एमएस धोनी की तरह ही विराट कोहली की भी असली समस्या ओपनर और गेंदबाज हैं (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
टीम इंडिया के फैन्स खुश. क्रिकेट विशेषज्ञ खुश. पूर्व क्रिकेटर और साथी खिलाड़ी खुश. लेकिन इन सबके बीच वही कुछ खास खुश नहीं है, जिसकी कप्तानी में टीम इंडिया ने लंबे समय बाद धमाकेदार प्रदर्शन किया है. हम जिनकी चर्चा कर रहे हैं वह हैं टेस्ट मैचों में एक के बाद एक पांच सीरीज जीत दिला चुके कप्तान विराट कोहली (Virat Kohli), जो अब टीम इंडिया की वनडे और टी-20 के भी कप्तान हैं. ऐसा नहीं है कि टीम वनडे में अच्छा नहीं खेल रही थी, लेकिन इसमें में भी उसका प्रदर्शन प्रभावी नहीं था. हम न्यूजीलैंड से बमुश्किल सीरीज जीत पाए थे. अब जबिक टीम इंडिया ने इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में 2-0 की बढ़त हासिल कर ली है, तो भी कप्तान विराट कोहली खुश नजर नहीं आ रहे और उनकी नजर टीम में सुधार पर है. उन्हें टीम की वह कमजोरियां साफ नजर आ रही हैं, जो धमाकेदार प्रदर्शनों के बीच छिप गई हैं. जानते हैं आखिर क्या हैं टीम की वास्तविक समस्याएं..
विराट कोहली ने एमएस धोनी की कप्तानी में काफी समय तक खेला है और उन्होंने टीम में आए कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. टीम इंडिया का वैसे यही चरित्र रहा है, वह कभी ऊंचाइयां छूने लगती है, तो कभी अचानक ही धरातल पर आ जाती है. जब वह संकट में होती है, तो कोई न कोई खिलाड़ी संकटमोचक बन जाता है और कई बार वह हारते-हारते भी जीत जाती है. वैसे देखा जाए तो इंग्लैंड के खिलाफ दोनों वनडे में टीम इंडिया का काफी हद तक यही हाल रहा है. (...तो क्या कैंसर को भी मात दे चुके युवराज सिंह हार मानकर संन्यास के बारे में सोचने लगे थे!)
पुणे में खेले गए पहले मैच में जब गेंदबाजों ने जमकर रन लुटाते हुए इंग्लैंड को 350 रन बनाने का अवसर दे दिया, तो विराट कोहली और केदार जाधव की करिश्माई पारियों से टीम को जीत मिली, जबकि उसका टॉप ऑर्डर फेल हो गया था और 63 रन पर ही 4 विकेट गिर गए थे. दूसरे वनडे में तो उसका और बुरा हाल रहा, 25 रन पर ही पहले तीन विकेट लौट गए. फिर लक्ष्य का पीछा करते समय गेंदबाजों ने एक बार फिर रन लुटाए और इंग्लैंड जीत के काफी करीब पहुंच गया. हालांकि अंत में भुवनेश्वर कुमार की सधी हुई गेंदबाजी ने बचा लिया. ऐसे में कोई भी जुझारू कप्तान जो हमेशा जीतना चाहता है, वह इस बात को अच्छी तरह समझता है कि जिस प्रकार से टीम हार के करीब पहुंचकर जीती है, उसमें किस्मत का साथ नहीं होने पर हार भी सकती है.
यह है मुख्य चिंता का कारण
विराट कोहली ने टीम के सबसे अनुभवी स्टार खिलाड़ियों युवराज सिंह (Yuvraj Singh) और एमएस धोनी (MS Dhoni) की बल्लेबाजी की भरपूर प्रशंसा की, लेकिन वह इस दौरान नाखुश भी नजर आए. कोहली की नाखुशी जायज भी है, क्योंकि सामने चैंपियन्स ट्रॉफी है और टीम इंडिया के पास अपना सही संयोजन तलाशने के लिए अब एक ही वनडे बाकी है. हालांकि अभी टीम को तीन टी-20 भी खेलने हैं, लेकिन इन दोनों फॉर्मेट में काफी अंतर है. वास्तव में कोहली की नाखुशी का कारण युवी-धोनी नहीं बल्कि टीम के ओपनर हैं, जो दोनों ही मैचों में फेल रहे. टीम इंडिया के वनडे स्क्वाड में तीन ओपनर हैं- अजिंक्य रहाणे, लोकेश राहुल और शिखर धवन. तीनों ही बल्लेबाज हाल ही में चोट के बाद वापसी कर रहे हैं. युवराज सिंह और एमएस धोनी ने 25 रन पर 3 विकेट गिरने के बाद 256 रन जोड़कर संभाल लिया (फाइल फोटो)
ओपनिंग के लिए राइट और लेफ्ट का संयोजन सबसे बेहतर माना जाता है. इसी को ध्यान में रखते हुए विराट कोहली ने पहले दोनों मैचों में शिखर धवन और लोकेश राहुल को आजमाया, लेकिन दोनों फेल रहे. धवन ने तो टेस्ट मैचों के बाद अब वनडे में निराश करना शुरू कर दिया है, लेकिन लोकेश राहुल तो तीनों फॉर्मेट में धमाल मचा रहे थे, पर इस बार उन्होंने भी निराश किया और बेहद लूज शॉट खेलकर आउट हुए. राहुल ने जहां महज 8 रन, तो वहीं शिखर धवन ने 10 गेंदों पर 1 रन बनाए. भारत में ऐसा 12 साल बाद हुआ, जब पुणे वनडे में भारतीय ओपनर टीम के लिए 10 रन भी नहीं जोड़ पाए. इससे पहले भारत के ओपनरों ने 2005 में हैदराबाद में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ऐसा किया था. उस वक्त दोनों मात्र 3 रन जोड़ पाए थे.
विराट कोहली ने चैंपिन्स ट्रॉफी से पहले ओपनिंग को लेकर कहा, ‘चैंपियन्स ट्राफी से पहले यह सीरीज जीतना महत्वपूर्ण है. हमारे लिए अब खुद को बेहतर तरीके से पेश करना और सर्वश्रेष्ठ ओपनिंग जोड़ी तैयार करना महत्वपूर्ण है.' शिखर धवन लगातार फ्लॉप हो रहे हैं, जबकि रोहित शर्मा चोटिल हैं (फाइल फोटो)
ओपनर फेल होने से क्या होती है सम्स्या
वास्तव में टीम के ओपनर यदि शुरुआती ओवरों में ही लौट जाते हैं, तो इससे मिडिल ऑर्डर पर अतिरिक्त दबाव आ जाता है. इंग्लैंड के खिलाफ दोनों वनडे में ऐसा हो चुका है. पुणे वनडे दोनों ओपनर लोकेश राहुल और शिखर धवन 5.5 ओवर में ही लौट गए थे, जबकि कटन वनडे में यही दोनों 4.4 ओवर में चले गए. इससे दोनों ही बार मध्यक्रम के सामने नई गेंद को खेलनी की चुनौती खड़ी हो गई, जो क्रिकेट में अच्छा नहीं माना जाता. ओपनरों का काम ही नई गेंद की चमक को कम करना होता है और उनको इसमें महारत होती है. वह तो भला हो कि एक मैच में अनुभवी विराट, तो दूसरे मैच में उनसे भी अनुभवी युवराज-धोनी ने पारी संभाल ली.
25 प्रतिशत पीछे...
वास्तव में विराट कोहली को टीम की क्षमताएं पता हैं, तभी तो उन्होंने कहा कि टीम अभी अपना 100 प्रतिशत प्रदर्शन भी नहीं कर पा रही है. उन्होंने टॉप ऑर्डर की कमजोरी बताते हुए कहा कि यदि यह भी चल जाए, तो सोचिए टीम इंडिया कैसा स्कोर बनाती.
विराट कोहली ने कटक मैच के बाद कहा, ‘हम अपनी क्षमता का 75 प्रतिशत ही प्रदर्शन कर पाए. यदि टॉप ऑर्डर ने भी अच्छा प्रदर्शन किया होता, तो हम इससे बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे. मुझे हैरानी इस पर हो रही है कि अगर हमें अच्छी शुरुआत मिलती तो फिर हमारा स्कोर क्या होता.’ उन्होंने कहा, ‘दो महान खिलाड़ियों ने बखूबी मोर्चा संभाला. तीन विकेट पर 25 रन से 381 रन तक पहुंचना बेजोड़ है नहीं तो क्या हश्र होता, मुझे पता है.’
गेंदबाजी भी है एक समस्या
हालांकि विराट कोहली ने गेंदबाजों का मैच के बाद बचाव किया, लेकिन इतने बड़े स्कोर के बावजूद लक्ष्य का बचाव नहीं कर पाना चिंता का विषय है. भले ही टीम हारी नहीं हो, लेकिन विरोधी टीम लक्ष्य के करीब तो पहुंच ही गई थी. इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में स्पिन विकेट पर शानदार गेंदबाजी करने वाले हमारे गेंदबाज सपाट विकेट पर प्रभावी नहीं दिखे. वास्तव में गेंदबाजों की असली परीक्षा तो सपाट विकेट पर ही होती है, जिसमें लाइन-लेंथ का खासा महत्व होता है. ऑस्ट्रेलिया के महान गेंदबाज ग्लेन मैग्राथ को याद कीजिए. मैक्ग्रा किसी भी विकेट पर रन रोक देते थे, लेकिन भारतीय गेंदबाज अपने ही विकेटों पर रन लुटा रहे हैं.
तेज गेंदबाजी की कमान संभाल रहे उमेश यादव का प्रदर्शन तो बहुत ही निराशाजनक रहा था. उमेश ने 7 ओवर में 9 के इकोमोनी रेट से 63 रन दिए थे. हालांकि कटक में उन्हें मौका नहीं दिया गया. यॉर्कर के उस्ताद जसप्रीत बुमराह ने भी पुणे में 10 ओवर में 79 रन खर्च कर दिए थे, वहीं कटक में 9 ओवर में 81 रन खर्च कर दिए. हार्दिक पांड्या ने 6 ओवर में 60 रन लुटा दिए. कटक में इंग्लैंड ने अंतिम 10 ओवरों में 97 रन ठोके और लक्ष्य के काफी करीब पहुंच गया था. ऐसे में गेंदबाजी में भी सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है.
विराट कोहली ने एमएस धोनी की कप्तानी में काफी समय तक खेला है और उन्होंने टीम में आए कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. टीम इंडिया का वैसे यही चरित्र रहा है, वह कभी ऊंचाइयां छूने लगती है, तो कभी अचानक ही धरातल पर आ जाती है. जब वह संकट में होती है, तो कोई न कोई खिलाड़ी संकटमोचक बन जाता है और कई बार वह हारते-हारते भी जीत जाती है. वैसे देखा जाए तो इंग्लैंड के खिलाफ दोनों वनडे में टीम इंडिया का काफी हद तक यही हाल रहा है. (...तो क्या कैंसर को भी मात दे चुके युवराज सिंह हार मानकर संन्यास के बारे में सोचने लगे थे!)
पुणे में खेले गए पहले मैच में जब गेंदबाजों ने जमकर रन लुटाते हुए इंग्लैंड को 350 रन बनाने का अवसर दे दिया, तो विराट कोहली और केदार जाधव की करिश्माई पारियों से टीम को जीत मिली, जबकि उसका टॉप ऑर्डर फेल हो गया था और 63 रन पर ही 4 विकेट गिर गए थे. दूसरे वनडे में तो उसका और बुरा हाल रहा, 25 रन पर ही पहले तीन विकेट लौट गए. फिर लक्ष्य का पीछा करते समय गेंदबाजों ने एक बार फिर रन लुटाए और इंग्लैंड जीत के काफी करीब पहुंच गया. हालांकि अंत में भुवनेश्वर कुमार की सधी हुई गेंदबाजी ने बचा लिया. ऐसे में कोई भी जुझारू कप्तान जो हमेशा जीतना चाहता है, वह इस बात को अच्छी तरह समझता है कि जिस प्रकार से टीम हार के करीब पहुंचकर जीती है, उसमें किस्मत का साथ नहीं होने पर हार भी सकती है.
यह है मुख्य चिंता का कारण
विराट कोहली ने टीम के सबसे अनुभवी स्टार खिलाड़ियों युवराज सिंह (Yuvraj Singh) और एमएस धोनी (MS Dhoni) की बल्लेबाजी की भरपूर प्रशंसा की, लेकिन वह इस दौरान नाखुश भी नजर आए. कोहली की नाखुशी जायज भी है, क्योंकि सामने चैंपियन्स ट्रॉफी है और टीम इंडिया के पास अपना सही संयोजन तलाशने के लिए अब एक ही वनडे बाकी है. हालांकि अभी टीम को तीन टी-20 भी खेलने हैं, लेकिन इन दोनों फॉर्मेट में काफी अंतर है. वास्तव में कोहली की नाखुशी का कारण युवी-धोनी नहीं बल्कि टीम के ओपनर हैं, जो दोनों ही मैचों में फेल रहे. टीम इंडिया के वनडे स्क्वाड में तीन ओपनर हैं- अजिंक्य रहाणे, लोकेश राहुल और शिखर धवन. तीनों ही बल्लेबाज हाल ही में चोट के बाद वापसी कर रहे हैं.
ओपनिंग के लिए राइट और लेफ्ट का संयोजन सबसे बेहतर माना जाता है. इसी को ध्यान में रखते हुए विराट कोहली ने पहले दोनों मैचों में शिखर धवन और लोकेश राहुल को आजमाया, लेकिन दोनों फेल रहे. धवन ने तो टेस्ट मैचों के बाद अब वनडे में निराश करना शुरू कर दिया है, लेकिन लोकेश राहुल तो तीनों फॉर्मेट में धमाल मचा रहे थे, पर इस बार उन्होंने भी निराश किया और बेहद लूज शॉट खेलकर आउट हुए. राहुल ने जहां महज 8 रन, तो वहीं शिखर धवन ने 10 गेंदों पर 1 रन बनाए. भारत में ऐसा 12 साल बाद हुआ, जब पुणे वनडे में भारतीय ओपनर टीम के लिए 10 रन भी नहीं जोड़ पाए. इससे पहले भारत के ओपनरों ने 2005 में हैदराबाद में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ऐसा किया था. उस वक्त दोनों मात्र 3 रन जोड़ पाए थे.
विराट कोहली ने चैंपिन्स ट्रॉफी से पहले ओपनिंग को लेकर कहा, ‘चैंपियन्स ट्राफी से पहले यह सीरीज जीतना महत्वपूर्ण है. हमारे लिए अब खुद को बेहतर तरीके से पेश करना और सर्वश्रेष्ठ ओपनिंग जोड़ी तैयार करना महत्वपूर्ण है.'
ओपनर फेल होने से क्या होती है सम्स्या
वास्तव में टीम के ओपनर यदि शुरुआती ओवरों में ही लौट जाते हैं, तो इससे मिडिल ऑर्डर पर अतिरिक्त दबाव आ जाता है. इंग्लैंड के खिलाफ दोनों वनडे में ऐसा हो चुका है. पुणे वनडे दोनों ओपनर लोकेश राहुल और शिखर धवन 5.5 ओवर में ही लौट गए थे, जबकि कटन वनडे में यही दोनों 4.4 ओवर में चले गए. इससे दोनों ही बार मध्यक्रम के सामने नई गेंद को खेलनी की चुनौती खड़ी हो गई, जो क्रिकेट में अच्छा नहीं माना जाता. ओपनरों का काम ही नई गेंद की चमक को कम करना होता है और उनको इसमें महारत होती है. वह तो भला हो कि एक मैच में अनुभवी विराट, तो दूसरे मैच में उनसे भी अनुभवी युवराज-धोनी ने पारी संभाल ली.
25 प्रतिशत पीछे...
वास्तव में विराट कोहली को टीम की क्षमताएं पता हैं, तभी तो उन्होंने कहा कि टीम अभी अपना 100 प्रतिशत प्रदर्शन भी नहीं कर पा रही है. उन्होंने टॉप ऑर्डर की कमजोरी बताते हुए कहा कि यदि यह भी चल जाए, तो सोचिए टीम इंडिया कैसा स्कोर बनाती.
विराट कोहली ने कटक मैच के बाद कहा, ‘हम अपनी क्षमता का 75 प्रतिशत ही प्रदर्शन कर पाए. यदि टॉप ऑर्डर ने भी अच्छा प्रदर्शन किया होता, तो हम इससे बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे. मुझे हैरानी इस पर हो रही है कि अगर हमें अच्छी शुरुआत मिलती तो फिर हमारा स्कोर क्या होता.’ उन्होंने कहा, ‘दो महान खिलाड़ियों ने बखूबी मोर्चा संभाला. तीन विकेट पर 25 रन से 381 रन तक पहुंचना बेजोड़ है नहीं तो क्या हश्र होता, मुझे पता है.’
गेंदबाजी भी है एक समस्या
हालांकि विराट कोहली ने गेंदबाजों का मैच के बाद बचाव किया, लेकिन इतने बड़े स्कोर के बावजूद लक्ष्य का बचाव नहीं कर पाना चिंता का विषय है. भले ही टीम हारी नहीं हो, लेकिन विरोधी टीम लक्ष्य के करीब तो पहुंच ही गई थी. इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में स्पिन विकेट पर शानदार गेंदबाजी करने वाले हमारे गेंदबाज सपाट विकेट पर प्रभावी नहीं दिखे. वास्तव में गेंदबाजों की असली परीक्षा तो सपाट विकेट पर ही होती है, जिसमें लाइन-लेंथ का खासा महत्व होता है. ऑस्ट्रेलिया के महान गेंदबाज ग्लेन मैग्राथ को याद कीजिए. मैक्ग्रा किसी भी विकेट पर रन रोक देते थे, लेकिन भारतीय गेंदबाज अपने ही विकेटों पर रन लुटा रहे हैं.
तेज गेंदबाजी की कमान संभाल रहे उमेश यादव का प्रदर्शन तो बहुत ही निराशाजनक रहा था. उमेश ने 7 ओवर में 9 के इकोमोनी रेट से 63 रन दिए थे. हालांकि कटक में उन्हें मौका नहीं दिया गया. यॉर्कर के उस्ताद जसप्रीत बुमराह ने भी पुणे में 10 ओवर में 79 रन खर्च कर दिए थे, वहीं कटक में 9 ओवर में 81 रन खर्च कर दिए. हार्दिक पांड्या ने 6 ओवर में 60 रन लुटा दिए. कटक में इंग्लैंड ने अंतिम 10 ओवरों में 97 रन ठोके और लक्ष्य के काफी करीब पहुंच गया था. ऐसे में गेंदबाजी में भी सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है.
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