प्रतीकात्मक फोटो
महोली:
देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक और जातीय हिंसा के कारण बढ़ते सामाजिक ध्रुवीकरण के बीच उत्तर प्रदेश का एक छोटा-सा कस्बा भी है. महोली नाम के इस कस्बे में मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे ने आपसी मेल और सद्भाव की अनोखी मिसाल पेश की है. यहां दूषित नदी की सफाई के काम में मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे के सहयोग से तीनों धार्मिक समुदायों के लोग एकजुट हुए हैं.
धार्मिक पर्वों का इस्तेमाल कट्टरता के लिए क्यों?
प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 100 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के महोली कस्बे में प्राचीन शिव और राधा-कृष्ण मंदिर है, जिसके साथ ही प्रज्ञान सत्संग आश्रम है. यहां से कुछ ही दूरी पर एक मस्जिद है. इस धार्मिक समागम परिसर से गुजरती है कथिना नदी, जो आगे चलकर अतिशय दूषित गोमती नदी में मिलती है. गोमती पतित पावनी मगर आज दूषित हो चुकी गंगा की सहायक नदी है.
दर्जनों गांवों के लोगों और वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए कूड़ेदान बन चुकी कथिना नदी से आने वाली बदबू रोज-रोज बढ़ती ही जा रही थी. इसका एक मात्र समाधान था गंगा-जमुनी तहजीब.
एक मुस्लिम ने दी हनुमान मंदिर के लिए जमीन
प्रज्ञान सत्संग आश्रम के प्रमुख स्वामी विज्ञानंद सरस्वती कहते हैं, "नदी पर सबका अधिकार है. हिंदू नदी जल का उपयोग आचमन के लिए करते हैं तो मुस्लिम वजू के लिए. मगर जागरूकता के अभाव में लोग यहां कूड़ा डाल रहे थे और खुले में शौच भी कर रहे थे. स्थिति बदतर बनती जा रही थी. हम खुद सफाई शुरू करें, यही एकमात्र समाधान था.' सरस्वती मस्जिद प्रबंधक समिति के प्रमुख मुहम्मद हनीफ के साथ नदी का निरीक्षण करते हैं.
स्वामी ने बताया कि एक बार जब आश्रम और मंदिर प्रशासन के कार्यकर्ताओं ने सफाई अभियान शुरू किया तो मस्जिद के लोग भी उनकी मदद के लिए आ गए. महोली सिख गुरुद्वारा कमेटी भी आगे आई और अपने साथ सिख समुदाय के कई कार्यकर्ताओं को लाई.
नमाज़ के लिये हिंदू ने दी अपनी जगह
स्वामी ने कहा, 'समुदायों की एकजुटता के साथ ही कार्यकर्ताओं की तादाद में बढ़ोतरी हो गई. इस पहल ने अब पर्यावरण-आंदोलन का रूप ले लिया है, जोकि धार्मिक भावना से प्रेरित है. हमारे प्रयासों को देखकर स्थानीय प्रशासन ने भी मदद का प्रस्ताव दिया. साथ ही, व्यापारियों के समूह और सिख गुरुद्वारा कमेटी ने भी नदी की सफाई में हाथ बंटाया है.'
सिख गुरुद्वारा कमेटी के सदस्य उजागर सिंह ने नदी की सफाई को 'सेवा' का काम बताया है. जाहिर है कि सिख धर्म में सामुदयिक सेवा का विशेष महत्व है.
उन्होंने कहा, 'नदी को स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है और हम इसके लिए अपनी सेवा जारी रखेंगे.'
मुस्लिम पति ने हिन्दू पत्नी की इच्छानुसार मुखाग्नि देकर किया अंतिम संस्कार
कस्बे के थाने के पास स्थित मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण आरक्षी निरीक्षक (पुलिस इंस्पेक्टर) जयकरण सिंह ने करवाया था. यहां तभी से सामुदायिक मेल-मिलाप और उत्साह का सिलसिला चला आ रहा है. नमाज के दौरान आश्रम का लाउडस्पीकर बंद हो जाता है और मंदिर में त्योहारों और विशेष आयोजनों पर मस्जिद कमेटी मंदिर में व्यवस्था कार्य में हाथ बंटाती है.
कार्यकर्ताओं ने बताया कि हिंदू-मुस्लिम संयुक्त दल ने मार्च 2014 में नदी सफाई अभियान शुरू किया और महज तीन दिनों में नदी के सामने पड़ी गंदगी की सफाई कर दी गई.
