नई दिल्ली:
रेटिंगः 3 स्टार
डायरेक्टरः डेविड सैंडबर्ग
कलाकारः स्टेफनी सिगमैन, तलिथा बेटमैन, एंथनी लापगलिया और मिरांडा ओट्टो
हॉलीवुड हॉरर के मामले में हमेशा से कुछ न कुछ ऐसा मसाला लेकर आता है जो मजा दिला जाता है. 'एनाबेल क्रिएशन' के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है. फिल्म को डराने के उद्देश्य से बनाया गया है, और अपने इस उद्देश्य में फिल्म सफल रहती है. फिल्म की कहानी थोड़ी कमजोर है लेकिन डायरेक्टर डराने के अपने काम में बखूबी सफल रहा है. हालांकि उन्होंने डराने के ट्रेडिशिनल मेथड ही इस्तेमाल किए हैं लेकिन वे मेथड काम कर जाते हैं और फिल्म हॉरर प्रेमियों के लिए ट्रीट बनकर सामने आती है, जिसमें डरने और सीट से चिपके रहने के कई मौके हैं.
कहानी 1940 के दशक की है. गुड़िया बाने वाला सैमुअल और उसकी बीवी इस्थर अपनी बेटी को हादसे में खो चुके हैं. वो एक सुनसान फार्म हाउस में रहते हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे हॉरर फिल्में होते हैं. फिर एंट्री होती है एक नन और छह अनाथ बच्चों की. उनमें एक बच्ची जेनिस पोलियो की शिकार है, और वह घर में यहां-वहां घूमते हुए, ऐसे कमरे में दाखिल हो जाती है जिसमें कोई नहीं जाता है. इसके बाद चीखो पुकार और दहशत का माहौल शुरू हो जाता है. इस सबके लिए जिम्मेदार है एक गुड़िया. इस तरह से एनाबेल का डरावना खेल सबको अपनी जद मे ले लेता है. फिल्म की पटकथा मजबूत नहीं है लेकिन डराने के लिए जिस तरह सीन्स का इस्तेमाल किया गया है, वह हमेशा से हॉलीवुड की खासियत रहा है. मजेदार यह कि फिल्म में हिलती हुई कुर्सी है, लंबे नाखून वाली चुड़ैल भी दिखती है और तो और अंधेरे में धुआं उड़ता भी दिखता है, यानी हॉरर की पुरानी डोज.
लंबे समय से बॉलीवुड में कोई मबजबूत हॉरर फिल्म नहीं आई है, इस तरह से एनाबेल क्रिएशन जैसी फिल्म हॉरर प्रेमियों के लिए अच्छी डोज है. हॉलीवुड की फिल्में भारत में अच्छा कारोबार कर रही हैं. सैंडबर्ग इससे पहले 'लाइट्स आउट' भी बना चुके है. कमजोर कहानी होने के बावजूद अपने सीन्स की वजह से फिल्म वन टाइम वॉच है.
डायरेक्टरः डेविड सैंडबर्ग
कलाकारः स्टेफनी सिगमैन, तलिथा बेटमैन, एंथनी लापगलिया और मिरांडा ओट्टो
हॉलीवुड हॉरर के मामले में हमेशा से कुछ न कुछ ऐसा मसाला लेकर आता है जो मजा दिला जाता है. 'एनाबेल क्रिएशन' के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है. फिल्म को डराने के उद्देश्य से बनाया गया है, और अपने इस उद्देश्य में फिल्म सफल रहती है. फिल्म की कहानी थोड़ी कमजोर है लेकिन डायरेक्टर डराने के अपने काम में बखूबी सफल रहा है. हालांकि उन्होंने डराने के ट्रेडिशिनल मेथड ही इस्तेमाल किए हैं लेकिन वे मेथड काम कर जाते हैं और फिल्म हॉरर प्रेमियों के लिए ट्रीट बनकर सामने आती है, जिसमें डरने और सीट से चिपके रहने के कई मौके हैं.
कहानी 1940 के दशक की है. गुड़िया बाने वाला सैमुअल और उसकी बीवी इस्थर अपनी बेटी को हादसे में खो चुके हैं. वो एक सुनसान फार्म हाउस में रहते हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे हॉरर फिल्में होते हैं. फिर एंट्री होती है एक नन और छह अनाथ बच्चों की. उनमें एक बच्ची जेनिस पोलियो की शिकार है, और वह घर में यहां-वहां घूमते हुए, ऐसे कमरे में दाखिल हो जाती है जिसमें कोई नहीं जाता है. इसके बाद चीखो पुकार और दहशत का माहौल शुरू हो जाता है. इस सबके लिए जिम्मेदार है एक गुड़िया. इस तरह से एनाबेल का डरावना खेल सबको अपनी जद मे ले लेता है. फिल्म की पटकथा मजबूत नहीं है लेकिन डराने के लिए जिस तरह सीन्स का इस्तेमाल किया गया है, वह हमेशा से हॉलीवुड की खासियत रहा है. मजेदार यह कि फिल्म में हिलती हुई कुर्सी है, लंबे नाखून वाली चुड़ैल भी दिखती है और तो और अंधेरे में धुआं उड़ता भी दिखता है, यानी हॉरर की पुरानी डोज.
लंबे समय से बॉलीवुड में कोई मबजबूत हॉरर फिल्म नहीं आई है, इस तरह से एनाबेल क्रिएशन जैसी फिल्म हॉरर प्रेमियों के लिए अच्छी डोज है. हॉलीवुड की फिल्में भारत में अच्छा कारोबार कर रही हैं. सैंडबर्ग इससे पहले 'लाइट्स आउट' भी बना चुके है. कमजोर कहानी होने के बावजूद अपने सीन्स की वजह से फिल्म वन टाइम वॉच है.
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