फिल्म समीक्षा : सपनों को पूरा करने की हिम्मत जगाती है 'निल बटे सन्नाटा'

फिल्म समीक्षा : सपनों को पूरा करने की हिम्मत जगाती है 'निल बटे सन्नाटा'

फिल्म के दृश्य से ली गई तस्वीर...

मुंबई:

फिल्म 'निल बटे सन्नाटा' की कहानी है एक मां चंदा सहाय और उसकी बेटी अप्पू की। चंदा लोगों के घरों में काम करती है और अपनी बेटी अप्पू को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहती है मगर अप्पू का पढ़ाई लिखाई में बिलकुल दिल नहीं लगता है क्योंकि उसका मानना है कि जिस तरह डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर बनता है वैसे ही वह बाई की बेटी है इसलिए बाई ही बनेगी।

फिल्म में गणित के विषय को बहुत सुंदरता से दिखाया गया है
फिल्म में एक गरीब औरत के सपनों को दिखाया गया है, जिसमें वह हर कीमत पर अपनी उस बेटी को पढ़ाना चाहती है, जो ज़िद्दी है, नासमझ है और इस वजह से वह पढ़ाई में ध्यान नहीं देती। फिल्म में मां और बेटी की मोहब्बत और बेहतरीन रिश्ते भी दिखाई देते हैं। निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी का अच्छा निर्देशन है, जिन्होंने एक छोटी-सी कहानी को बेहतरीन तरीके से परदे पर उतरा है और मनोरंजन का ध्यान भी रखा है।
फिल्म में ज्यादा मनोरंजन लाता है गणित का विषय, क्योंकि बहुत ही सुंदरता से गणित से बच्चों को भागते हुए या उनकी कमज़ोरी को दिखाया है जो ज़्यादातर छात्रों की होती है। स्वरा भास्कर, रत्ना पाठक और पंकज त्रिपाठी का बेहतरीन अभिनय।

कहीं-कहीं फिल्म थोड़ी धीमी
फिल्म के दूसरे पहलू की अगर बात करें तो कहीं-कहीं फ़िल्म थोड़ी धीमी लगती है और एक ही मुद्दा थोड़ा खिंचा हुआ लगने लगता है।

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सपनों को पूरा करने की हिम्मत पर है यह फिल्म
फिल्म का विषय है सपनों को पूरा करने की हिम्मत, हौंसला और कोशिश जो चंदा देखती है। फिल्म बताती है की खुली आंखों से सपना देखो और ईमानदारी से उसे पूरा करने की कोशिश करो तो वह पूरा होगा इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है 3 स्टार।