मुहम्मद हनीफ ने बताया, 'कई गांवों में शौचालय नहीं हैं, इसलिए लोगों को गंदगी फेंकने से रोकने के लिए कार्यकर्ताओं को यहां दिन-रात रहना पड़ता है. काम का विभाजन किया गया है. मुस्लिम कार्यकर्ताओं को मुस्लिम बहुल इलाकों में और हिंदू कार्यकर्ताओं को अन्य इलाकों में लोगों को गंदगी फैलाने से मना करने के लिए तैनात किया गया है.'
मार्च 2017 में करीब 400 कार्यकर्ताओं ने मिलकर नदी के पानी की सफाई की, जबकि तटों की सफाई के कार्य में 700 कार्यकर्ता जुटे थे. नदी से प्लास्टिक, पॉलीथिन, जूते, रबर, जानवरों के कंकाल, शीशे और मिट्टी के बर्तन व पुरानी नावों के कई ट्रॉली मलबे निकाले गए थे।.
महोली कस्बे के स्थानीय निकाय के कार्यकारी अधिकारी सर्वेश शुक्ला ने बताया, 'नदी से कई ट्रॉली फूलदार जलीय पौधा, हायसिंथ निकाला गया. इन पौधों से नदी में पानी के बहाव में रुकावटें आती थीं.' शुक्ला ने कहा कि लोगों की एकजुटता के बिना ऐसा अभियान चलाना संभव नहीं है. मंदिर-मस्जिद के तालमेल से लोगों को सहयोग करने के लिए तैयार करना आसान हो गया. हालांकि छोटे से कस्बे में कचरा प्रबंधन की व्यवस्था खराब होने के कारण स्वामी और हनीफ को प्रशासन की मदद की जरूरत महसूस हुई.
उचित प्रबंधन के बगैर लोगों को नदी में कचरा डालने से रोकने में भविष्य की चुनौतियों के बारे में हनीफ ने कहा, 'हाल ही में कुछ कसाई कचरा लेकर नदी की ओर जा रहे थे. हमने उनको रोका, जिसपर उनके साथ गरमागरमी हो गई. इतने में समुदाय के बुजुर्ग भी आ गए और हमने उनको नदी में कचरा डालने नहीं दिया.'
स्वामी ने कहा कि सफाई अभियान के दूसरे चरण में उनको नदी से गाद निकालने वाली मशीन की जरूरत होगी. मस्जिद कमेटी के अब्दुल रऊफ ने कहा कि अभी महज आधा काम हो पाया है. रऊफ ने कहा, 'स्वच्छता बनाए रखने की चुनौती है. हम नदी के सिर्फ छोटे-से दायरे को साफ कर सकते हैं. एक बार हमारे बड़ भाई स्वामीजी से निर्देश मिलने के बाद हम दोबारा जुटेंगे और दूसरे चरण का सफाई अभियान चलाएंगे.'
करीब एक किलोमीटर के दायरे में नदी की सफाई की गई है. आगे दूसरे किलोमीटर की सफाई का लक्ष्य है. चाहे नदी की बात हो या सांप्रदायिक सद्भाव की, महोली के निवासियों की चुनौती भलाई के काम में निरंतर जुटे रहने की है.
स्थानीय निवासी और मंदिर कमेटी के सदस्य शैलेंद्र मिश्र ने कहा, 'असामाजिक तत्व हर जगह हैं. कुछ सप्ताह पहले, बाहरी संगठन विश्व हिंदू जागरण परिषद के लोग मुस्लिम बहुल इलाके में आए और बदसलूकी करने लगे. इतने में इलाके के हिंदू समुदाय के लोग उनके प्रतिरोध में खड़े हो गए. उसके बाद वह समूह दोबारा नहीं आया.'
पिछले साल सितंबर में दुर्गापूजा के दौरान प्रतिमा विसर्जन और मुहर्रम एक ही दिन होने पर मिश्र और हनीफ के बेटे मुहम्मद रिजवान ने सांप्रदायिक एकता बनाए रखने के लिए मोर्चा संभाला था.
हनीफ ने बताया, 'हमें दोनों समुदायों के शरारती लोगों को दूर रखना था. शक्ति की देवी दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन में करीब 5,000 हिंदू समुदाय के लोग शामिल हुए थे, जबकि मुस्लिमों के ताजिया जुलूस में समुदाय के 2,000 लोग शामिल थे. दोनों जुलूस एक ही समय एक ही रास्ते से गए थे, लेकिन कोई अप्रिय घटना नहीं हुई थी.'
