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This Article is From Dec 26, 2018

Cuisine of Jharkhand: झारखंड के जायके को नया तड़का, मेन्यू में हैं बेहद खास व्यंजन

झारखंड के ऐसे ही व्यंजनों को एक मंच देने का प्रयास रांची के रहने वाले युवक श्वेतांक ने बड़े मनोयोग से किया है.

Cuisine of Jharkhand: झारखंड के जायके को नया तड़का, मेन्यू में हैं बेहद खास व्यंजन

Cuisine of Jharkhand: झारखंड के पारंपरिक धुसका (Dhuska), अरसा या दुधौरी खाने की अगर इच्छा हो तो अब दादी या नानी को याद कर परेशान होने की जरूरत नहीं. उनके हाथ से बने स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए अब आपको गांव या देहात के चक्कर भी नहीं लगाने होंगे. क्योंकि झारखंड की राजधानी रांची में अब ये सभी व्यंजन आपको आसानी से मिल जाएंगे, जिसका स्वाद आप आज के दौर में भी ले सकते हैं. वैसे झारखंड के व्यंजनों की बात हो तो आपके जुबान पर सबसे पहला नाम धुस्का (Dhuska and Ghugni From Jharkhand) का आता है. लेकिन झारखंडी व्यंजन (Cuisine of Jharkhand) में सिर्फ धुस्का ही नहीं है, बल्कि सैकड़ों ऐसे व्यंजन हैं जो न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होते हैं. झारखंड के ऐसे ही व्यंजनों को एक मंच देने का प्रयास रांची के रहने वाले युवक श्वेतांक ने बड़े मनोयोग से किया है.

 

 

यहां मिल रहा है खास जायका: रांची के अरगोड़ा चौक के नजदीक 'शहरी कल्चर' को अपनाते हुए 'बेस्टटेस्ट मोमो' कैफे में झारखंड के गांव-देहात में पकने वाले व्यंजनों को परोसा जा रहा है, जो लोगों को खूब भा भी रहा है. खास बात यह है कि इस कैफे से जो भी आमदनी हो रही है, उसका उपयोग ऐसे बच्चों के भविष्य को संवारने में किया जा रहा है, जिन्हें मानव तस्करी से बचाकर लाया गया हो या जिन बच्चों का कोई नहीं है.

क्या है ऑन डिमांड: श्वेतांक ने बताया कि इस कैफे में सबसे अधिक मांग कुदरूम की चाय और मडुआ (मड़वा, रागी) की विस्किट (ठेकुआ) की है. कुदरूम दरअसल झारखंड के जंगलों में लगने वाला एक फूल है. लाल रंग के इस फूल के पत्ते को सूखा कर इसकी पत्ती से चाय बनाकर बेची जा रही है.

 

 

कैसे बनती है कुदरूम चाय: इस चाय का स्वाद नींबू की चाय की तरह है, मगर यह चाय शुगर रोगियों के लिए 'रामबाण' है और स्वाद में भी बेहतर है. कुदरूम की चाय के अलावे मड़वा की बिस्किट, चावल की रोटी के साथ अन्य कई व्यंजन यहां परोसे जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि मौसम के अनुसार यहां का मेन्यू भी बदलता रहता है.

कैसे आया आइडिया: इस कैफे को खोलने के विचार के विषय में पूछे जाने पर श्वेतांक कहते हैं कि झारखंड में कई पारंपरिक चीजें विलुप्त होती जा रही हैं. उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्य बिहार का लिट्टी-चोखा, सत्तू आज देश ही नहीं, विदेशों में प्रचलित है, मगर झारखंड के पारंपरिक व्यंजनों को यहीं के बच्चे आज नहीं जानते.

कौन कौन से व्यंजन रखें अपनी स्पेशल लिस्ट में: दल पीठा, दूधौरी, करवन की चटनी, मड़वा पीठा सहित कई ऐसे व्यंजन हैं जो बहुत स्वादिष्ट हैं, मगर इसके विषय में अब कोई नहीं जानता.

 

 

 

असल में है समाज की सेवा: इस कैफे से जो भी आमदनी होती है, वह सीधे ऐसे बच्चों के भविष्य संवारने में लगाया जाता है, जो मानव तस्करी के शिकार के बाद रेस्क्यू किए गए होते हैं. इस कैफे में जो भी झारखंडी व्यंजन बनते हैं, उनका कच्चा पदार्थ आशा स्वयंसेवी संस्था से तैयार होता है. आशा स्वयंसेवी संस्था में ऐसे 200 बच्चे हैं जो या तो अनाथ हैं या फिर उन्हें मानव तस्करों के चंगुल से बचाया गया है." आशा स्वयंसेवी संस्था के अजय कुमार बताते हैं कि संस्था द्वारा तुपूदाना के समीप लालखटंगा गांव में बड़े भूखंड में जैविक खेती की जा रही है. उन्होंने कहा कि संस्था 'किचन गार्डन' को प्रमोट करने के लिए ऐसे व्यंजनों के लिए 'रॉ मैटेरियल' तैयार करता है, जिसे कैफे को दिया जाता है और उससे मिले पैसों को बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए खर्च किए जाते हैं. (इनपुट-आईएएनएस)

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