'फेक न्यूज' पर अरुण शौरी का वार, कहा- ऐसा कैसे हो सकता है कि पीएम मोदी को पता न हो

फेक न्यूज पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने मंगलवार को एनडीए सरकार पर निशाना साधा.

'फेक न्यूज' पर अरुण शौरी का वार, कहा- ऐसा कैसे हो सकता है कि पीएम मोदी को पता न हो

खास बातें

  • फेक न्यूज को लेकर अरुण शौरी का मोदी सरकार पर हमला.
  • उन्होंने कहा कि सरकार मीडिया को दबाने की कोशिश करती रहती है.
  • अरुण शौरी ने अल्ट न्यूड का उदाहरण दिया.
नई दिल्ली:

फेक न्यूज को लेकर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से जारी गाइडलाइन और उसके तुरंत बाद पीएम मोदी द्वारा फैसले को वापस लेने के आदेश से राजनीति गरमा गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने मंगलवार को एनडीए सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने जोर देकर कहा कि फेक न्यूज पर पत्रकारों को दंडित करने का फैसला मीडिया को दबाने का एक प्रयास था और आगे भी ऐसे प्रयास होते रहेंगे. बता दें कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जो आदेश जारी किया था, उसके मुताबिक, अगर कोई पत्रकार फ़ेक यानी फ़र्जी न्यूज़ लिखकर या प्रचार-प्रसार करता है, तो उसे ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है. हालांकि, पीएम मोदी ने इस फैसले को पलट दिया.

अरुण शौरी ने एनडीटीवी से यह भी कहा कि उन्हें यकीन ही नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा जारी विवादास्पद गाइडलाइन से अनजान रहे होंगे, या फिर उन्हें इस बारे में पता ही नहीं होगा? इस गाइडलाइन को व्यापक रूप से प्रेस की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में देखा गया था.

पीएम नरेंद्र मोदी ने फर्जी खबरों के संबंध में जारी गाइडलाइंस वापस लेने को कहा

उन्होंने कहा कि यह कैसे हो सकता है? जब उनकी (पीएम मोदी) मर्जी से एक पत्ता तक नहीं हिलता, तो क्या आपको लगता है कि बिना पीएमओ की जानकारी या हस्तक्षेप से इतने बड़े और दूरगामी आदेश का ड्राफ्ट तैयार किया जा सकता है? आगे उन्होंने कहा कि मगर इस पूरे प्रकरण से यह सबक मिलता है कि हर बार सरकार कुछ ऐसा करने की कोशिश करती रहती है, और हर बार प्रतिक्रिया की ऐसी सुनामी होती है कि सरकार फैसले को वापस लेने पड़ते हैं.

अरुण शौरी ने आगे कहा कि पहली बात यह है कि सरकार के ऐसे उपायों का इसके उद्देश्य से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि वह फेक न्यूज का सबसे बड़ा मुजरिम खुद ही है. उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि अगर सरकार फेक न्यूज को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है, जैसा कि वह दावा करती है, तो इसके लिए फेक न्यूज के लेखकों के खिलाफ कार्यवाई करनी चाहिए. इसके लिए उन्होंने फैक्ट चेकिंग वेबसाइट अन्ट न्यूज से मदद लेने की बात भी दोहराई. 

पूर्व संपादक शौरी ने यह भी कहा कि प्रेस कॉउन्सिल या अन्य कमेटी के पास फेक न्यूज वाले मीडिया पर कार्रवाई करने का पावर होना चाहिए. साथ ही उन्होंने स्वायत्त संस्थानों की स्वायत्तता पर भी सवाल उठाए और कहा कि कभी इसके लिए मत आना. देश में तथाकथित ऑटोनोमस बॉडी की क्या हालत यह सबके सामने है. उन्होंने कहा कि यह किसी से छुपा नहीं है कि सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, चुनाव आयोग के साथ क्या किया?

फेक न्यूज पर पीएम नरेंद्र मोदी ने गाइडलाइन वापस लेने के आदेश दिए थे. उन्होंने कहा कि इस मामले में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को फैसला लेने दिया जाए. इस मुद्दे पर कई संगठनों ने विरोध दर्ज कराया था. विपक्षी दल कांग्रेस ने भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए थे और मीडिया से जुड़े संगठनों ने भी आपत्ति जताई थी. इसके तुरंत बाद मंत्रालय ने बयान जारी करके कहा कि फर्जी खबरों के नियमन से संबंधित देर जारी दिशानिर्देश को वापस लिया जाता है.

फ़ेक न्यूज़ से सही मंशा के साथ निपटने की ज़रूरत

बता दें कि फ़ेक न्यूज़ को लेकर सूचना प्रसारण मंत्रालय ने नए दिशा निर्देश जारी किए थे. पहली बार फ़ेक न्यूज़ चलाने पर पत्रकार की मान्यता 6 महीने के लिए, दूसरी बार एक साल और तीसरी बार फेक न्यूज़ चलाने पर हमेशा के लिए मान्यता रद्द हो सकती थी. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति में कहा था, 'पत्रकारों की मान्यता के लिये संशोधित दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर फर्जी खबर के प्रकाशन या प्रसारण की पुष्टि होती है तो पहली बार ऐसा करते पाये जाने पर पत्रकार की मान्यता छह महीने के लिये निलंबित की जायेगी और दूसरी बार ऐसा करते पाये जाने पर उसकी मान्यता एक साल के लिये निलंबित की जायेगी. इसके अनुसार, तीसरी बार उल्लंघन करते पाये जाने पर पत्रकार (महिला/पुरूष) की मान्यता स्थायी रूप से रद्द कर दी जायेगी.' अब यह गाइडलाइन वापस ले ली गई है.

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