फाइल फोटो
नई दिल्ली:
राजधानी दिल्ली में नगर निगम की 13 सीटों के उपचुनाव के रिजल्ट मंगलवार को आ जाएंगे। बीजेपी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तीनों ही अपनी - अपनी जीत के दावे कर रहे हैं, लेकिन हकीकत ये है कि विधानसभा चुनाव में 67 सीटों के प्रचंड बहुमत के बाद आम आदमी पार्टी के लिए उपचुनाव चुनौती है, तो कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई है और विपक्षी पार्टी बीजेपी को तो लगता है कि निगमों के प्रति सरकार का रूखा रवैया उसे क्लीन स्वीप दिलाएगा।
बीजेपी के उम्मीदवारों में से तीन विधायक रह चुके हैं लेकिन पिछले साल हार के बाद गुमनाम हो गए थे। पार्टी ने उन्हें एमसीडी चुनावों में उतारकर इस चुनाव को और महत्वपूर्ण बना दिया है। बीजेपी केंद्र की उपलब्धियों के भरोसे तो है साथ में आम आदमी पार्टी की डेढ़ साल के कामकाज का लेखाजोखा है। बीजेपी का दावा है कि ये चुनाव आम आदमी पार्टी की नाकामियों का लिटमस टेस्ट है।
नगर निगम की 13 सीटों पर उपचुनाव भले ही देखने में छोटा लग रहा है, लेकिन जिस तरह से ये मुकाबला हो रहा है, वो खासा दिलचस्प है। कांग्रेस अपनी खोयी जमीन तलाश रही है। क्योंकि साल 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 में सिर्फ 8 सीटें मिली तो 2015 के चुनाव में पार्टी का खाता तक न खुल सका। अब कांग्रेस को लग रहा है कि आम आदमी पार्टी के डेढ़ साल के कामकाज को जनता देख चुकी है ऐसे में जनता का रुख अब उसकी तरफ होगा।
कुल 13 वार्डों में 94 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं, इनमें सबसे ज्यादा उम्मीदवार कमरूद्दीन नगर वार्ड से 12 और सबसे कम मटियाला और मुनीरका से चार-चार उम्मीदवार हैं। इन वार्डो में उप चुनाव 15 मई को है। चुनावों में मुख्य रूप से मुकाबला बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच है। इनमें से वजीरपुर सीट से खड़ी निर्दलीय उम्मीदवार सुजाता गुप्ता को योगेंद्र यादव की पार्टी स्वराज अभियान ने अपना समर्थन दिया है। स्वराज अभियान का मानना है कि चुनावों में उसके पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर काम करेगा।
आम आदमी पार्टी के हौसले सबसे ज्यादा बुलंद नजर आ रहे हैं। पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा सबसे पहले कर दी थी। जिससे तैयारी में उन्हें पूरा मौका मिला। पार्टी का मानना है कि उसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें मिली हैं। अब डेढ़ साल का उसका शासन है जिसे जनता ध्यान में रखकर वोट करेगी।
वैसे तो तीन एमसीडी और 272 सीटों के हिसाब से ये उपचुनाव इतना महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन जिस तरह से चुनाव के रंग नजर आ रहे हैं उसे देखते हुए ये जरूर लगने लगा है कि ये चुनाव दिल्ली की राजनीति की दशा और दिशा तय करने के लिहाज से खासा अहम है। लेकिन असल में जनता का मूड क्या है इसका पता तो 17 मई को होने वाली गणना के बाद ही पता चलेगा।
बीजेपी के उम्मीदवारों में से तीन विधायक रह चुके हैं लेकिन पिछले साल हार के बाद गुमनाम हो गए थे। पार्टी ने उन्हें एमसीडी चुनावों में उतारकर इस चुनाव को और महत्वपूर्ण बना दिया है। बीजेपी केंद्र की उपलब्धियों के भरोसे तो है साथ में आम आदमी पार्टी की डेढ़ साल के कामकाज का लेखाजोखा है। बीजेपी का दावा है कि ये चुनाव आम आदमी पार्टी की नाकामियों का लिटमस टेस्ट है।
नगर निगम की 13 सीटों पर उपचुनाव भले ही देखने में छोटा लग रहा है, लेकिन जिस तरह से ये मुकाबला हो रहा है, वो खासा दिलचस्प है। कांग्रेस अपनी खोयी जमीन तलाश रही है। क्योंकि साल 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 में सिर्फ 8 सीटें मिली तो 2015 के चुनाव में पार्टी का खाता तक न खुल सका। अब कांग्रेस को लग रहा है कि आम आदमी पार्टी के डेढ़ साल के कामकाज को जनता देख चुकी है ऐसे में जनता का रुख अब उसकी तरफ होगा।
कुल 13 वार्डों में 94 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं, इनमें सबसे ज्यादा उम्मीदवार कमरूद्दीन नगर वार्ड से 12 और सबसे कम मटियाला और मुनीरका से चार-चार उम्मीदवार हैं। इन वार्डो में उप चुनाव 15 मई को है। चुनावों में मुख्य रूप से मुकाबला बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के बीच है। इनमें से वजीरपुर सीट से खड़ी निर्दलीय उम्मीदवार सुजाता गुप्ता को योगेंद्र यादव की पार्टी स्वराज अभियान ने अपना समर्थन दिया है। स्वराज अभियान का मानना है कि चुनावों में उसके पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर काम करेगा।
आम आदमी पार्टी के हौसले सबसे ज्यादा बुलंद नजर आ रहे हैं। पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा सबसे पहले कर दी थी। जिससे तैयारी में उन्हें पूरा मौका मिला। पार्टी का मानना है कि उसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें मिली हैं। अब डेढ़ साल का उसका शासन है जिसे जनता ध्यान में रखकर वोट करेगी।
वैसे तो तीन एमसीडी और 272 सीटों के हिसाब से ये उपचुनाव इतना महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन जिस तरह से चुनाव के रंग नजर आ रहे हैं उसे देखते हुए ये जरूर लगने लगा है कि ये चुनाव दिल्ली की राजनीति की दशा और दिशा तय करने के लिहाज से खासा अहम है। लेकिन असल में जनता का मूड क्या है इसका पता तो 17 मई को होने वाली गणना के बाद ही पता चलेगा।
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