Video: नहीं पहनी टोपी! ये कैसी सद्भावना?Input: IANS
धार्मिक पर्वों का इस्तेमाल कट्टरता के लिए क्यों?
प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 100 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के महोली कस्बे में प्राचीन शिव और राधा-कृष्ण मंदिर है, जिसके साथ ही प्रज्ञान सत्संग आश्रम है. यहां से कुछ ही दूरी पर एक मस्जिद है. इस धार्मिक समागम परिसर से गुजरती है कथिना नदी, जो आगे चलकर अतिशय दूषित गोमती नदी में मिलती है. गोमती पतित पावनी मगर आज दूषित हो चुकी गंगा की सहायक नदी है.
दर्जनों गांवों के लोगों और वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए कूड़ेदान बन चुकी कथिना नदी से आने वाली बदबू रोज-रोज बढ़ती ही जा रही थी. इसका एक मात्र समाधान था गंगा-जमुनी तहजीब.
एक मुस्लिम ने दी हनुमान मंदिर के लिए जमीन
प्रज्ञान सत्संग आश्रम के प्रमुख स्वामी विज्ञानंद सरस्वती कहते हैं, "नदी पर सबका अधिकार है. हिंदू नदी जल का उपयोग आचमन के लिए करते हैं तो मुस्लिम वजू के लिए. मगर जागरूकता के अभाव में लोग यहां कूड़ा डाल रहे थे और खुले में शौच भी कर रहे थे. स्थिति बदतर बनती जा रही थी. हम खुद सफाई शुरू करें, यही एकमात्र समाधान था.' सरस्वती मस्जिद प्रबंधक समिति के प्रमुख मुहम्मद हनीफ के साथ नदी का निरीक्षण करते हैं.
स्वामी ने बताया कि एक बार जब आश्रम और मंदिर प्रशासन के कार्यकर्ताओं ने सफाई अभियान शुरू किया तो मस्जिद के लोग भी उनकी मदद के लिए आ गए. महोली सिख गुरुद्वारा कमेटी भी आगे आई और अपने साथ सिख समुदाय के कई कार्यकर्ताओं को लाई.
नमाज़ के लिये हिंदू ने दी अपनी जगह
स्वामी ने कहा, 'समुदायों की एकजुटता के साथ ही कार्यकर्ताओं की तादाद में बढ़ोतरी हो गई. इस पहल ने अब पर्यावरण-आंदोलन का रूप ले लिया है, जोकि धार्मिक भावना से प्रेरित है. हमारे प्रयासों को देखकर स्थानीय प्रशासन ने भी मदद का प्रस्ताव दिया. साथ ही, व्यापारियों के समूह और सिख गुरुद्वारा कमेटी ने भी नदी की सफाई में हाथ बंटाया है.'
सिख गुरुद्वारा कमेटी के सदस्य उजागर सिंह ने नदी की सफाई को 'सेवा' का काम बताया है. जाहिर है कि सिख धर्म में सामुदयिक सेवा का विशेष महत्व है.
उन्होंने कहा, 'नदी को स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है और हम इसके लिए अपनी सेवा जारी रखेंगे.'
मुस्लिम पति ने हिन्दू पत्नी की इच्छानुसार मुखाग्नि देकर किया अंतिम संस्कार
कस्बे के थाने के पास स्थित मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण आरक्षी निरीक्षक (पुलिस इंस्पेक्टर) जयकरण सिंह ने करवाया था. यहां तभी से सामुदायिक मेल-मिलाप और उत्साह का सिलसिला चला आ रहा है. नमाज के दौरान आश्रम का लाउडस्पीकर बंद हो जाता है और मंदिर में त्योहारों और विशेष आयोजनों पर मस्जिद कमेटी मंदिर में व्यवस्था कार्य में हाथ बंटाती है.
कार्यकर्ताओं ने बताया कि हिंदू-मुस्लिम संयुक्त दल ने मार्च 2014 में नदी सफाई अभियान शुरू किया और महज तीन दिनों में नदी के सामने पड़ी गंदगी की सफाई कर दी गई.
