
फिल्म 'बैंक चोर' का एक सीन.
- फिल्म 'बैंक चोर' 3 बैंक चोरों की कहानी है, जो काफी बेवकूफ हैं
- क्लाइमेक्स तक पहुंचते हुए भी समझ नहीं आती फिल्म
- इस फिल्म को मिलते हैं 1.5 स्टार
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इस फिल्म के कुछ अच्छे पहलुओं की बात करें तो फिल्म में दिल्ली के दो किरदारों और मुंबई के एक किरदार की बेवकूफियां और तीनों चोरों के बीच की नोक-झोंक अच्छी लगती हैं. फिल्म में कई जगह थोड़ी हंसी भी आती है. फिल्म का सस्पेंस अच्छा है. पहला भाग खास तौर से बांधकर रखता है. रितेश देशमुख, विवेक ओबेरॉय और विक्रम थापा सहित सभी सह कलाकारों ने भी अच्छा अभिनय किया है.

आपको बता दें कि इस फिल्म को एक कॉमेडी फिल्म की तरह दर्शकों के सामने रखा गया है, मगर यह कॉमेडी फिल्म नहीं है. फिल्म के तीन किरदारों की बेवकूफियों की वजह से बैंक के अंदर फैली थोड़ी अफरातफरी की वजह से कुछ दृश्य मजाकिया बनते हैं. फिल्म का सस्पेंस अच्छा तो है मगर क्लाइमेक्स में है और तब तक काफी देर हो जाती है. दरअसल क्लाइमेक्स तक पहुंचते-पहुंचते ऐसा लगने लगता है कि यह सब क्यों और कैसे हो रहा है. यहां तक कि फिल्म के क्लाइमेक्स को समझने के लिए भी दिमाग लगाना पड़ेगा. इस फिल्म को धूम सीरीज से जोड़कर बेचा गया मगर इसमें न ही वो मसाला है और न ही स्टार फैक्टर.

आज के बहुत सारे लेखक और निर्देशक होशियारी से भरी फिल्म लिखने और बनाने की कोशिश करते हैं लेकिन दर्शक जितनी सरलता से किसी कहानी को समझ जाएं और उनका मनोरंजन हो जाए, उतना ही फिल्म के लिए अच्छा होता है. 'बैंक चोर' को इंटेलीजेंट फिल्म बनाने की नाकाम कोशिश की गई है. इस फिल्म को हमारी तरफ से मिलते हैं 1.5 स्टार.
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