गीता जयंती 2017: श्रीमद्भगवद्गीता के18 अध्यायों में कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का उपदेश है
नई दिल्ली:
हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बड़ा महत्व है. द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश दिया था. यही वजह है कि इस दिन को गीता जयंती के नाम से जाना है. इस बार गीता जयंती 30 नवंबर को मनाई जाएगी. मान्यता है कि भगवद् गीता का जन्म श्री कृष्ण के मुख से कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था. कलयुग के प्रारंभ होने के 30 साल पहले मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवद् गीता के नाम से प्रसिद्ध है. श्रीमद्भगवद्गीता के18 अध्यायों में से पहले 6 अध्यायों में कर्मयोग, फिर अगले 6 अध्यायों में ज्ञानयोग और अंतिम 6 अध्यायों में भक्तियोग का उपदेश है.
जब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का उपदेश
श्रीमद्भगवद् गीता का जन्म
भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में गीता जयंती धूमधाम के साथ मनाई जाती है. गीता जयंती हमें याद उस पावन उपदेश की याद दिलाती है जो श्रीकृष्ण ने मोह में फंसे हुए अर्जुन को दिया था. गीता के उपदेश सिर्फ उपदेश नहीं बल्कि यह हमें जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं. मान्यता के अनुसार कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन अपने विपक्ष में परिवार के लोगों और सगे-संबंधियों को देखकर बुरी तरह भयभीत हो गए. साहस और विश्वास से भरे अर्जुन महायुद्ध का आरम्भ होने से पहले ही युद्ध स्थगित कर रथ पर बैठ जाते हैं. वो श्री कृष्ण से कहते हैं, 'मैं युद्ध नहीं करूंगा. मैं पूज्य गुरुजनों तथा संबंधियों को मार कर राज्य का सुख नहीं चाहता, भिक्षान्न खाकर जीवन धारण करना श्रेयस्कर मानता हूं.' ऐसा सुनकर सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्य और कर्म के बारें में बताया. उन्होंने आत्मा-परमात्मा से लेकर धर्म-कर्म से जुड़ी अर्जुन की हर शंका का निदान किया.
भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ यह संवाद ही श्रीमद्भगवद गीता है. इस उपदेश के दौरान ही भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखलाकर जीवन की वास्तविकता से उनका साक्षात्कार करवाते हैं. तब से लेकर अब तक गीता के इस उपदेश की सार्थकता बनी हुई है. श्रीकृष्ण के उपदेशों के बाद अर्जुन का मोह भंग हो गया और उन्होंने गांडीव धारण कर शत्रुओं का नाश करने के बाद फिर से धर्म की स्थापना की. जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया उस दिन मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी थी. इस एकदाशी को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है. मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती मनाई जाती है.
गीता जयंती 2017: इन 8 बिंदुओं में जनिए संपूर्ण गीता सार
श्रीमद्भगवद् गीता का महत्व
श्रीमद्भगवद् गीता हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ है. यह विश्व का इकलौता ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है. गीता मनुष्य का परिचय जीवन की वास्तविकता से कराकर बिना स्वार्थ कर्म करने के लए प्रेरित करती है. गीता अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध,काम और लोभ जैसी सांससरिक चीजों से मुक्ति का मार्ग बताती है. इसके अध्ययन, श्रवण, मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता का भाव आता है.
मोक्षदा एकादशी 2017: जानिए पूजा विधि, व्रत कथा और पारण का समय
कैसे मनाई जाती है गीता जयंती
- गीता जयंती के दिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ किया जाता है.
- देश भर के मंदिरों विशेषकर इस्कॉन मंदिर में भगवान कृष्ण और गीता की पूजा की जाती है.
- गीता जयंती के मौके पर कई लोग उपावस रखते हैं.
- गीता के उपदेश पढ़े और सुने जाते हैं.
VIDEO: 'गीता बने राष्ट्रीय धार्मिक ग्रंथ'
जब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का उपदेश
श्रीमद्भगवद् गीता का जन्म
भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में गीता जयंती धूमधाम के साथ मनाई जाती है. गीता जयंती हमें याद उस पावन उपदेश की याद दिलाती है जो श्रीकृष्ण ने मोह में फंसे हुए अर्जुन को दिया था. गीता के उपदेश सिर्फ उपदेश नहीं बल्कि यह हमें जीवन जीने का तरीका सिखाते हैं. मान्यता के अनुसार कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन अपने विपक्ष में परिवार के लोगों और सगे-संबंधियों को देखकर बुरी तरह भयभीत हो गए. साहस और विश्वास से भरे अर्जुन महायुद्ध का आरम्भ होने से पहले ही युद्ध स्थगित कर रथ पर बैठ जाते हैं. वो श्री कृष्ण से कहते हैं, 'मैं युद्ध नहीं करूंगा. मैं पूज्य गुरुजनों तथा संबंधियों को मार कर राज्य का सुख नहीं चाहता, भिक्षान्न खाकर जीवन धारण करना श्रेयस्कर मानता हूं.' ऐसा सुनकर सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्य और कर्म के बारें में बताया. उन्होंने आत्मा-परमात्मा से लेकर धर्म-कर्म से जुड़ी अर्जुन की हर शंका का निदान किया.
भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ यह संवाद ही श्रीमद्भगवद गीता है. इस उपदेश के दौरान ही भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखलाकर जीवन की वास्तविकता से उनका साक्षात्कार करवाते हैं. तब से लेकर अब तक गीता के इस उपदेश की सार्थकता बनी हुई है. श्रीकृष्ण के उपदेशों के बाद अर्जुन का मोह भंग हो गया और उन्होंने गांडीव धारण कर शत्रुओं का नाश करने के बाद फिर से धर्म की स्थापना की. जिस दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया उस दिन मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी थी. इस एकदाशी को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है. मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती मनाई जाती है.
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श्रीमद्भगवद् गीता का महत्व
श्रीमद्भगवद् गीता हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ है. यह विश्व का इकलौता ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है. गीता मनुष्य का परिचय जीवन की वास्तविकता से कराकर बिना स्वार्थ कर्म करने के लए प्रेरित करती है. गीता अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध,काम और लोभ जैसी सांससरिक चीजों से मुक्ति का मार्ग बताती है. इसके अध्ययन, श्रवण, मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता का भाव आता है.
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कैसे मनाई जाती है गीता जयंती
- गीता जयंती के दिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ किया जाता है.
- देश भर के मंदिरों विशेषकर इस्कॉन मंदिर में भगवान कृष्ण और गीता की पूजा की जाती है.
- गीता जयंती के मौके पर कई लोग उपावस रखते हैं.
- गीता के उपदेश पढ़े और सुने जाते हैं.
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