
रमजान का पाक माह शुरू हो चुका है. दुवाओं और कुरान की आयतों के साथ इस माह को बड़ी ही रहमत का महीना माना जाता है. रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नौंवा महीना होता है. यह मुसलमानों के लिए आस्था का प्रतीक है. यह माना जाता है कि इस रमज़ान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं, जहन्नुम के दरवाजे बंद हो जाते हैं. जिसके पीछे बुरी ताकतों को कैद कर दिया जाता है. इस महीने में हर मुसलमान रोजा रखता है. रोजे में पूरा दिन भूखे रहकर इफ्तार से रोज़ा खोला जाता है.
रमज़ान के दिनों में सेहरी और इफ्तार दो ऐसे टाइम होते हैं, जब कुछ खा सकते हैं. रोजा रखना वाकई बेहत कठिन है. रोजा के दौरान एक बूंद पानी तक नहीं पिया जाता. गर्मी के मौसम में पड़ने वाले रोजे के लिए शरीर को पूरे दिन एनर्जी की जरूरत होती है, इसलिए सुबह सेहरी का आहार महत्वपूर्ण होता है. इसलिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना और कुछ खास आहार खाना आपको रोजा रखने की क्षमता दे सकता है-
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क्या हो सकती हैं परेशानियां
इस दौरान इफ्तार आहार को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. अक्सर देखा जाता है कि पूरा दिन खाली पेट रहने के बाद एकदम से भर पेट खा लेने से पाचन प्रक्रिया में परेशानी होने लगती है, या फिर पेट दर्द, बदहजमी जैसी समस्या का सामना कर पड़ता है. पारंपरिक रूप से शाम की नमाज़ के बाद रोज़ा खोला जाता है.
कहां है कैसा रिवाज-
जूस, दूध और पानी के साथ रोज़ा खोलते हैं. इफ्तार के खाने में विभिन्न व्यंजनों को रखा जाता है. मटन करी से लेकर सुंदर मिठाई और ठंडे शर्बत तक को इफ्तार में शामिल करते हैं. अफगानिस्तान में इफ्तार के समय मुसलमान पारंपरिक सूप और प्याज़ पर आधारित मीट करी, कबाब और पुलाव बनाते हैं. वहीं, हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में जलेबी, हलीम, मीठे पेय पदार्थ, परांठा, चावल, मीट करी, फ्रूट सलाद, शामी कबाब, पियाज़ो, बेगुनी और कई मुंह में पानी लाने वाले व्यंजन इफ्तार में शामिल होते हैं.
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हलीम और हरीस भारत में ज़्यादा पसंद की जाने वाली मीट डिश हैं. दुनियाभर में हैदराबादी हलीम काफी प्रसिद्ध है. केरल और तमिलनाडू में मुसलमान अपना रोज़ा नोन्बू कांजी (एक प्रकार की डिश) से खोलते हैं, जो मीट, सब्जियों और दलिए से बनाई जाती है. यहां हम कुछ हेल्थ टिप्स दे रहे हैं, जो इफ्तार के समय आपकी मदद करेंगे.
फलों को मिक्स न करेः फल जब खाने में मौजूद मिनरल्स, फैट और प्रोटीन के साथ मिलते हैं, तो पाचन में दिक्कत करते हैं इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि या तो रोज़ा खोलने के तुरंत बाद फल खा लें वरना खाने के बाद फलों को शामिल करें.
मीट के साथ न खाएं: रोज़े के दौरान बॉडी प्रोटीन के एक ही रूप को पचा पाती है. एक से ज़्यादा प्रोटीन को एक बार में खा लेने खाना पचाने में परेशानी हो सकती है.
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दूध से दूर रखें: अम्लीय एसिड (खट्टे खाद्य पदार्थों में पाया जाने वाला) दूध को जमा देगा, जो आपके पेट के लिए समस्या बन सकता है. प्रोटीन और स्टार्च दोनों को साथ रखना नहीं रखा जा सकता. अगर आप मीट खाने की सोच रहे हैं, तो संतुलन बनाने के लिए ताजा सब्जियां लेने की कोशिश करें.
