प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि एक शादीशुदा महिला घरेलू हिंसा कानून के तहत तब तक सुरक्षा और लाभ की हकदार रहती है जब तक कि पति-पत्नी की शादी खत्म होने का आज्ञा पत्र नहीं मिल जाता है. सत्र अदालत ने एक पुरष के समक्ष इस कानून को साफ किया है. पुरष ने मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी थी. अदालत ने पुरष को उससे अलग रह रही पत्नी को इस आधार पर 5,000 रपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था कि महिला इस पुरष से शादी करने से पहले शादीशुदा थी.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगदीश कुमार ने कहा, ‘मेरा यह मानना है कि जब तक पति और पत्नी की शादी समाप्त नहीं हो जाती है तब तक महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत लाभ और सुरक्षा की अधिकारी है क्योंकि यह अधिनियम महिला के लिए उदार है. हिंदू विवाह अधिनियम के तहत इस मामले में तलाक याचिका दायर हो चुकी है.’ अदालत ने पुरष की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि निचली अदालत के आदेश में कुछ भी न्यायविरूद्ध या अनुचित नहीं है. अदालत ने कहा कि गुजारा भत्ता वाला एक अंतरिम आदेश था जिसे मुख्य याचिका के निपटान के समय संशोधित किया जा सकता है.
पुरष ने निचली अदालत के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि निचली अदालत ने उनकी शादी को लेकर इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि महिला के पहले से शादीशुदा होने की वजह से उन दोनों की शादी अमान्य है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगदीश कुमार ने कहा, ‘मेरा यह मानना है कि जब तक पति और पत्नी की शादी समाप्त नहीं हो जाती है तब तक महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत लाभ और सुरक्षा की अधिकारी है क्योंकि यह अधिनियम महिला के लिए उदार है. हिंदू विवाह अधिनियम के तहत इस मामले में तलाक याचिका दायर हो चुकी है.’ अदालत ने पुरष की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि निचली अदालत के आदेश में कुछ भी न्यायविरूद्ध या अनुचित नहीं है. अदालत ने कहा कि गुजारा भत्ता वाला एक अंतरिम आदेश था जिसे मुख्य याचिका के निपटान के समय संशोधित किया जा सकता है.
पुरष ने निचली अदालत के आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि निचली अदालत ने उनकी शादी को लेकर इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि महिला के पहले से शादीशुदा होने की वजह से उन दोनों की शादी अमान्य है.