यह नाम आपको जरूर चौंकाएगा, लेकिन बिहार के पूर्णियां जिले में एक गांव का नाम है पाकिस्तान टोला। गांव का नाम पाकिस्तान टोला कैसे पड़ा, गांव के लोगों को ठीक ठीक नहीं पता। कुछ बताते हैं कि 1971 की लड़ाई के समय बांग्लादेश के शरणार्थी आए थे। वे पूर्णियां जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर यहां आकर बसे। उनको अपने पसंद का नाम रखने की आजादी दी गई। उन्होंने पाकिस्तान रखा। तभी से यह पाकिस्तान टोला के नाम से जाना जाने लगा।
गांव का नाम कुछ लोगों को अजीब लगता है। इसे बदलने की भी बात हुई, लेकिन सबकी सहमति नहीं बन पाई। गांव के बाशिंदों को लगता है कि यही नाम उनके गांव को अलग पहचान देता है। सबसे दिलचस्प बात है कि नाम बेशक पाकिस्तान हो, लेकिन यहां एक भी मुसलमान नहीं रहता है। यह संथाल आदिवासियों की बस्ती है। यहां करीब दो दर्जन घर हैं। झोपड़ियों की तादाद अधिक है, क्योंकि रसोई घर से लेकर मवेशी रखने तक के लिए यहां लोग बिल्कुल अलग अलग झोपड़ी बनाते हैं।
विकास के नाम पर गांव में कुछ भी नहीं है। सिंघिया पंचायत मुख्यालय से आगे बढ़ने पर पहले ईंट का खरंजा मिलता है। फिर करीब 10 किलोमीटर बिल्कुल कच्ची सड़क है, धूल और गढ्ढे से भरी। गांव में न तो कोई हेल्थ सेंटर है और न ही बच्चों के लिए स्कूल। इलाज के लिए लोग गांव में आने वाले झोलाछाप डाक्टरों के सहारे हैं। लोगों के पास थोड़ी बहुत खेती है, जिससे किसी तरह वे अपना गुजारा करते हैं। गांव के नवयुवकों ने रोजगार का नाम नहीं सुना।
गौरतलब है कि राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के पत्रकारों के बातचीत में इसका खास ज़िक्र किया था। शायद अपनी सेकुलर छवि को चमकाने के लिए, लेकिन गांव के लिए बताते हैं कि न तो सीएम कभी यहां आए और न ही किसी और पार्टी का ही कोई नेता। हां वोट मांगने के लिए जरूर कुछ नेता आते हैं। आमतौर पर वह उम्मीदवार भी नहीं आता। आसपास के गांव के लिए जो तय करते हैं, पाकिस्तान टोला के निवासी भी उसी हिसाब से वोट कर देते हैं।
इस बार अभी तक ना तो कोई आया है और ना ही इन्होंने अपना मन बनाया है। मोदी के नाम पर ये कहते हैं कि अगर सबने यही तय किया, तो उसी को वोट दे देंगे। कुल मिला कर वोट डालना इसके लिए महज औपचारिकता है। वह भी इसलिए कि लोकतंत्र में इनकी आस्था है।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं