'जब उस लड़के को कहीं उधार भी नहीं मिला, उसकी बहन बीमार थी और उसके इलाज के लिए पैसे चाहिए थे…… कहां से लाता वह पैसे… और उसने अपनी जान दे दी'
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत के ढिकाना गांव के गन्ना किसान राहुल ने आर्थिक तंगी के चलते अपनी जान दे दी। राहुल के परिवार के पास 28 बीघे ज़मीन तो थी, लेकिन करीब 3 लाख रुपये चीनी मिल पर गन्ने का बकाया और करीब 3.5 लाख रुपये का बैंक का कर्ज। ऊपर से बहन की शादी तो दूर उसके इलाज के लिए पैसे भी नहीं थे।
वैसे तो पांच भाइयों में राहुल दूसरे नंबर पर था, लेकिन 13 लोगों के परिवार को चलाने का जिम्मा मुख्य रूप से उसी पर था। राहुल की बीवी पर उसके सात और चार साल के दो बच्चों की सारी जिम्मेदारी आ पड़ी है।
राहुल की पत्नी नीशू कहती है, 'मेरे पास तो घर चलाने के लिए पैसे भी नहीं है। कैसे होगा पता नहीं।' राहुल की बुआ ने कहा कि ऐसे वक्त में कोई रिश्तेदार काम नहीं आता और क्या कोई दूसरे के बीवी बच्चे पालता है।
राहुल के बड़े भाई रुपेश कुमार ने कहा कि अब सुनने में आ रहा है कि प्रशासन हमको हमारे गन्ने का बकाया पेमेंट दिलवा रही है और ये कहते हुए उनकी आवाज़ भारी हो गई। अपनी रुंधी हुई आवाज में वह बोले कि जो मरेगा बस उसी का पेमेंट होगा क्या? हमको नहीं चाहिए ऐसा पेमेंट हमको हमारा भाई चाहिए बस।
बागपत के अपर जिला अधिकारी संतोष कुमार शर्मा ने बताया कि 15 दिन पहले टीकरी में जिस गन्ना किसान रामबीर ने खुदकुशी की उनके परिवार को गन्ने का बकाया पैसा मिल गया है और अब ढिकाना में जिस किसान ने आत्महत्या की है, उनका गन्ने का भुगतान का चेक तैयार है और उनको किसी भी समय मिल जाएगा।
अपर जिला अधिकारी की बात सुनकर मन में आया कि क्या सिस्टम ऐसा हो गया है कि जो किसान जान देगा उसका ही पैसा चीनी मिल से मिल पाएगा।
यूपी की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का करीब 5000 करोड़ का बकाया है। केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री संजीव बालियान ने इस मामले पर पल्ला झाड़ते हुए कहा कि आज़ादी के बाद पहली बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान ने आत्महत्या की है और इसके लिए प्रदेश सरकार जिम्मेदार है। बालियान के मुताबिक, केंद्र सरकार अपनी तरफ से जितना कर सकती थी वह कर चुकी है।
वहीं इलाके से प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त साहब सिंह के मुताबिक ये समस्या केंद्र सरकार की खड़ी की हुई है। उसने रॉ शुगर पर ड्यूटी नहीं बढ़ाई। अगर रॉ शुगर आयात महंगा हो तो देसी चीनी के दाम बढ़ेंगे और चीनी मिलों का फायदा होगा जिससे उनके पास पैसा आएगा और वह किसानों का जल्द भुगतान कर पाएंगे।
वैसे चुनाव के वक्त तो सब जिम्मेदारी लेते रहे कि हम चीनी मिलों से गन्ना किसानों का पेमेंट कराएंगे, और आज सब जिम्मेदारी एक−दूसरे पर डालने में लगे हुए। कितना दुखद है एक समृद्ध माने जाने वाले हरे भरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की ये दुर्दशा देखना।
किसानों की इस दुर्दशा पर मशहूर कवि माखनलाल चतुर्वेदी की ये पंक्ति याद आ रही है। जिसमें उन्होंने कहा था 'हे किसान तेरा चौड़ा छाता रे, तू जन जन का भ्राता रे'। जरा सोचिए हमारे इस भ्राता यानि की किसान की इस हालत पर सरकार के उठाए कदम अगर नाकाफ़ी साबित हो रहे हैं और उनका ज़मीन पर असर होता नहीं दिख रहा, तो फिर किसी दावे और सरकारी कदमों का क्या फ़ायदा।
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