तीज (Teej) नाच-गाने का त्योहार होता है. इस दिन हरियाली के बीच बागों में झूले लटकाकर उस पर झूलना, हरी रंग की साड़ी और चूड़ियों के साथ सजना. घेवर के साथ सबका मुंह मीठा करना और तीज के गानों के साथ महिलाओं की खास परफॉरमेंस. पति-पत्नी के प्यार के प्रतिक इस हरियाली तीज (Hariyali Teej) को ऐसे ही बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार यह त्योहार 13 अगस्त को है. इस दिन कुंवारी लड़कियां क्या और शादीशुदा महिलाएं क्या, हर कोई नांच-गाने के साथ जश्न मनाता है.
Teej 2018: जानिए हरियाली तीज की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्व
भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित इस हरियाली तीज के मौके पर व्रत रखने की प्रथा है. खासतौर पर इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है. मान्यता है कि सुहागिनों के लिए इस पर्व का खास महत्व है. क्योंकि इस दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाया था, वो भी पूरी 108 साल की घोर तपस्या के बाद. इसीलिए सावन के महीने में पड़ने वाली इस तीज के दिन गौरी-शंकर की पूजा करती हैं ताकि उनकी पति की आयु लंबी हो सके. वहीं, कुवांरी लड़कियों को मनचाहा पति मिल सके.
हरतालिका तीज के बारे में जानिए सबकुछ
अगर आपके घर में भी तीज इसी धूमधाम से मनाई जाती है तो यहां इस त्योहार की कहानी के साथ सुनिए तीज से जुड़े सबसे पॉपुलर गानें. इन गानों को आप अभी से प्ले लिस्ट में जोड़ लें, ताकि ऐन मौके पर सेलिब्रेशन के बीच डांस में खलल ना पड़े.
शिव से मनचाहा वर मांगने का त्योहार है हरतालिका तीज
हरियाली के लिए पहला गाना.
हरियाली के लिए दूसरा गाना.
हरियाली के लिए तीसरा गाना.
हरियाली के लिए चौथा गाना.
हरियाली के लिए पांचवा गाना.
यहां पढ़ें हरियाली तीज की व्रत कथा
हरियाली तीज की व्रत कथा इस प्रकार है: शिवजी कहते हैं, 'हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था. इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था. मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया. तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे. ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे.
जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले- 'हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं. आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं. इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं.' नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी! यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती. मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं.'
शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, 'तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया. लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ. तुम मुझे यानी कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी.
तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई. तुम्हारी सहेली ने सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना. इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए. वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा? उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली.
तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी. श्रावण तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की. इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा, 'पिताजी! मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है. अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे.' पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए. कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया.'
भगवान् शिव ने इसके बाद बताया, 'हे पार्वती! श्रावण शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका. इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं.'
भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा.
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