नई दिल्ली: ताजा शोध से पता चला है कि, अमीर देशों के एक तिहाई कैंसर मरीज धूम्रपान करते हैं। कैंसर के 50 प्रतिशत से ज़्यादा मामले जीवनशैली बदलकर रोके जा सकते हैं। हर साल भारत में कैंसर के 10 लाख नए मरीज सामने आते हैं और अब इनकी संख्या 25 लाख तक पहुंच चुकी है। हर साल छह से सात लाख लोगों की जान चली जाती है। देश और दुनिया में कैंसर की सबसे प्रमुख वजह तंबाकू सेवन है और 40 प्रतिशत कैंसर इसी वज़ह से होता है। 27.5 लाख भारतीय यानी देश की 35 प्रतिशत आबादी और 13-15 साल के 14.1 प्रतिशत बच्चे तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं।
मोटापे और ज़्यादा वज़न की वजह से 20 प्रतिशत कैंसर के मरीज पूरी दुनिया में होते हैं। अगर लोग अपना सेहतमंद बॉडी मांस इंडेक्स रखें, तो दो से 20 सालों में 50 प्रतिशत तक कैंसर के मामले कम हो सकते हैं। बच्चों की उचित समय पर तीन प्रमुख वायरसोः ह्यूमन पापीलोमा वायरस और हेपेटाइटिस बी और सी वायरस की वैक्सीन दिलवाकर पूरी दुनिया में कैंसर से जुड़े प्रमुख वायरस को 20 से 40 सालों में पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है।
आईएमए के मनोनीत अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने बताया कि जीवनशैली की अनियमितताओं की वजह से कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या देश मे बढ़ती जा रही है। तंबाकू सेवन, मोटापे, मोबाइल फोन और अन्य बिजली यंत्रों से उत्पन्न होने वाली रेडिएशन के संपर्क में आने और ओजोन की घटती परत से होने वाले खतरों के बारे में जागरुक होना बेहद ज़रूरी है।
उन्होंने कहा कि लोगों को अपनी जीवनशैली में बदलाव के लिए प्रोत्साहित करना भी कैंसर की रोकथाम की ओर एक कदम है। धूम्रपान छोड़ने और शराब का सेवन कम करने, संतुलित और सेहतमंद भोजन खाने और नियमित व्यायाम करने से इस समस्या से बचा जा सकता है। सरकार को भी पर्यावरण प्रदूषण कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि पंच सालों में पलेस्बो की तुलना में टमोक्सीफेन इवेसिव और नॉन-इवेसिव ब्रेस्ट कैंसर को 50 प्रतिशत से ज़्यादा रोकने में मददगार साबित होता है। रालोक्सिफिन पांच सालों में इनवेसिव ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को 50 प्रतिशत तक कम करता है। हाई रिस्क वुमन में से बीआरसीए1 या बीआरसीए2 जेने वाली महिलाओं में बायलेटरल से 50 प्रतिशत तक ब्रेस्ट कैंसर कम होने की संभावना है और एस्प्रिन कोलन कैंसर से होने वाली मौत की संभावना को 40 प्रतिशत तक कम करता है। कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग से 30 से 40 प्रतिशत तक मौत की संभावना को कम किया जा सकता है।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)