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This Article is From Sep 09, 2017

Shradh 2017: आ गया है पितरों को याद करने का समय, जानें पिंडदान की आवश्यकता और सही विधि...

कहते हैं कि अगर पितरों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिला है, तो उनकी आत्मा भटकती रहती है. इससे उनकी संतानों के जीवन में भी कई बाधाएं आती हैं, इसलिए गया जाकर पितरों का पिंडदान जरूरी माना गया है.

Shradh 2017: आ गया है पितरों को याद करने का समय, जानें पिंडदान की आवश्यकता और सही विधि...
हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान किया जाता है. इस समय अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर पिंडदान होता है. पिंडदान के लिए फल्गु नदी के तट को सबसे अच्छा माना जाता है. यहां पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है. कहा जाता है कि गया में पहले अलग-अलग नामों के 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था. इनमें से अब 48 ही बची है. वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं. यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है. इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख हैं. आइए आपको बताते हैं कि पिंडदान को हिंदू धर्म में जरूरी क्यों माना गया है और इसकी सही विधि‍ क्या है... 

क्या है पिंड
हिंदू मान्यता के अनुसार किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है. प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड माना गया है. पिंडदान के समय मृतक की आत्मा को अर्पित करने के लिए जौ या चावल के आटे को गूंथकर बनाई गई गोलात्ति को पिंड कहते हैं. 
 
श्राद्ध की विधि
श्राद्ध की मुख्य विधि में मुख्य रूप से काम होते हैं- पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज. दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्घा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है. जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उससे विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि इससे पितर तृप्त होते हैं. इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है. 

पितरों का स्थान
पंडों के मुताबिक, शास्त्रों में पितरों का स्थान बहुत ऊंचा बताया गया है. उन्हें चंद्रमा से भी दूर और देवताओं से भी ऊंचे स्थान पर रहने वाला बताया गया है. पितरों की श्रेणी में मृत पूर्वजों, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी सहित सभी पूर्वज शामिल होते हैं. व्यापक दृष्टि से मृत गुरु और आचार्य भी पितरों की श्रेणी में आते हैं.

क्यों है पिंडदान जरूरी
कहते हैं कि अगर पितरों की आत्मा को मोक्ष नहीं मिला है, तो उनकी आत्मा भटकती रहती है. इससे उनकी संतानों के जीवन में भी कई बाधाएं आती हैं, इसलिए गया जाकर पितरों का पिंडदान जरूरी माना गया है.

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