मुहम्मद हनीफ ने बताया, 'कई गांवों में शौचालय नहीं हैं, इसलिए लोगों को गंदगी फेंकने से रोकने के लिए कार्यकर्ताओं को यहां दिन-रात रहना पड़ता है. काम का विभाजन किया गया है. मुस्लिम कार्यकर्ताओं को मुस्लिम बहुल इलाकों में और हिंदू कार्यकर्ताओं को अन्य इलाकों में लोगों को गंदगी फैलाने से मना करने के लिए तैनात किया गया है.'
मार्च 2017 में करीब 400 कार्यकर्ताओं ने मिलकर नदी के पानी की सफाई की, जबकि तटों की सफाई के कार्य में 700 कार्यकर्ता जुटे थे. नदी से प्लास्टिक, पॉलीथिन, जूते, रबर, जानवरों के कंकाल, शीशे और मिट्टी के बर्तन व पुरानी नावों के कई ट्रॉली मलबे निकाले गए थे।.
महोली कस्बे के स्थानीय निकाय के कार्यकारी अधिकारी सर्वेश शुक्ला ने बताया, 'नदी से कई ट्रॉली फूलदार जलीय पौधा, हायसिंथ निकाला गया. इन पौधों से नदी में पानी के बहाव में रुकावटें आती थीं.' शुक्ला ने कहा कि लोगों की एकजुटता के बिना ऐसा अभियान चलाना संभव नहीं है. मंदिर-मस्जिद के तालमेल से लोगों को सहयोग करने के लिए तैयार करना आसान हो गया. हालांकि छोटे से कस्बे में कचरा प्रबंधन की व्यवस्था खराब होने के कारण स्वामी और हनीफ को प्रशासन की मदद की जरूरत महसूस हुई.
उचित प्रबंधन के बगैर लोगों को नदी में कचरा डालने से रोकने में भविष्य की चुनौतियों के बारे में हनीफ ने कहा, 'हाल ही में कुछ कसाई कचरा लेकर नदी की ओर जा रहे थे. हमने उनको रोका, जिसपर उनके साथ गरमागरमी हो गई. इतने में समुदाय के बुजुर्ग भी आ गए और हमने उनको नदी में कचरा डालने नहीं दिया.'
स्वामी ने कहा कि सफाई अभियान के दूसरे चरण में उनको नदी से गाद निकालने वाली मशीन की जरूरत होगी. मस्जिद कमेटी के अब्दुल रऊफ ने कहा कि अभी महज आधा काम हो पाया है. रऊफ ने कहा, 'स्वच्छता बनाए रखने की चुनौती है. हम नदी के सिर्फ छोटे-से दायरे को साफ कर सकते हैं. एक बार हमारे बड़ भाई स्वामीजी से निर्देश मिलने के बाद हम दोबारा जुटेंगे और दूसरे चरण का सफाई अभियान चलाएंगे.'
करीब एक किलोमीटर के दायरे में नदी की सफाई की गई है. आगे दूसरे किलोमीटर की सफाई का लक्ष्य है. चाहे नदी की बात हो या सांप्रदायिक सद्भाव की, महोली के निवासियों की चुनौती भलाई के काम में निरंतर जुटे रहने की है.
स्थानीय निवासी और मंदिर कमेटी के सदस्य शैलेंद्र मिश्र ने कहा, 'असामाजिक तत्व हर जगह हैं. कुछ सप्ताह पहले, बाहरी संगठन विश्व हिंदू जागरण परिषद के लोग मुस्लिम बहुल इलाके में आए और बदसलूकी करने लगे. इतने में इलाके के हिंदू समुदाय के लोग उनके प्रतिरोध में खड़े हो गए. उसके बाद वह समूह दोबारा नहीं आया.'
पिछले साल सितंबर में दुर्गापूजा के दौरान प्रतिमा विसर्जन और मुहर्रम एक ही दिन होने पर मिश्र और हनीफ के बेटे मुहम्मद रिजवान ने सांप्रदायिक एकता बनाए रखने के लिए मोर्चा संभाला था.
हनीफ ने बताया, 'हमें दोनों समुदायों के शरारती लोगों को दूर रखना था. शक्ति की देवी दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन में करीब 5,000 हिंदू समुदाय के लोग शामिल हुए थे, जबकि मुस्लिमों के ताजिया जुलूस में समुदाय के 2,000 लोग शामिल थे. दोनों जुलूस एक ही समय एक ही रास्ते से गए थे, लेकिन कोई अप्रिय घटना नहीं हुई थी.'
Video: नहीं पहनी टोपी! ये कैसी सद्भावना?Input: IANS