गुजरात में राहुल गांधी एक छात्रा के साथ फोटो खिंचवाते हुए
गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचार जैसे-जैसे चरम पर पहुंच रहा है, उसी तरह वोटों का गुणा भाग भी तेज हो रहा है. चुनावी विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि कांग्रेस जातिगत समीकरणों को अपने पाले में करने के लिए इतने हाथ-पैर मार रही है वह भी खुले तौर पर. लेकिन सच्चाई भी यह भी की हिंदुत्व की प्रयोगशाला रहे गुजरात को बीजेपी के हाथों से छीनने के लिए कांग्रेस के पास सिवाए इसके कोई रास्ता भी नहीं है और हाल ही में हुई घटनाक्रमों से सामाजिक तानेबाने में नए तरह का उभार भी देखने को भी मिल रहा है. एक ओर जहां पाटीदारों का आरक्षण के लिए आंदोलन है तो दूसरी ओर दलितों के साथ हुई घटनाओं में के बाद से इस समाज में नाराजगी है. कांग्रेस के सामने एक यह भी बड़ी चुनौती है कि गुजरात में उसके पास कॉडर के नाम पर कुछ भी नहीं है उसके पास इतने समर्थित कार्यकर्ता नहीं है जो वोटरों को पोलिंग बूथ तक पहुंचा सकें. इसलिए उसे पाटीदार और दलित संगठनों से हर हाल में हाथ मिलाना ही होगा.
...जब सेल्फी लेने के लिए राहुल गांधी की वैन पर चढ़ गई यह लड़की
अब बात करें वोटों की गणित की तो गुजरात में लगभग में 40 फीसदी आबादी ओबीसी की है जो कम से कम 70 सीटों को प्रभावित कर सकते हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि दलित नेता अल्पेश ठाकोर के आ जाने से उसे इस इलाके में फायदा हो सकता है. यह बीजेपी के सामने बड़ी मुश्किल हो सकती है. तो दूसरी ओर ओर शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस से अलग हो गए हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि पिछली बार कांग्रेस को इनकी वजह से भी फायदा हुआ था. लेकिन इस बार वाघेला ने खुद जन विकल्प पार्टी बनाकर मैदान में हैं. बीजेपी को लगता है कि वाघेला उसके खिलाफ पड़ने वाले वोटों को काट देंगे और इससे फायदा हो सकता है.
अब बात करें कांग्रेस के जीत के फॉर्मूले को तो राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि साल 2002 में भाजपा की वोट हिस्सेदारी कांग्रेस के मुकाबले 10...11 प्रतिशत ज्यादा थी. ऐसे में महज 6 प्रतिशत वोटों के कांग्रेस की तरफ झुकाव से भाजपा को बड़ा झटका लग सकता है और इस झटके को देने के लिए कांग्रेस के पास जातिगत समीकणों के अलावा कोई चारा नहीं है. लेकिन अभी कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती यह है कि अभी गुजरात में पीएम मोदी का तूफानी चुनाव प्रचार होना बाकी है जैसा वह करते आए हैं.
...जब सेल्फी लेने के लिए राहुल गांधी की वैन पर चढ़ गई यह लड़की
अब बात करें वोटों की गणित की तो गुजरात में लगभग में 40 फीसदी आबादी ओबीसी की है जो कम से कम 70 सीटों को प्रभावित कर सकते हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि दलित नेता अल्पेश ठाकोर के आ जाने से उसे इस इलाके में फायदा हो सकता है. यह बीजेपी के सामने बड़ी मुश्किल हो सकती है. तो दूसरी ओर ओर शंकर सिंह वाघेला कांग्रेस से अलग हो गए हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि पिछली बार कांग्रेस को इनकी वजह से भी फायदा हुआ था. लेकिन इस बार वाघेला ने खुद जन विकल्प पार्टी बनाकर मैदान में हैं. बीजेपी को लगता है कि वाघेला उसके खिलाफ पड़ने वाले वोटों को काट देंगे और इससे फायदा हो सकता है.
अब बात करें कांग्रेस के जीत के फॉर्मूले को तो राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि साल 2002 में भाजपा की वोट हिस्सेदारी कांग्रेस के मुकाबले 10...11 प्रतिशत ज्यादा थी. ऐसे में महज 6 प्रतिशत वोटों के कांग्रेस की तरफ झुकाव से भाजपा को बड़ा झटका लग सकता है और इस झटके को देने के लिए कांग्रेस के पास जातिगत समीकणों के अलावा कोई चारा नहीं है. लेकिन अभी कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती यह है कि अभी गुजरात में पीएम मोदी का तूफानी चुनाव प्रचार होना बाकी है जैसा वह करते आए हैं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं