पिछले महीने जर्मनविंग्स के पायलट द्वारा जहाज को जान-बूझकर क्रैश किए जाने की घटना के बाद से अब भारत में भी पायलटों के दिमागी स्वास्थ्य की जांच के तरीके में बदलाव पर विचार किया जा रहा है।
नागरिक उड्डयन निदेशालय में एनडीटीवी के सूत्रों ने बताया है कि जर्मनविंग्स के हादसे के बाद डीजीसीए से कहा गया है कि वह भारतीय पायलटों के दिमागी स्वास्थ्य की जांच के लिए बने नियमों को दोबारा परखें और बदलाव करें। यह बदलाव खासतौर पर कमर्शियल पायलटों के संबंध में करने के लिए कहा गया है। इस संबंध में डीजीसीए अधिकारियों की एक बैठक नागरिक उड्डयन मंत्री ए गजपति राजू के साथ हो चुकी है।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में कमर्शियल पायलटों को हर छह महीने में शारीरिक दक्षता परीक्षा से गुजरना होता है, लेकिन उनके दिमागी स्वास्थ्य पर जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। बताया जा रहा है कि मात्र एयरलाइव को ज्वाइन करने के समय ही दिमागी स्वास्थ्य से जुड़ा साइकोमेट्रिक टेस्ट किया जाता है।
उड्डयन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, अभी टेस्ट किस प्रकार के होंगे इसके बारे में निर्णय नहीं लिया गया है। लेकिन हमें अपने सिस्टम में सुधार तो करना होगा।
सूत्र बता रहे हैं कि डीजीसीए ने चिकित्सा सेवा निदेशालय से संपर्क किया है ताकि यह तय किया जा सके कि पायलटों को किस जांच से गुजरना चाहिए। फिलहाल एक जांच में फ्लाइट पर जाने से पहले पायलटों के खून में शराब की मात्रा का परीक्षण किया जाता है।
जानकारी के अनुसार, कमर्शियल पायलटों की यूनियन ने हाल ही में डीजीसीए को चेतावनी देकर कहा है कि को-पायलटों की तनख्वाह में कटौती, काम करने के वातावरण का खराब होना और विकास की संभावनाओं की कमी है। यूनियन को करीब 30 को-पायलटों ने इस संबंध में शिकायत की है।
अधिकारियों का कहना है कि जर्मनविंग्स जैसा हादसा भारतीय पायलटों के साथ संभव नहीं है, क्योंकि भारत में सीएआर नियम (सिविल एविएशन नियम) के तहत केबिन में पायलट के आने तक वहां एक केबिन क्रू मेंबर को रखना अनिवार्य है। यानी केबिन में हमेशा दो शख्स की मौजूदगी रहती है।
बता दें कि जर्मनविंग्स हादसे में आरोप है कि जब पायलट बाहर गया था तो को-पायलट ने अपने आपको केबिन के अंदर बंद कर लिया था और जहाज को अल्पस पर्वत पर ले जाकर टकरा दिया था।
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