फिल्म के दृश्य से ली गई तस्वीर...
मुंबई:
इस फिल्मी फ्राइडे रिलीज हुई है नसीरुद्दीन शाह और कल्की कोचलिन की फिल्म 'वेटिंग' जिसका निर्देशन किया है, अनु मेनन ने और निर्माता हैं, मनीष मुंद्रा और प्रीति गुप्ता। फिल्म की कहानी कोच्चि की पृष्ठभूमि पर आधारित है।
लंबा इंतजार बढ़ाता है दोनों की दोस्ती
'वेटिंग' कहानी है 'शिव' यानी नसीर और 'तारा' यानी कल्की की, जिनके जीवनसाथी कोमा में हैं। उन्हें नहीं पता कि वह कब तक अस्पताल के बिस्तर से उठ पाएंगे। नतीजा, एक लंबा इंतज़ार इन दोनों के बीच दोस्ती बढ़ाता है। फिल्म में दिखता है कि किस तरह जज़्बाती तौर पर ये एक-दूसरे का सहारा बनते हैं। साथ ही फिल्म में दबी ज़ुबान में स्वास्थ्य विभाग पर भी सवाल उठे हैं। फिल्म रोशनी डालती है दोस्ती जैसे रिश्तों पर भी कि कैसे बुरे वक्त में लोग साथ छोड़ देते हैं।
बात 'वेटिंग' की खामियों की
'वेटिंग' की सबसे बड़ी खामी है कि एक वक्त के बाद यह फिल्म धीमी पड़ती है। फिल्म में कहानी कम है और मूमेंट्स यानी क्षण ज्यादा हैं। यह फिल्म उस स्तर पर चलती है जिसे शायद मनोरंजन की उम्मीद रखने वाले दर्शक हजम ना कर पाएं। हो सकता है कुछ लोगों को यह फिल्म निराशाजनक भी लगे। यह फिल्म आपको किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचाती बल्कि एक परिस्थिति का 360 डिग्री जायज़ा देती है, जिससे कुछ दर्शक उलझन में पड़ सकते हैं कि लेखक और निर्देशक आखिर कहना क्या चाहते हैं। यह भी हो सकता है कि आप में से कई दर्शक फ़िल्म देखने के बाद अधूरे से लौटें।
खूबियां भी कम नहीं
बात खूबियों की करें तो फिल्म के पीछे की सोच और विषय अच्छा था। कई लोग शायद इससे इत्तेफाक भी रखें। फिल्म में उठाए गए सवाल कुछ ऐसे हैं, जो एक चुनिंदा परिस्थिति में सभी पूछना चाहेंगे। इसलिए विषय के लिए फिल्म को पूरे नंबर दूंगा। इसके अलावा फिल्म में नसीर और कल्की का बेहतरीन अभिनय और फ़िल्म के क़िरदारों के फ़लसफ़े आप तक अच्छे से पहुंचते हैं और कई जगह आप किरदारों के दर्द से जुड़ पाएंगे।
साथ ही दर्शकों को सचेत करना भी ज़रूरी है कि अगर आप संजीदा और रियलिटी के क़रीब फ़िल्में देखना पसंद करते हैं तो ये फ़िल्म आप देखने जा सकते हैं, लेकिन आप मनोरंजक फ़िल्मों के शौक़ीन हैं तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। मेरी ओर से फिल्म 'वेटिंग' को 3 स्टार्स...
लंबा इंतजार बढ़ाता है दोनों की दोस्ती
'वेटिंग' कहानी है 'शिव' यानी नसीर और 'तारा' यानी कल्की की, जिनके जीवनसाथी कोमा में हैं। उन्हें नहीं पता कि वह कब तक अस्पताल के बिस्तर से उठ पाएंगे। नतीजा, एक लंबा इंतज़ार इन दोनों के बीच दोस्ती बढ़ाता है। फिल्म में दिखता है कि किस तरह जज़्बाती तौर पर ये एक-दूसरे का सहारा बनते हैं। साथ ही फिल्म में दबी ज़ुबान में स्वास्थ्य विभाग पर भी सवाल उठे हैं। फिल्म रोशनी डालती है दोस्ती जैसे रिश्तों पर भी कि कैसे बुरे वक्त में लोग साथ छोड़ देते हैं।
बात 'वेटिंग' की खामियों की
'वेटिंग' की सबसे बड़ी खामी है कि एक वक्त के बाद यह फिल्म धीमी पड़ती है। फिल्म में कहानी कम है और मूमेंट्स यानी क्षण ज्यादा हैं। यह फिल्म उस स्तर पर चलती है जिसे शायद मनोरंजन की उम्मीद रखने वाले दर्शक हजम ना कर पाएं। हो सकता है कुछ लोगों को यह फिल्म निराशाजनक भी लगे। यह फिल्म आपको किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचाती बल्कि एक परिस्थिति का 360 डिग्री जायज़ा देती है, जिससे कुछ दर्शक उलझन में पड़ सकते हैं कि लेखक और निर्देशक आखिर कहना क्या चाहते हैं। यह भी हो सकता है कि आप में से कई दर्शक फ़िल्म देखने के बाद अधूरे से लौटें।
खूबियां भी कम नहीं
बात खूबियों की करें तो फिल्म के पीछे की सोच और विषय अच्छा था। कई लोग शायद इससे इत्तेफाक भी रखें। फिल्म में उठाए गए सवाल कुछ ऐसे हैं, जो एक चुनिंदा परिस्थिति में सभी पूछना चाहेंगे। इसलिए विषय के लिए फिल्म को पूरे नंबर दूंगा। इसके अलावा फिल्म में नसीर और कल्की का बेहतरीन अभिनय और फ़िल्म के क़िरदारों के फ़लसफ़े आप तक अच्छे से पहुंचते हैं और कई जगह आप किरदारों के दर्द से जुड़ पाएंगे।
साथ ही दर्शकों को सचेत करना भी ज़रूरी है कि अगर आप संजीदा और रियलिटी के क़रीब फ़िल्में देखना पसंद करते हैं तो ये फ़िल्म आप देखने जा सकते हैं, लेकिन आप मनोरंजक फ़िल्मों के शौक़ीन हैं तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है। मेरी ओर से फिल्म 'वेटिंग' को 3 स्टार्स...
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