
गीता जयंती के दिन 8 बिंदुओं से जानें गीता सार
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गीता में कुल 18 अध्याय और लगभग 720 श्लोक हैं
आठ बिंदुओं में समझें संपूर्ण गीता सार
दुनिया के सभी सवालों के जवाब गीता में छिपे हैं
ऐसा माना जाता है कि इस दुनिया के सभी सवालों के जवाब भगवत गीता में छिपे हैं. जब भी कोई व्यक्ति अपने मार्ग से भटके या फिर उसे कोई रास्ता दिखाने वाला न मिले तो गीता के उपदेश अवश्य ही उसे रास्ता दिखाएंगे. श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया के वैसे श्रेष्ठ ग्रंथों में है, जो न केवल सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है, बल्कि कही और सुनी भी जाती है. कहते हैं जीवन के हर पहलू को भगवत गीता से जोड़कर व्याख्या की जा सकती है.
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इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि कई लोगों के लिए श्रीमद्भगवद्गीता एक मोटी किताब बनकर रह गई है. खासकर युवा वर्ग तो इसके महात्म्य से पूरी तरह अंजान है. हालांकि कई लोग ऐसे भी हैं जो इसे पढ़ना तो चाहते हैं लेकिन किताब के पन्ने देखकर दूर भागते हैं. यूं तो भागवत गीता में कुल 18 अध्याय और 720 श्लोक हैं, लेकिन यहां पर हम आपको गीता जयंती के अवसर पर आठ बिंदुओं में संपूर्ण गीता सार बता रहे हैं:
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1. क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है.
2. जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा. तुम भूत का पश्चाताप न करो. भविष्य की चिन्ता न करो. वर्तमान चल रहा है.
3. तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया. जो दिया, यहीं पर दिया. जो लिया, इसी (भगवान) से लिया. जो दिया, इसी को दिया.
4. खाली हाथ आए और खाली हाथ चले. जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा. तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो. बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है.
5. परिवर्तन संसार का नियम है. जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है. एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो. मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो.
6. न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो. यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा. परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
7. तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो. यही सबसे उत्तम सहारा है. जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है.
8. जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल. ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा.
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