देश में ग्राउंड वाटर पर निर्भर करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि कई जगहों पर पानी में आर्सेनिक की मात्रा काफी ज़्यादा है। संसदीय समिति ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि 12 राज्यों के 96 जिलों के ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा काफी ज़्यादा है।
रिपोर्ट के मुताबिक छह राज्यों के 35 जिलों में सात करोड़ से ज़्यादा लोग इसके असर में हैं। संसद में पेश इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे ज़्यादा 20 प्रभावित जिले उत्तर प्रदेश में पाए गए, जबकि असम के 18, बिहार के 15, हरियाणा के 13, पश्चिम बंगाल के आठ और पंजाब के छह जिलों में आर्सेनिक की मौजूदगी बड़ी समस्या बनी हुई है।
संसद की एस्टिमेट कमेटी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार के पास कोई योजना नहीं है। न ही भारत सरकार के पास पूरे देश के बारे में विस्तृत आंकड़े हैं। जोशी ने एनडीटीवी से कहा कि ग्राउंड वॉटर में आर्सेनिक सीमा से ज़्यादा होने से कैंसर, लिवर फाइब्रोसिस, हाइपर पिगमेन्टेशन जैसी लाइलाज बीमारियां होती हैं। यानि, खतरा बड़ा है और भारत सरकार को बड़े स्तर पर जल्दी पहल करनी होगी।
लेकिन खतरे का दायरा सिर्फ पीने के पानी तक ही सिमटा हुआ नहीं है। हवा में बढ़ता प्रदूषण भी खतरे की घंटी बजा चुका है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक इस साल नवंबर और दिसंबर में प्रदूषण का स्तर औसत से तीन से चार गुना तक ज़्यादा है, जिसकी वजह से सांस और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां और उनके मरीजों के लिए खतरा बढ़ गया है। प्रदूषण का स्तर बढ़ने के पीछे मुख्य वजह यह है कि इसे रोकने के लिए सरकार कुछ ज़्यादा नहीं कर रही है। संस्था ने मांग की है कि दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए।
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