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Sirtuins: क्या है सिर्टुइन्स? डाइजेशन और एजिंग में अदा करते हैं बड़ी भूमिका

सर्टुइन्स वैसे तो कई तरह के होते हैं लेकिन इसके दो मुख्य प्रकार हैं. इन्हें SIRT 1 और SIRT 3 कहा जाता है.

Sirtuins: क्या है सिर्टुइन्स? डाइजेशन और एजिंग में अदा करते हैं बड़ी भूमिका
जानिए क्या होते हैं सिर्टुइन्स, कैसे शरीर पर डालते हैं असर.

Sirtuins: सिर्टुइन्स सात तरह के अलग अलग प्रोटीन्स की एक फैमिली कही जा सकती है. जो ह्यूमन हेल्थ यानी हमारी सेहत को बनाए रखने में अहम रोल अदा करते हैं. इस तरह के प्रोटीन की खास बात ये है कि ये हमारे मेटाबॉलिज्म यानी कि डाइजेशन की पूर प्रक्रिया को सुचारू बना कर रखते हैं. इस के अलावा इंसानी शरीर के जीन एक्सप्रेशन को बनाए रखने में भी क्रिटकल रोल प्ले करते हैं. इसलिए इन्हें द गार्डियन्स ऑफ जिनोम भी कहा जाता है. सर्टुइन्स वैसे तो कई तरह के होते हैं लेकिन इसके दो मुख्य प्रकार हैं. इन्हें SIRT 1 और SIRT 3 कहा जाता है.

क्या होते हैं सिर्टुइन्स?| What are Situins?

सिर्टुइन्स को NAD+ पर डिपेंड करने वाला एक हिस्टोन माना जाता है. जो NAD+ की प्रेजेंस पर ही काम करते हैं. इतना ही नहीं सिर्टुइन्स जितनी बार भी काम करते हैं वो NAD+ का एक मॉलीक्यूल जरूर कंज्यूम करते हैं. NAD+ को निकोटिनेमाइड एडेनाइन डाईन्यूक्लियोटाइड भी कहते हैं. ये एक किस्म का एंजाइम होता है जो सेल्यूलर मेटाबॉलिज्म, माइटोकॉन्ड्रियल फंक्शन और दूसरी प्रोसेस में इंवोल्व रहता है. इन्हीं की मदद से सिर्टुइन्स मेटबॉलिक प्रोसेस को बेहतर बनाते हैं.

हिस्टोन एक ऐसा प्रोटीन होता है जो डीएनए के साथ मिलकर क्रोमेटिन बनाता है. जब इन हिस्टोन्स, सिर्टुइन्स के साथ deacetylated होते हैं तो क्रोमेटिन को क्लोस करते हैं यानी कि जीन एक्सप्रेशन को रोक देते हैं या साइलेंट कर देते हैं.

क्या करते हैं सिर्टुइन्स?

सिर्टुइन्स शरीर के किसी भी सेल के मेटाबॉलिक स्टेट को समझते हैं और उसके बाद जीन एक्सप्रेशन या प्रोटीन एक्टिविटी को रिस्पॉन्स करते हैं. कुछ खास किस्म के स्ट्रेस या तकलीफ होने पर सिर्टुइन्स मददगार होते हैं. इन स्ट्रेस में जीनोटॉक्सिक, मेटाबॉलिक और एजिंग यानी कि उम्र बढ़ने का स्ट्रेस शामिल है. लेकिन ये भी है कि उम्र बढ़ने के साथ सिर्टुइन्स के काम करने की क्षमता घटने लगती है. जिस वजह से वो इस तरह के स्ट्रेस से आसानी से डील नहीं कर पाते हैं.

सात तरह के सिर्टुइन्स में तीन माइटोकॉन्ड्रिया में काम करते हैं. तीन न्यूक्लियस में काम करते हैं और एक साइटोप्लाज्म में काम करते हैं. जिसमें से दो काफी इंपोर्टेंट होते हैं.

क्यों महत्वपूर्ण हैं SIRT 1 और SIRT 3?

पहले बात करते हैं SIRT 1 की. ये साइंस में अब तक पढ़ा गया सबसे महत्वपूर्ण सिर्टुइन्स है. ये सिर्टुइन्स न्यूक्लियस और साइटोप्लाज्म में मौजूद होता है. इंसानी शरीर के ब्रेन, हार्ट, लिवर, किडनी, पैंक्रियास, स्केलेटल मसल्स, एंडोथेलियल टिश्यू और व्हाइट एडिपोज टिश्यू के लिए ये बहुत जरूरी होते हैं. ये सिर्टुइन्स डीएनए मेंटेनेंस, एनर्जी मेटाबॉलिज्म, सेल सर्वाइवल, इंफ्लेमेशन, न्यूरॉनल फंक्शन, कार्डियो वैस्कुलर फंक्शन और माइटोकॉन्ड्रियल फंक्शन में अहम रोल अदा करते हैं.

SIRT 3 की बात करें तो मोटे तौर पर ये सिर्टुइन्स ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म, एटीपी प्रोडक्शन, फैटी एसिड ऑक्सीडेशन, फास्टिंग के दौरान किटोन प्रोडक्शन और अमीनो एसिड की साइक्लिंग में महत्वपूर्ण होता है. एक तरह से इसे माइटोकॉन्ड्रिया के सारे कामों के क्वालिटी कंट्रोल करने वाला तत्व कहा जा सकता है. यही अलग अलग प्रक्रियाओं के जरिए मेटाबॉलिक बैलेंस बनाए रखने में मदद करता है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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