हिन्दू धर्म में अमावस्या (Amavasya) का विशेष महत्व है. स्नान, दान और विशेषकर पितरों के तर्पण के लिए अमावस्या को बेहद शुभकारी और मंगलकारी माना जाता है. वैसे तो अमावस्या हर महीने आती है, लेकिन भाद्रपद यानी कि भादो महीने की अमावस्या (Bhadrapad Amavasya) का महत्व बहुत ज्यादा है. दरअसल, भादो कृष्ण के जन्म का महीना है और इस दौरान पड़ने वाली अमावस्या और पूर्णिमा के व्रत का प्रभाव कई गुना माना जाता है. भाद्रपद अमावस्या या पिठोरी अमावस्या (Pithori Amavasya) इसलिए भी खास है क्रूोंकि इस दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा यानी कि घास एकत्रित की जाती है. मान्यता है कि धार्मिक कार्यों के लिए पिठोरी अमावस्या के दिन इकट्ठा की गई घास बहुत फलदाई होती है. इसके अलावा पिठोरी अमावस्या के दिन महिलाएं अपने बच्चों और पति के लिए व्रत रखती हैं और माता दुर्गा की पूजा करती हैं.
पिठोरी अमावस्या कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार भादो महीने की अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहा जाता है. ग्रेगोरियिन कैलेंडर के अनुसार यह अमावस्या हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में आती है.
पिठोरी अमावस्या की तिथि और शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि आरंभ: 29 अगस्त 2019 को शाम 07 बजकर 56 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 30 अगस्त 2019 को शाम 04 बजकर 08 मिनट तक
पिठोरी आमावस्या का महत्व
पिठोरी अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या (Bhadrapad Amavasya) भी कहा जाता है. आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु में पिठोरी अमावस्या (Pithori Amavasya) को पोलाला अमावस्या (Polala Amavasya) कहते हैं. मान्यता के अनुसार मां पार्वती ने इंद्र की पत्नी को पिठोरी अमावस्या का महात्म्य बताते हुए कहा था कि इस व्रत को रखने से बच्चे बहादुर बनते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि मिलती है. यही नहीं भाद्रपद माह की अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिए कुश एकत्रित की जा सकती है. मान्यता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास अगर इस दिन एकत्रित की जाए तो वह साल भर तक पुण्य फलदाई होती है. कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या (Kushgrahini Amavasya) भी कहा जाता है. पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है.
पिठोरी अमावस्या पूजा विधि
- पिठोरी अमावस्या का व्रत केवल विवाहित महिलाएं और मांएं करती हैं.
- इस दिन सुबह उठकर पवित्र नदी में स्नान कर लें. अगर ऐसा न हो जाए तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल छिड़क लें.
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें.
- पीठ का मतलब होता है आटा. इस दिन 64 देवियों की पूजा का विधान है और आटे से इन देवियों की प्रतिमा बनाई जाती है.
- इन सभी 64 देवियों को वस्त्र पहनाएं. बेसन का आटा गूंथकर उससे हार, मांग टीका, चूडी और काने के बाले बनाकर देवी को चढ़ाएं.
- फिर सभी देवियों को एक थाली या पाटे में रख लें और उन पर पुष्प चढ़ाएं.
- पूजा के लिए गुझिया, शक्कर पारे, गुड़ के पारे और मठरी बनाएं और देवियों को भोग लगाएं.
- अब आरती उतारें.
- विधि-विधान से पूजा करने के बाद पंडित जी या घर के बड़े को पूजा के पकवान दें और उनके चरण स्पर्श करें.
- यथा सामर्थ्य पंडित जी को खान खिलाएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें.
भाद्रपद अमावस्या के दिन क्या करें:
व्रत के अलावा भाद्रपद यानी कि पिठोरी अमावस्या के दिन इन धार्मिक कार्यों को करने का विधान है:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य दें.
- फिर बहते जल में तिल प्रवाहित करें.
- पिंडदान करें और यथा सामथ्र्य ब्राह्मणों या गरीबों को दान दें.
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