने मामले में केस दर्ज कर तीन लोगों को गिरफ्तार किया है.

एनडीटीवी संवाददाता रत्नदीप चौधरी और संजय चक्रवर्ती धरमतुल गांव गए, जहां उन्होंने देखा कि गांव वाले इतने ग़रीब और महाजनों के कर्ज़ में दबे हुए हैं कि उन्हें पैसा लौटाने के लिए अपनी किडनी बेचनी पड़ रही है और उन्हें यह फैसला सही लगा. 

गांव में कम से कम अबतक 12 लोगों ने पुलिस को लिखित में दिया है कि वो पैसे के लिए किडनी बेच रहे थे. हालांकि, किडनी बेचने वालों को कभी उतनी रकम नहीं मिली, जितने का वादा उनसे किया गया था. इस गोरखधंधे में कोलकाता का एक अस्पताल भी शामिल है. इसी अस्पताल में किडनी रैकेट चलाने वाले किडनी ट्रांसप्लांट करवाता था. ये अस्पताल पहले से ही पुलिस राडार पर था.

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धरमतुल गांव के निवासी 37 वर्षीय सुमंत दास पेशे से मिस्त्री हैं. लॉकडाउन की वजह से पिछले एक साल से उनके पास कोई काम नहीं था. उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई थी. इसके अलावा उनके बेटे के दिल में छेद है, जिसके इलाज के लिए उन्हें पैसे की जरूरत थी. ऐसे में सुमंत दास ने किडनी गिरोह को पांच लाख में अपनी किडनी बेचने का फैसला किया. 

सुमंत बताते हैं कि लाचारी के कारण उन्होंने अपनी एक किडनी बेच दी लेकिन उन्हें पांच लाख की जगह सिर्फ डेढ़ लाख रुपये ही दिए गए. सुमंत अब बीमार रहते हैं. वो कहते हैं कि उनसे कोई भी बोझ उठाया नहीं जाता. वो भारी और मेहनत वाला काम नहीं कर सकते. सुमंत की पत्नी ने कहा कि बेटे की बीमारी और महाजन के कर्ज की वजह से किडनी बेचने का फैसला लिया था ताकि कर्ज चुकता कर सकें और बेटे का इलाज भी करवा सकें, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

इस गिरोह का पर्दाफाश करने वाले ग्रामीणों का दावा है कि चार-पांच साल पहले तक कुछ ही लोगों ने किडनी बेची थी लेकिन लॉकडाउन की वजह से, जब लोगों को काम नहीं मिलने लगा, तब किडनी बेचने का कारोबार तेजी पकड़ लिया. विलेज डिफेंस पार्टी की सचिव मीनू दास ने कहा, "गांव में यह गोरखधंधा पांच साल से चल रहा है. लोग कोलकाता जाकर किडनी बेचकर आते थे. हमें इसका पता चल रहा था लेकिन हम इसका भांडाफोड़ नहीं कर रहे थे."

पार्टी के दूसरे सदस्य ने कहा कि ऐसा नहीं है कि किडनी बेचने वाले सभी मजबूर थे. कुछ लोगों ने आसानी से पैसा कमाने के लिए भी किडनी बेची है. सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि गांव की महिलाएं भी इस गिरोह का शिकार हुई हैं.

जैसे ही गिरफ्तारी की भनक लगी कोलकाता में किडनी बेचने गए कई शख्स वहां से भाग खड़े हुए. वहां से लौटे एक युवक ने कहा, "मुझे मुफ्त चावल तो मिलता है लेकिन वह काफी नहीं है, इसलिए मैंने किडनी बेचने का फैसला किया था. मैं यह भी सोच रहा था कि यह फैसला सही है या गलत लेकिन अपनी पत्नी के साथ मैं कोलकाता से भागकर गांव आ गया."

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इधर, पुलिस ने अपनी जांच का दायरा बढ़ा दिया है. पुलिस अब दलालों और किडनी लेने वालों को भी ढूंढ़ रही है. पुलिस का मानना है कि यह अंतरराज्यीय गोरखधंधा बहुत बड़ा है, जिसमें कई लोग शामिल हो सकते हैं.