बोर्ड ने कहा है कि पहले से मौजूद कानून काफी हैं
लखनऊ:
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने केंद्र सरकार के तीन तलाक बिल का विरोध किया है. बोर्ड ने केंद्र सरकार से बिल को संसद में नहीं पेश करने की मांग की है. मुस्लिम लॉ बोर्ड की आज लखनऊ में बैठक हुई. बैठक में प्रस्तावित बिल को लेकर चर्चा की गई. बोर्ड ने बिल को मुस्लिम महिलाओं की परेशानियां बढ़ाने वाला. लॉ बोर्ड ने कहा कि सरकार का बिल औरतों के खिलाफ है. लॉ बोर्ड ने कानून के मसौदे को वापस लेने की मांग की.
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बोर्ड ने कहा कि पहले से मौजूद कानून काफी थे. बोर्ड ने बिल को सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले की भावना के खिलाफ बताया. बोर्ड का कहना है कि ड्राफ्ट करते समय मुस्लिम पक्ष को शामिल ना करने पर सवाल उठाया. बैठक में सरकार के प्रस्तावित विधेयक के बारे में विस्तार से चर्चा की गई. बोर्ड का मानना है कि तीन तलाक संबंधी विधेयक का मसौदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों, शरियत तथा संविधान के खिलाफ है. इसके अलावा यह मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलंदाजी की भी कोशिश है. अगर यह विधेयक कानून बन गया तो इससे महिलाओं को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.
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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कहा कि इस बिल में 3 साल की सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है, लेकिन जुर्माना सरकार की जगह तलाकशुदा महिला को दिया जाना चाहिए था. ऐसा इस बिल में कुछ नहीं है. तीन तलाक वाली महिलाओं के लिए अलग फोरम है. बच्चों की कस्टडी को लेकर हमारी शरीयत में यह है कि किसके साथ रखने में बच्चे का भला है. यह कानून पहले से मौजूद है. इस कानून में आप बच्चे को इससे महरूम कर रहे हैं.
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उन्होंने कहा कि कोई तलाकशुदा महिला नहीं चाहती कि उसका शौहर गिरफ्तार हो जाए. जेल जाने पर शौहर कैसे तलाकशुदा महिला को मुआवजा दे पाएगा. उसकी आर्थिक मद्द कर पाएगा. मौजूदा बिल का मसौदा महिलाओं के खिलाफ नाइंसाफी करने वाला है. फिलहाल इस बिल को रोका जाए और मुस्लिम संगठनों से सलाह करके ही इसे लाया जाए.
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बोर्ड ने कहा कि पहले से मौजूद कानून काफी थे. बोर्ड ने बिल को सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले की भावना के खिलाफ बताया. बोर्ड का कहना है कि ड्राफ्ट करते समय मुस्लिम पक्ष को शामिल ना करने पर सवाल उठाया. बैठक में सरकार के प्रस्तावित विधेयक के बारे में विस्तार से चर्चा की गई. बोर्ड का मानना है कि तीन तलाक संबंधी विधेयक का मसौदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों, शरियत तथा संविधान के खिलाफ है. इसके अलावा यह मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलंदाजी की भी कोशिश है. अगर यह विधेयक कानून बन गया तो इससे महिलाओं को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.
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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कहा कि इस बिल में 3 साल की सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है, लेकिन जुर्माना सरकार की जगह तलाकशुदा महिला को दिया जाना चाहिए था. ऐसा इस बिल में कुछ नहीं है. तीन तलाक वाली महिलाओं के लिए अलग फोरम है. बच्चों की कस्टडी को लेकर हमारी शरीयत में यह है कि किसके साथ रखने में बच्चे का भला है. यह कानून पहले से मौजूद है. इस कानून में आप बच्चे को इससे महरूम कर रहे हैं.
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उन्होंने कहा कि कोई तलाकशुदा महिला नहीं चाहती कि उसका शौहर गिरफ्तार हो जाए. जेल जाने पर शौहर कैसे तलाकशुदा महिला को मुआवजा दे पाएगा. उसकी आर्थिक मद्द कर पाएगा. मौजूदा बिल का मसौदा महिलाओं के खिलाफ नाइंसाफी करने वाला है. फिलहाल इस बिल को रोका जाए और मुस्लिम संगठनों से सलाह करके ही इसे लाया जाए.
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