पोस्टर सौजन्य : RelianceEnt@twitter.com
इस शुक्रवार फिल्म '1920 लंदन' रिलीज़ हुई है। यह एक हॉरर फिल्म है और इसके निर्देशक टीनू सुरेश देसाई हैं। इसे लिखा है विक्रम भट्ट ने और यहां यह याद दिलाना ज़रुरी है की अपनी कड़ी में '1920 लंदन' तीसरा भाग है। 2008 में रिलीज़ '1920' रिलीज़ हुई थी जिसका दूसरा सीक्वल 2012 में '1920 ईवल रिटर्न्स' के नाम से आया था। यह एक कामयाब फ्रेंचायज़ी है, अब बात इस फ़िल्म की तीसरी किश्त यानी '1920 लंदन' की जिसमें मुख्य भूमिकाओं में शरमन जोशी, मीरा चोपड़ा, विशाल कंवल और सुरेन्द्र पाल हैं। संगीत है शारिब-तोशी का और बैक ग्राउंड स्कोर अमर मोहिले का है। इस फिल्म के सुबह 10 बजे के शो में सिनेमा हॉल करीब 30% भरा हुआ था। हैरानी की बात है कि इतने लोग, वह भी एक हॉरर फिल्म के सुबह के शो में और वह भी तब जब उसमें ज़्यादा बड़े स्टार्स नहीं हैं।
फिल्म में नयापन नहीं
शायद यह फिल्म के टाइटल '1920' का जादू था जिसके पहले ही 2 कामयाब सीक्वल आ चुके हैं। खैर यह तो बात रही दर्शकों की लेकिन फिल्म की कुछ ख़ामियों की बात करें तो फ़िल्म में अगर भूत होगा तो जादू टोना होगा। उसको भगाने के लिए एक तांत्रिक होगा, डरावने चेहरे होंगे, भूत भाग जाए ऐसी कुछ तरकीब ढ़ूंढनी होगी। एक हॉरर फिल्म के लिए यह सब चीज़ें जायज़ हैं लेकिन उन्हें पेश करने का तरीका क्या फिल्म में कुछ अलग है? क्या आपको फिल्म डरा पाने में कामयाब है? हम हर बार इसी उम्मीद में कोई भी हॉरर फ़िल्म देखने जाते हैं और जब हमारी उम्मीदों पर पानी फिरता है तो हम कहते हैं मज़ा नही आया। ऐसा ही होता है '1920 लंदन' में, न तो स्पेशल इफ़ेक्ट्स में कोई नयापन है और न ही ये फ़िल्म आपको डरा पाने में कामयाब होती है और साथ ही संवाद भी कमज़ोर लगते हैं।
इसके अलावा डायरेक्टर ने कई जगह फिल्म के किरदारों के लुक में एकसमानता पर ध्यान नहीं दिया। रामसे ब्रदर्स के ज़माने की फ़िल्में फिर भी डरा जाती थीं और वह भी तब जब कंप्यूटर ग्राफ़िक्स का वक्त नहीं था। ख़ैर, यह थी ख़ामियां और अब ख़ूबियों पर भी नज़र डाल लेते हैं जिनमे शरमन जोशी की बात करना जरूरी है जो की अपने किरदार में काफी रमे हुए लगते हैं। इसके अलावा कहानी का ढ़ाचा भी ठीक है लेकिन इसकी बारीकियों को बुनने में और मेहनत की ज़रुरत थी। फ़िल्म का इंटरवल प्वॉइंट रोचक है और ट्विस्ट भी दिलचस्प लगता है। मीरा चोपड़ा अपने किरदार में ठीक हैं। इस फिल्म को मिलने चाहिए 2 स्टार्स।
फिल्म में नयापन नहीं
शायद यह फिल्म के टाइटल '1920' का जादू था जिसके पहले ही 2 कामयाब सीक्वल आ चुके हैं। खैर यह तो बात रही दर्शकों की लेकिन फिल्म की कुछ ख़ामियों की बात करें तो फ़िल्म में अगर भूत होगा तो जादू टोना होगा। उसको भगाने के लिए एक तांत्रिक होगा, डरावने चेहरे होंगे, भूत भाग जाए ऐसी कुछ तरकीब ढ़ूंढनी होगी। एक हॉरर फिल्म के लिए यह सब चीज़ें जायज़ हैं लेकिन उन्हें पेश करने का तरीका क्या फिल्म में कुछ अलग है? क्या आपको फिल्म डरा पाने में कामयाब है? हम हर बार इसी उम्मीद में कोई भी हॉरर फ़िल्म देखने जाते हैं और जब हमारी उम्मीदों पर पानी फिरता है तो हम कहते हैं मज़ा नही आया। ऐसा ही होता है '1920 लंदन' में, न तो स्पेशल इफ़ेक्ट्स में कोई नयापन है और न ही ये फ़िल्म आपको डरा पाने में कामयाब होती है और साथ ही संवाद भी कमज़ोर लगते हैं।
इसके अलावा डायरेक्टर ने कई जगह फिल्म के किरदारों के लुक में एकसमानता पर ध्यान नहीं दिया। रामसे ब्रदर्स के ज़माने की फ़िल्में फिर भी डरा जाती थीं और वह भी तब जब कंप्यूटर ग्राफ़िक्स का वक्त नहीं था। ख़ैर, यह थी ख़ामियां और अब ख़ूबियों पर भी नज़र डाल लेते हैं जिनमे शरमन जोशी की बात करना जरूरी है जो की अपने किरदार में काफी रमे हुए लगते हैं। इसके अलावा कहानी का ढ़ाचा भी ठीक है लेकिन इसकी बारीकियों को बुनने में और मेहनत की ज़रुरत थी। फ़िल्म का इंटरवल प्वॉइंट रोचक है और ट्विस्ट भी दिलचस्प लगता है। मीरा चोपड़ा अपने किरदार में ठीक हैं। इस फिल्म को मिलने चाहिए 2 स्टार्स।
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