धीरे-धीरे खाएं: खाने को ख़त्म करने के जल्दी में न रहें. पूरा दिन भूखा रहने के बाद अगर आपकी बॉडी एकदम से इतना सारा खाना लेगी, तो इससे बदहजमी और गैस जैसी समस्या हो सकती है. पहले फलों, दही, ठंडे पेय पदार्थ जैसे शर्बत, स्मूथी आदि लें. कुछ देर बाद खाने की ओर बढ़ें. इससे पेट को सही से कार्य करने के लिए थोड़ा टाइम मिल जाएगा.
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रमज़ान के दिनों में सेहरी और इफ्तार दो ऐसे टाइम होते हैं, जब कुछ खा सकते हैं. रोजा रखना वाकई बेहत कठिन है. रोजा के दौरान एक बूंद पानी तक नहीं पिया जाता. गर्मी के मौसम में पड़ने वाले रोजे के लिए शरीर को पूरे दिन एनर्जी की जरूरत होती है, इसलिए सुबह सेहरी का आहार महत्वपूर्ण होता है. इसलिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना और कुछ खास आहार खाना आपको रोजा रखने की क्षमता दे सकता है-
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इस दौरान इफ्तार आहार को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. अक्सर देखा जाता है कि पूरा दिन खाली पेट रहने के बाद एकदम से भर पेट खा लेने से पाचन प्रक्रिया में परेशानी होने लगती है, या फिर पेट दर्द, बदहजमी जैसी समस्या का सामना कर पड़ता है. पारंपरिक रूप से शाम की नमाज़ के बाद रोज़ा खोला जाता है.
कहां है कैसा रिवाज-
जूस, दूध और पानी के साथ रोज़ा खोलते हैं. इफ्तार के खाने में विभिन्न व्यंजनों को रखा जाता है. मटन करी से लेकर सुंदर मिठाई और ठंडे शर्बत तक को इफ्तार में शामिल करते हैं. अफगानिस्तान में इफ्तार के समय मुसलमान पारंपरिक सूप और प्याज़ पर आधारित मीट करी, कबाब और पुलाव बनाते हैं. वहीं, हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में जलेबी, हलीम, मीठे पेय पदार्थ, परांठा, चावल, मीट करी, फ्रूट सलाद, शामी कबाब, पियाज़ो, बेगुनी और कई मुंह में पानी लाने वाले व्यंजन इफ्तार में शामिल होते हैं.
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हलीम और हरीस भारत में ज़्यादा पसंद की जाने वाली मीट डिश हैं. दुनियाभर में हैदराबादी हलीम काफी प्रसिद्ध है. केरल और तमिलनाडू में मुसलमान अपना रोज़ा नोन्बू कांजी (एक प्रकार की डिश) से खोलते हैं, जो मीट, सब्जियों और दलिए से बनाई जाती है. यहां हम कुछ हेल्थ टिप्स दे रहे हैं, जो इफ्तार के समय आपकी मदद करेंगे.
फलों को मिक्स न करेः फल जब खाने में मौजूद मिनरल्स, फैट और प्रोटीन के साथ मिलते हैं, तो पाचन में दिक्कत करते हैं इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि या तो रोज़ा खोलने के तुरंत बाद फल खा लें वरना खाने के बाद फलों को शामिल करें.
मीट के साथ न खाएं: रोज़े के दौरान बॉडी प्रोटीन के एक ही रूप को पचा पाती है. एक से ज़्यादा प्रोटीन को एक बार में खा लेने खाना पचाने में परेशानी हो सकती है.
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दूध से दूर रखें: अम्लीय एसिड (खट्टे खाद्य पदार्थों में पाया जाने वाला) दूध को जमा देगा, जो आपके पेट के लिए समस्या बन सकता है. प्रोटीन और स्टार्च दोनों को साथ रखना नहीं रखा जा सकता. अगर आप मीट खाने की सोच रहे हैं, तो संतुलन बनाने के लिए ताजा सब्जियां लेने की कोशिश करें.
धीरे-धीरे खाएं: खाने को ख़त्म करने के जल्दी में न रहें. पूरा दिन भूखा रहने के बाद अगर आपकी बॉडी एकदम से इतना सारा खाना लेगी, तो इससे बदहजमी और गैस जैसी समस्या हो सकती है. पहले फलों, दही, ठंडे पेय पदार्थ जैसे शर्बत, स्मूथी आदि लें. कुछ देर बाद खाने की ओर बढ़ें. इससे पेट को सही से कार्य करने के लिए थोड़ा टाइम मिल जाएगा.
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