प्रतीकात्मक चित्र
हालांकि अघोरपंथ हिन्दू धर्म का एक प्राचीन संप्रदाय है, जो सदियों से काफी रहस्यमय और विचित्र माना जाता रहा है। साथ ही, सामान्य व्यक्तियों के लिए अघोरी साधू के लिए मन में सम्मान के साथ-साथ एक भय की होता है।
श्रद्धा इसलिए उत्पन्न होती है कि अघोरियों को महान शिव-साधक समझा जाता है, लेकिन साधना पद्धति बड़ी रहस्यमयी और अजीबोगरीब होती है, जिसे अंग्रेजी में ‘वीयर्ड’ कहा जाता है, इससे लोगों को डर लगता है।
साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ...
लोग मानते हैं कि सामान्य साधू-संतों और कुछ विशेष साधुओं, जैसे नागाओं और वैरागियों के विपरीत अघोरपंथ साधना की एक रहस्यमयी शाखा है। वाकई यह सही भी है, क्योंकि जीवन को जीने का अघोरियों का अपना अपना अलग अंदाज है, अपनी अलग विधि है और उनका अपना विधान है।
कहते हैं कि अघोरी खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं करते हैं। रोटी-चावल मिले, तो रोटी-चावल खा लेते हैं, खीर-पूरी मिले तो खीर-पूरी, बकरा या सूअर मिले तो उसका भी भक्षण कर लेते हैं।
सड़े-गले पशुओं का शव भी खा लेते हैं अघोरी...
कई किस्से-कहानियों में यहां तक जिक्र मिलता है कि अघोरी मानव मल से लेकर मुर्दे के मांस तक का भक्षण कर लेते हैं। सड़े-गले पशुओं का शव भी बिना किसी घृणा या वितृष्णा के खा लेते।
यह कहा जाता है कि साधना की उच्चतम शिखर पाने की राह में वे मानव शव का भक्षण करने से भी नहीं हिचकते हैं। हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है, यह कहना बड़ा मुश्किल है। यह मान्यता भी है है कि अघोरी लोग गाय का मांस का भक्षण नहीं करते हैं।
अघोरियों को कहा जाता है श्मसानवासी...
प्रायः अघोरियों को श्मसानवासी कहा जाता है। इसका कारण शायद यह है कि उनकी साधना में श्मशान का विशेष महत्व है। इसलिए वे अक्सर शमशान में ही वास करना पंसद करते हैं।
कहते हैं अघोरी श्मशान में इसलिए साधना करते हैं कि अलौकिक शक्तियां, आत्माएं आदि उनकी साधना में सहायक होती हैं और उनकी मदद से साधना शीघ्र फलदायी होती हैं। दूसरा कारण यह बताया जाता है कि साधारण मानव श्मशान से दूर-दूर रहते है, इसीलिए साधना में कोई बाह्य विध्न नहीं पड़ता है।
अघोरपंथ की तीन शाखाएं हैं प्रसिद्ध...
उल्लेखनीय है कि भारत में अघोरपंथ की तीन शाखाएं प्रसिद्ध हैं, ये हैं: औघड़, सरभंगी और घुरे। इन तीनों के प्रवर्तक भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं,लेकिन ये सभी शिवसाधक हैं। इनमें कुछ अघोरी शिव और शक्ति दोनों की उपासना भी करते हैं।
यही कारण है कि ये देश के प्राचीन शिव और शक्ति पूजास्थलों, जैसे काशी (वाराणसी), उज्जैन, हरिद्वार, ऋषिकेश, गुप्तकाशी, काली मंदिर (कोलकाता) आदि जगहों पर दिखाई देते हैं। कहते हैं कुछ अघोरी पाकिस्तान स्थित हिंगलाज माता के मंदिर के पास भी साधनारत हैं।
श्रद्धा इसलिए उत्पन्न होती है कि अघोरियों को महान शिव-साधक समझा जाता है, लेकिन साधना पद्धति बड़ी रहस्यमयी और अजीबोगरीब होती है, जिसे अंग्रेजी में ‘वीयर्ड’ कहा जाता है, इससे लोगों को डर लगता है।
साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ...
लोग मानते हैं कि सामान्य साधू-संतों और कुछ विशेष साधुओं, जैसे नागाओं और वैरागियों के विपरीत अघोरपंथ साधना की एक रहस्यमयी शाखा है। वाकई यह सही भी है, क्योंकि जीवन को जीने का अघोरियों का अपना अपना अलग अंदाज है, अपनी अलग विधि है और उनका अपना विधान है।
कहते हैं कि अघोरी खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं करते हैं। रोटी-चावल मिले, तो रोटी-चावल खा लेते हैं, खीर-पूरी मिले तो खीर-पूरी, बकरा या सूअर मिले तो उसका भी भक्षण कर लेते हैं।
सड़े-गले पशुओं का शव भी खा लेते हैं अघोरी...
कई किस्से-कहानियों में यहां तक जिक्र मिलता है कि अघोरी मानव मल से लेकर मुर्दे के मांस तक का भक्षण कर लेते हैं। सड़े-गले पशुओं का शव भी बिना किसी घृणा या वितृष्णा के खा लेते।
यह कहा जाता है कि साधना की उच्चतम शिखर पाने की राह में वे मानव शव का भक्षण करने से भी नहीं हिचकते हैं। हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है, यह कहना बड़ा मुश्किल है। यह मान्यता भी है है कि अघोरी लोग गाय का मांस का भक्षण नहीं करते हैं।
अघोरियों को कहा जाता है श्मसानवासी...
प्रायः अघोरियों को श्मसानवासी कहा जाता है। इसका कारण शायद यह है कि उनकी साधना में श्मशान का विशेष महत्व है। इसलिए वे अक्सर शमशान में ही वास करना पंसद करते हैं।
कहते हैं अघोरी श्मशान में इसलिए साधना करते हैं कि अलौकिक शक्तियां, आत्माएं आदि उनकी साधना में सहायक होती हैं और उनकी मदद से साधना शीघ्र फलदायी होती हैं। दूसरा कारण यह बताया जाता है कि साधारण मानव श्मशान से दूर-दूर रहते है, इसीलिए साधना में कोई बाह्य विध्न नहीं पड़ता है।
अघोरपंथ की तीन शाखाएं हैं प्रसिद्ध...
उल्लेखनीय है कि भारत में अघोरपंथ की तीन शाखाएं प्रसिद्ध हैं, ये हैं: औघड़, सरभंगी और घुरे। इन तीनों के प्रवर्तक भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं,लेकिन ये सभी शिवसाधक हैं। इनमें कुछ अघोरी शिव और शक्ति दोनों की उपासना भी करते हैं।
यही कारण है कि ये देश के प्राचीन शिव और शक्ति पूजास्थलों, जैसे काशी (वाराणसी), उज्जैन, हरिद्वार, ऋषिकेश, गुप्तकाशी, काली मंदिर (कोलकाता) आदि जगहों पर दिखाई देते हैं। कहते हैं कुछ अघोरी पाकिस्तान स्थित हिंगलाज माता के मंदिर के पास भी साधनारत हैं।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं