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This Article is From Feb 13, 2017

भारत रंग महोत्सव में रामकथा का बघेली में हुआ मंचन

भारत रंग महोत्सव में रामकथा का बघेली में हुआ मंचन
नई दिल्‍ली: बघेली में बोलते हुए राम और हां, राम नहीं हितकारी. राम कथा भारतीय जनमानस में व्याप्त है और इस जनमानस की भोगौलिक और मानसिक स्तर पर जितनी विविधता है उतनी ही विविधता रामकथा के स्वरूप में भी है. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में चल रहे 19वें भारत रंग महोत्सव में रामकथा के विविध स्वरूप को भिन्न तरीक़ों से मंचित होते हुए देखा जा सकता है. इस सिलसिले में ‘आनंद रघुनन्दन’ का मंचन भोपाल में स्थित मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ़ ड्रामा के प्रशिक्षुओं ने किया. इसका निर्देशन किया है संजय उपाध्याय ने जो स्कूल के भी निदेशक हैं. नाटक लिखा है विश्वनाथ सिंह ने जो रीवा के राजा थे. इस नाटक को हिंदी के शुरुआती आधुनिक नाटकों में माना जाता है. कुछ लोग इसे हिंदी का पहला नाटक भी मानते हैं. इसके प्रकाशित संस्करण भी दुर्लभ हैं. मंचन के लिए बघेली भाषा में अनुवादित करने वाले योगेश त्रिपाठी ने बताया कि 1960 के आस पास की प्रति निजी संग्रहों में मिलती है. लगभग डेढ़ सौ साल पुराने नाटक का यह पहला मंचन है. नाटक के मंचन के समय विद्यालय के छात्र बघेलखंड के अध्ययन के लिए उसी इलाके में थे इसलिए प्रस्तुति के लिए बघेली भाषा को चुना गया.

इस रामकथा की प्रेरणा तुलसी की रामायण है. कथा का क्रम है रामजन्म, रामविवाह, वनवास, सीता की खोज और रावण विजय लेकिन इसमे लोककथा के अंशों को भी जोड़ा गया है. चरित्रों के नाम बदले हुए हैं, इसमें राम ‘हितकारी’ हैं, लक्ष्मण ‘दिलधराधर’ हैं, और भरत ‘जगतकारी’. दशरथ ‘दिकजान’ है तो रावण ‘दिगसिर’. हनुमान हैं ‘त्रेतामल’ तो सुग्रीव हैं ‘सुगल’. सीता यहां महिजा हैं और कैकेयी ‘कश्मीरी’. और कुछ नवीन घटनाक्रम भी हैं. राम सीता को उसके हरण से पहले ही अग्नि में वास करने के लिये कह देते हैं और उनकी जगह सीता का प्रतिरूप लेती है. लक्ष्मण यहां रावण का बाण लगने से घायल होते हैं और राम बाली को सीधे युद्ध में पराजित करते हैं छल से नहीं, बाली की पत्नी राम को शाप भी देती हैं.
 
ramkatha in bagheli 650

प्रस्तुति टोटल थियेटर की भाषा में है यानी गीत, संगीत, नृत्य से युक्त. संगीत में शहनाई, नगाड़ा और सारंगी का प्रयोग प्रतिपल बदलते दृश्य को संवेदनात्मक पृष्ठभूमि देता है. दो घंटे में कमानी का मंच तेज़ी से राजमहल, जंगल, मिथिला, पंचवटी, लंका में बदलता रहता है. प्रकाश का खेल और कुछ नाटकीय युक्तियां प्रस्तुति में आकर्षण जोड़ते हैं. जैसे कि रस्सी से लक्ष्मण रेखा खींचते हैं, जब रावण उस रेखा से बाहर आने के लिये कहता है तो सीता के इशारे से वो रेखा पीछे हट जाती है. ऐसे कई दृश्य हैं जो चमत्कार जैसे लगते हैं.

संजय उपाध्याय ने रंगमंच की आधुनिक युक्तियों, बघेलखंड की लोककलाओं और संस्कृत रंगमंच की रूढ़ियों के मिश्रण से एक प्रवाहमय रंगभाषा रची है जो दर्शक को मोह लेती है. अभिनेता प्रशिक्षु हैं लेकिन पेशेवर की तरह अभिनय करते हैं. मंच पर इतने कलाकार और इतनी सामग्रियां हैं लेकिन उनका प्रबंधन उतना ही सधा हुआ है. राम और लक्ष्मण का चरित्र तीन अभिनेता निभाते हैं जो उनके अलग अलग उम्र और मानसिक अवस्था को दिखाता है. धनुष भंग के दृश्य में नवाचार है जिसमें अभिनेता ही धनुष बने हुये हैं. इस धनुष को टूटते हुए देखना एक अनुभव है. इस प्रस्तुति को देखना रंगमंच के जादू से गुजरना है इसकी और प्रस्तुतियां होनी चाहिए.

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