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This Article is From Apr 10, 2014

चुनाव डायरी : मोदी की लहर, महंगाई का क़हर या फिर जातिवाद ही गांव हर शहर

चुनाव डायरी : मोदी की लहर, महंगाई का क़हर या फिर जातिवाद ही गांव हर शहर
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

बिहार में पहले दौर का मतदान ख़त्म हो चुका है। नक्सल प्रभावित छह संसदीय सीटों के उम्मीदवारों की क़िस्मत का फैसला इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में बंद हो चुका है। वैसे तो मोटे तौर बिहार में जेडीयू, आरजेडी-कांग्रेस और बीजेपी-एलजेपी गठबंधन, तीनों के बीच त्रिकोणीय मुक़ाबला माना जा रहा है। लेकिन बिहार में मोदी की लहर है या फिर ये चुनाव दूसरे फैक्टर्स पर लड़ा जा रहा है, ये चर्चा का अहम मुद्दा है।

पहले दौर के मतदान के बाद जो तस्वीर उभरती है, उसे जेडीयू के लिए कतई उत्साहजनक नहीं माना जा सकता। राज्य में नौ साल से जेडीयू की सरकार है। इस दौरान विकास के कई काम यहां हुए हैं। लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में सड़कों की बदहाली, बिजली की किल्लत, पंचायतों तक फैले भ्रष्टाचार के अलावा शहरी मतदाताओं के लिए महंगाई भी एक बड़ा मुद्दा है।

जब तक जेडीयू-बीजेपी की मिलीजुली सरकार थी तब राज्य सरकार के कामकाज़ पर काफी हद कर पर्दा पड़ा हुआ था। लालू यादव तब मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर मौजूद थे, लेकिन उनके ख़ुद के 15 साल के शासनकाल में बिहार ने बदहाली की जो तस्वीर देखी थी इस वजह से नीतीश सरकार को लेकर उनकी आलोचना को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाता था।

बीजेपी जब सरकार से अलग हुई तब उसने वो विपक्ष की भूमिका में आ गई और उसने नीतीश सरकार पर प्रहार करना शुरू किया। इससे राज्य में सरकार विरोधी माहौल बनना शुरू हुआ।

दूसरी तरफ, महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर जिस तरह से यूपीए सरकार घिरी उससे बिहार के मतदाताओं में भी केन्द्र की सत्ताविरोधी लहर का थपेड़ा पहुंचा। बिहार में कांग्रेस अपनी संगठनात्मक कमज़ोरी के चलते हमेशा बैसाखी का सहारा लेने को मजबूर होती है। इस बार आरजेडी से गठबंधन का सहारा मिला। इससे दोनों पार्टियों को अपने वोट जोड़ने का मौक़ा मिला है।

मुस्लिम और यादव वोटों का समीकरण आरजेडी-कांग्रेस को मज़बूत करता नज़र तो आ रहा है, लेकिन कहीं न कहीं जेडीयू के साथ और कहीं जेडीयू के ख़िलाफ ये वोट बैंक बंटता भी नज़र आ रहा है।

अपने पहले कार्यकाल के दौरान नीतीश ने मुसलमानों की बेहतरी के लिए कई काम किए। ये बात अब भी मुस्लिम मतदाताओं के ज़ेहन में है। बीजेपी के साथ रहते हुए भी मुस्लिम मतदाता नीतीश के साथ रहे और दूसरी बार चुनने में अपनी भूमिका निभाई। ऐसे में जब नीतीश मोदी के नाम पर बीजेपी से अलग हो चुके हैं तो मुसलमानों का एक तबका मानता है कि नीतीश का साथ देने में बुराई नहीं। हालांकि 17 साल तक बीजेपी के साथ होने की सच्चाई भी मुसलमानों के बड़े तबके को नागवार गुज़र रहा है।

कुल मिला कर कहा जाए तो बीजेपी उम्मीदवार को हरा मोदी को रोकने की कोशिश में मुस्लिम मतदाताओं के टैक्टीकल वोटिंग की चर्चा गर्म है। यानि बीजेपी के खिलाफ जहां जेडीयू के जीतने की संभावना ज़्यादा है, वहां जेडीयू को वोट और जहां आरजेडी-कांग्रेस की संभावना ज्यादा हो वहां इस गठबंधन को वोट। लेकिन ये अंतत: आरजेडी-कांग्रेस की संभावना को नुक्सान पहुंचाने वाला ही साबित होगा।

उदाहरण के लिए जमुई सीट को लिया जा सकता है जहां दो बातें कही जा रहीं हैं। अव्वल तो ये कि एलजेपी-बीजेपी के उम्मीदवार चिराग पासवान को हराने के लिए यहां के मुस्लिम मतदाताओं ने अपना पूरा ज़ोर आरजेडी उम्मीदवार सुधांशु शेखर भास्कर के पीछे लगा दिया। वहीं ये भी कहा जा रहा है कि अच्छी ख़ासी तादाद में मुस्लिम वोट जेडीयू के साथ भी गया है। मुसलमान वोट बंटने की ये स्थिति बीजेपी-एलजेपी गठबंधन के लिए संभावना के नए द्वार खोलती है।

सवाल यादव वोट के एकजुट रहने पर भी है। जैसे कि नवादा में आरजेडी के राजबल्लभ यादव और जेडीयू के कौशल यादव के बीच यादव वोटों का बंटवारा लाज़िमी है जिसका फायदा बीजेपी के गिरिराज सिंह को होने की उम्मीद है। यहीं ये बात अहमियत रखती है कि बीजेपी ने अपने उम्मीदवार तय करने में जातीय समीकरण का बखूबी ख़्याल रखा है। ख़्याल तो जेडीयू और आरजेडी ने भी रखा है लेकिन सेकुलरिज़्म का झंडा और जातीय पृष्ठभूमि की समानता के चलते के चलते वे आपस में लड़ते ही ज़्यादा नज़र आ रहे हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि मोदी के मज़बूत प्रचार तंत्र ने भी अपना काम बख़ूबी किया है। ख़ुद मोदी ने केन्द्र के साथ साथ राज्य सरकार पर भी लगातार हमले के ज़रिए ख़ुद को एकमात्र विकल्प के तौर पर पेश करने में क़ामयाबी हासिल की है। कुल मिला कर केन्द्र के खिलाफ गुस्सा और राज्य सरकार से नाराज़गी के बीच बीजेपी को फायदा मिलता नज़र आ रहा है। यही सब फैक्टर मिल कर 'मोदी लहर' के प्रचार को हवा दे रहे हैं। दरअसल अगर मोदी नाम की कोई लहर है तो वह स्वत: स्फूर्त नहीं बल्कि उसकी पैदाईश कहीं न कहीं 'सत्ता विरोधी लहर' में ही छिपी है।

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