![रिव्यू : 'डियर जिंदगी' में शाहरुख-आलिया का अभिनय उम्दा पर कहानी न के बराबर रिव्यू : 'डियर जिंदगी' में शाहरुख-आलिया का अभिनय उम्दा पर कहानी न के बराबर](https://i.ndtvimg.com/i/2016-11/alia-bhatt-shahrukh-khan_650x400_71479205100.jpg?downsize=773:435)
फिल्म के एक दृश्य में आलिया भट्ट और शाहरुख खान.
मुंबई:
इस हफ़्ते रिलीज़ हुई 'डियर जिंदगी' की निर्देशक हैं गौरी शिन्दे जो पहले 'इंगलिश विंगलिश' जैसी फिल्म का निर्देशन कर चुकी हैं. 'डियर जिंदगी' में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं आलिया भट्ट, शाहरुख खान, कुणाल कपूर, अली जफर और अंगद बेदी ने. फिल्म में मेहमान भूमिका में हैं आदित्य रॉय कपूर. 'डियर जिंदगी' कहानी है एक सिनेमैटोग्राफर की जो बहुत कुछ करना चाहती है पर उसकी निजी जिंदगी में काफी उथल-पुथल है, उसे अपने लिए एक सच्चे साथी की तलाश है पर हर बार उसकी तलाश शुरू होते ही खत्म हो जाती है. वजह कायरा खुद है या कुछ और यह जानने में उनकी मदद करते हैं डॉक्टर जहांगीर उर्फ जग. यह किरदार निभाया है शाहरुख खान ने... और कायरा की इस कशमकश को अगर आप भी समझना चाहते हैं तो आपको सिनेमाघर का रुख करना होगा. लेकिन यह फिल्म आप देखें या न देखें इसका निर्णय करने में मैं आपकी मदद जरुर करूंगा.
सबसे पहले फिल्म की खामियां
फिल्म की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें कहानी न के बराबर है और मेरे ख्याल में किरदार कितना भी अच्छा हो सिर्फ उसको निहार कर आप अपना वक्त नहीं काट सकते. इस फिल्म में निर्देशक गौरी शिंदे ने आज की युवा महिलाओं की कशमकश पर रोशनी डालने की कोशिश की है और हो सकता है कि कुछ लोग इस किरदार में खुद की छवि देख पाएं. लेकिन हर वर्ग और हर उम्र के लोग इस कहानी के पहलुओं से इत्तेफाक रखें, यह जरुरी नहीं. इस फिल्म में लंबी-लंबी बतचीत आपको उबाऊ लग सकती है, कहीं-कहीं यह आपको थेरेपी क्लास की तरह लग सकती है. सबसे बड़ी बात यह कि आधी से ज्यादा फिल्म आप इस इंतजार में काट देते हैं कि शायद अब कहानी आगे बढ़े, या शायद अब कायरा का किरदार और उसकी व्यथा आपको समझ में आए. लेकिन जब तक आप कायरा का किरदार समझ पाते हैं और जब तक आपको उससे हमदर्दी होती है तब तक फिल्म की डोर हाथ से निकल चुकी होती है. इस फिल्म में कई मुद्दे उठाए गए हैं और उन मुद्दों को आवाज देने के लिए आप मन ही मन लेखक-निर्देशक की तारीफ भी करते है पर उनका फिल्मांकन आपक मजा किरकिरा कर देता है और जिसकी वजह से यह फिल्म आपको धीमी लगेगी.
