रंगपंचमी के मौके पर छोटे से गांव करीला की रौनक ही बदल जाती है.
अशोकनगर (म.प्र.):
रंगपंचमी के मौके पर मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले के करीला में स्थित सीता मंदिर का नजारा ही जुदा होता है. यहां लाखों लोगों की मौजूदगी में मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु बेड़नियों का नाच कराते हैं. रंगपंचमी 17 मार्च शुक्रवार को है. करीला मंदिर समिति के अध्यक्ष महेंद्र यादव के अनुसार, रंगपंचमी के मौके पर मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लगभग 25 लाख श्रद्धालु इस मंदिर क्षेत्र में लगने वाले मेले में हिस्सा लेने आते हैं. इस बार भी इतने ही श्रद्धालुओं के आने की संभावना है.
यादव ने कहा, ‘यहां आने वालों की मन्नत पूरी होती है और मन्नत पूरी होने पर अगले वर्ष रंगपंचमी के मेले में बेड़िया जाति की महिलाओं को नचाया जाता है (बेड़िया वह जाति है, जिसका उदर-पोषण नाच गाकर ही चलता है). इस बार रंगपंचमी के मौके पर 17 मार्च को सुबह से देर रात तक यह क्रम चलेगा.’
रंगपंचमी के मौके पर छोटे से गांव करीला की रौनक ही बदल जाती है, यहां लाखों लोग पहुंचकर सीता के मंदिर में गुलाल अर्पित करते हैं और बेड़नियों के नाच में भी खूब गुलाल उड़ाते हैं. रंगपंचमी को यहां आलम यह होता है कि पूरा इलाका होली मय हो जाता है. इस आयोजन में आने वाली भीड़ के मद्देनजर एक तरफ जहां प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं, वहीं मंदिर समिति की तरफ से श्रद्धालुओं के लिए खास व्यवस्था की जाती है.
संभवत: करीला में दुनिया का यह इकलौता मंदिर है, जहां राम के बगैर सीता बिराजी हैं. किंवदंती के मुताबिक, बाल्मीकि के आश्रम में सीता उस दौर में रही थीं, जब राम ने उनका परित्याग कर दिया था और इसी आश्रम में लव-कुश का जन्म भी हुआ था. उस मौके पर उत्सव मनाया गया था, अप्सराओं का नाच हुआ था, उसी तरह की परंपरा आज भी चली आ रही है.
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यादव ने कहा, ‘यहां आने वालों की मन्नत पूरी होती है और मन्नत पूरी होने पर अगले वर्ष रंगपंचमी के मेले में बेड़िया जाति की महिलाओं को नचाया जाता है (बेड़िया वह जाति है, जिसका उदर-पोषण नाच गाकर ही चलता है). इस बार रंगपंचमी के मौके पर 17 मार्च को सुबह से देर रात तक यह क्रम चलेगा.’
रंगपंचमी के मौके पर छोटे से गांव करीला की रौनक ही बदल जाती है, यहां लाखों लोग पहुंचकर सीता के मंदिर में गुलाल अर्पित करते हैं और बेड़नियों के नाच में भी खूब गुलाल उड़ाते हैं. रंगपंचमी को यहां आलम यह होता है कि पूरा इलाका होली मय हो जाता है. इस आयोजन में आने वाली भीड़ के मद्देनजर एक तरफ जहां प्रशासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं, वहीं मंदिर समिति की तरफ से श्रद्धालुओं के लिए खास व्यवस्था की जाती है.
संभवत: करीला में दुनिया का यह इकलौता मंदिर है, जहां राम के बगैर सीता बिराजी हैं. किंवदंती के मुताबिक, बाल्मीकि के आश्रम में सीता उस दौर में रही थीं, जब राम ने उनका परित्याग कर दिया था और इसी आश्रम में लव-कुश का जन्म भी हुआ था. उस मौके पर उत्सव मनाया गया था, अप्सराओं का नाच हुआ था, उसी तरह की परंपरा आज भी चली आ रही है.
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