
नई दिल्ली:
सड़क पर चलते हर दूसरे व्यक्ति ने प्रदूषण से बचने के लिए मास्क पहन रखा है। हवा में धुंध और धुंआ दोनों ही भारी मात्रा में मौजूद हैं, जिसकी वज़ह से लोगों को कई समस्याएं भी झेलनी पड़ रही है। दिवाली के बाद से ही दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग छाया हुआ है और हवा की गुणवत्ता भी बहुत खराब हुई है। इसका कारण पीएम 2.5 खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। अपनी तरफ से लोग हर वह कोशिश कर रहे हैं, जिससे वे इस भयावह प्रदूषण से बच सकें।
इससे बचने के लिए कुछ लोग मास्क पहन रहे हैं, तो कई रेस्पिरेटर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। आपको बता दें कि मास्क की जगह रेस्पिरेटर्स (एन95, एन99 और एफएफपी3) का प्रयोग करना ज़्यादा उपयोगी माना जा रहा है। नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के वायु प्रदूषण सूचकांक के आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि वायु प्रदूषण का स्तर बेहद हानिकारक हो चुका है।
वहीं, 3डी इंडिया के जनरल मैनेजर टेक्निकल (इंडिया) विनय पाठक का कहना है कि “आसपास की हवा के प्रदूषण की गणना पार्टिकुलेट मैटर पीएम 10 (10 माइक्रॉन से छोटे कण) एवं पीएम 2.5 (2.5 माइक्रॉन से छोटे कण, मनुष्य के बाल से लगभग 25 सो 100 गुना पतले) के घनत्व से होती है, जो फेफड़ों और खून में गहराई तक समा सकते हैं। दिल्ली में इनकी मात्रा काफी खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है”।
प्रदूषण से हो सकती हैं, यह खतरनाक बीमारियां
उन्होंने कहा कि पार्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5 व पीएम 10 शरीर में जाने से अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर, कॉर्डियोवस्कुलर बीमारी, श्वस संबंधी समस्याएं, समय पूर्व प्रसव, जन्मजात विकृति एवं समय से पूर्व मौत भी हो सकती है। पीएम 2.5 व पीएम 10 से खुद को बचाने के लिए मास्क नहीं, केवल रेस्पिरेटर्स जैसे एन95, एन99 और एफएफपी3 का ही प्रयोग करना चाहिए।
विनय ने बताया कि “रेस्पिरेटर्स को हवा में पाए जाने वाले पार्टिकुलेट प्रदूषक कणों (जिनमें पीएम 2.5 व पीएम 10 भी शामिल हैं) के नुकसानों से बचाने के लिए डिजाइन किया जाता है। दूसरी तरफ सर्जिकल मास्क में पर्याप्त फिल्टरिंग एवं फिटिंग के गुण नहीं होते हैं। इन सर्जिकल मास्क को पहनने से मनुष्यों द्वारा पैदा होने वाले बड़े कण (जैसे मनुष्यों के थूक, बलगम आदि) से कार्यस्थल को सुरक्षा देने के लिए डिजाइन किया जाता है, न कि बाहर के कणों को शरीर के अंदर जाने से रोकने के लिए”।
ये चीजें हैं प्रदूषण के लिए जिम्मेदार
पटाखे जलाने के अलावा वायु प्रदूषण एवं पार्टिकुलेट 2.5 के लिए जिम्मेदार अन्य तत्व जैसे वाहन, कारखानें, पावर प्लांट्स, खाना पकाने, ठोस ईंधन (जैसे कोयला, लकड़ी और फसल का कचरा) जलाने, जंगल की आग तथा म्युनिसिपल कचरा एवं खेती से पैदा हुआ कचरा खुले में जलाने से निकलने वाला धुआं है।
(इनपुट्स आईएएनएस से)
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
इससे बचने के लिए कुछ लोग मास्क पहन रहे हैं, तो कई रेस्पिरेटर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। आपको बता दें कि मास्क की जगह रेस्पिरेटर्स (एन95, एन99 और एफएफपी3) का प्रयोग करना ज़्यादा उपयोगी माना जा रहा है। नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास के वायु प्रदूषण सूचकांक के आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि वायु प्रदूषण का स्तर बेहद हानिकारक हो चुका है।
वहीं, 3डी इंडिया के जनरल मैनेजर टेक्निकल (इंडिया) विनय पाठक का कहना है कि “आसपास की हवा के प्रदूषण की गणना पार्टिकुलेट मैटर पीएम 10 (10 माइक्रॉन से छोटे कण) एवं पीएम 2.5 (2.5 माइक्रॉन से छोटे कण, मनुष्य के बाल से लगभग 25 सो 100 गुना पतले) के घनत्व से होती है, जो फेफड़ों और खून में गहराई तक समा सकते हैं। दिल्ली में इनकी मात्रा काफी खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है”।
प्रदूषण से हो सकती हैं, यह खतरनाक बीमारियां
उन्होंने कहा कि पार्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5 व पीएम 10 शरीर में जाने से अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर, कॉर्डियोवस्कुलर बीमारी, श्वस संबंधी समस्याएं, समय पूर्व प्रसव, जन्मजात विकृति एवं समय से पूर्व मौत भी हो सकती है। पीएम 2.5 व पीएम 10 से खुद को बचाने के लिए मास्क नहीं, केवल रेस्पिरेटर्स जैसे एन95, एन99 और एफएफपी3 का ही प्रयोग करना चाहिए।
विनय ने बताया कि “रेस्पिरेटर्स को हवा में पाए जाने वाले पार्टिकुलेट प्रदूषक कणों (जिनमें पीएम 2.5 व पीएम 10 भी शामिल हैं) के नुकसानों से बचाने के लिए डिजाइन किया जाता है। दूसरी तरफ सर्जिकल मास्क में पर्याप्त फिल्टरिंग एवं फिटिंग के गुण नहीं होते हैं। इन सर्जिकल मास्क को पहनने से मनुष्यों द्वारा पैदा होने वाले बड़े कण (जैसे मनुष्यों के थूक, बलगम आदि) से कार्यस्थल को सुरक्षा देने के लिए डिजाइन किया जाता है, न कि बाहर के कणों को शरीर के अंदर जाने से रोकने के लिए”।
ये चीजें हैं प्रदूषण के लिए जिम्मेदार
पटाखे जलाने के अलावा वायु प्रदूषण एवं पार्टिकुलेट 2.5 के लिए जिम्मेदार अन्य तत्व जैसे वाहन, कारखानें, पावर प्लांट्स, खाना पकाने, ठोस ईंधन (जैसे कोयला, लकड़ी और फसल का कचरा) जलाने, जंगल की आग तथा म्युनिसिपल कचरा एवं खेती से पैदा हुआ कचरा खुले में जलाने से निकलने वाला धुआं है।
(इनपुट्स आईएएनएस से)
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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