अब कुछ अच्छी बातें
फिल्म में उठाए गए मुद्दे और इसका विषय मुझे पसंद आया, फिल्म के कई दृश्य आपके दिल को छू जाएंगे खास तौर पर फिल्म का अंत. जैसा मैंने पहले कहा कि कई सीन आपको थेरेपी क्लास लगेंगे पर शाहरुख खान का अभिनय और उनका करिज़्मा इन दृश्यों को थोड़ा रोचक बनाता है. फिल्म में शाहरुख का अभिनय सधा हुआ और डायलॉग सहज हैं. आलिया ने उम्दा अभिनय किया है और उनके साथ बाकी कलाकारों का भी काम अच्छा है खासकर यशस्विनी दायमा का. फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है और यह फिल्म का ज्यादा वक्त भी नहीं खाता. तो कुल मिलाकर यह फिल्म एक ऐसे किरदार की है जो कन्फ्यूज्ड है, और जाहिर है कि ये आपको पर्दे पर भी नजर आना चाहिए पर मुश्किल तब हो जाती है जब इन सब से दर्शक कन्फ्यूज हो जाता है और आप सोचने लगते हैं कि किरदार, कहानी और फिल्म में उठाए गए मुद्दे सब एक सुर मे हैं या नहीं? क्या उनको अच्छे से एक खूबसूरत कहानी में गूथा गया है? मेरे हिसाब से 'डियर जिंदगी' इसमें मात खाती है इसलिए फिल्म को मेरी तरफ से 2.5 स्टार.
सबसे पहले फिल्म की खामियां
फिल्म की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें कहानी न के बराबर है और मेरे ख्याल में किरदार कितना भी अच्छा हो सिर्फ उसको निहार कर आप अपना वक्त नहीं काट सकते. इस फिल्म में निर्देशक गौरी शिंदे ने आज की युवा महिलाओं की कशमकश पर रोशनी डालने की कोशिश की है और हो सकता है कि कुछ लोग इस किरदार में खुद की छवि देख पाएं. लेकिन हर वर्ग और हर उम्र के लोग इस कहानी के पहलुओं से इत्तेफाक रखें, यह जरुरी नहीं. इस फिल्म में लंबी-लंबी बतचीत आपको उबाऊ लग सकती है, कहीं-कहीं यह आपको थेरेपी क्लास की तरह लग सकती है. सबसे बड़ी बात यह कि आधी से ज्यादा फिल्म आप इस इंतजार में काट देते हैं कि शायद अब कहानी आगे बढ़े, या शायद अब कायरा का किरदार और उसकी व्यथा आपको समझ में आए. लेकिन जब तक आप कायरा का किरदार समझ पाते हैं और जब तक आपको उससे हमदर्दी होती है तब तक फिल्म की डोर हाथ से निकल चुकी होती है. इस फिल्म में कई मुद्दे उठाए गए हैं और उन मुद्दों को आवाज देने के लिए आप मन ही मन लेखक-निर्देशक की तारीफ भी करते है पर उनका फिल्मांकन आपक मजा किरकिरा कर देता है और जिसकी वजह से यह फिल्म आपको धीमी लगेगी.
अब कुछ अच्छी बातें
फिल्म में उठाए गए मुद्दे और इसका विषय मुझे पसंद आया, फिल्म के कई दृश्य आपके दिल को छू जाएंगे खास तौर पर फिल्म का अंत. जैसा मैंने पहले कहा कि कई सीन आपको थेरेपी क्लास लगेंगे पर शाहरुख खान का अभिनय और उनका करिज़्मा इन दृश्यों को थोड़ा रोचक बनाता है. फिल्म में शाहरुख का अभिनय सधा हुआ और डायलॉग सहज हैं. आलिया ने उम्दा अभिनय किया है और उनके साथ बाकी कलाकारों का भी काम अच्छा है खासकर यशस्विनी दायमा का. फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है और यह फिल्म का ज्यादा वक्त भी नहीं खाता. तो कुल मिलाकर यह फिल्म एक ऐसे किरदार की है जो कन्फ्यूज्ड है, और जाहिर है कि ये आपको पर्दे पर भी नजर आना चाहिए पर मुश्किल तब हो जाती है जब इन सब से दर्शक कन्फ्यूज हो जाता है और आप सोचने लगते हैं कि किरदार, कहानी और फिल्म में उठाए गए मुद्दे सब एक सुर मे हैं या नहीं? क्या उनको अच्छे से एक खूबसूरत कहानी में गूथा गया है? मेरे हिसाब से 'डियर जिंदगी' इसमें मात खाती है इसलिए फिल्म को मेरी तरफ से 2.5 स्टार.
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