IND VS SL:.तो क्या 'इसीलिए' विराट कोहली को बीसीसीआई से सालाना 25 करोड़ रुपये मिलने चाहिए?

क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ए ग्रेड में शामिल किसी भारतीय टॉप क्रिकेटर मसलन विराट कोहली, या धोनी की सालाना फीस कितनी हो सकती है. बता दें कि वास्तव में यह पांच या दस करोड़ नहीं बल्कि इससे कहीं ज्यादा बनती है!!

IND VS SL:.तो क्या 'इसीलिए' विराट कोहली को बीसीसीआई से सालाना 25 करोड़ रुपये मिलने चाहिए?

विराट कोहली

खास बातें

  • क्या खिलाड़ियों को मिलेगा 'उनका अधिकार'?
  • कब मिलेगा क्रिकेटरों को पूरा 26 फीसदी हिस्सा?
  • प्रशासकीय कमेटी मानेगी विराट की मांग?
नई दिल्ली:

विराट एंड कंपनी और बीसीसीआई के बीच सालाना वेतन का मुद्दा धीरे-धीरे अपने चरम की ओर चल पड़ा है. गुरुवार को ही कोहली ने कोच रवि शास्त्री और महेंद्र सिंह धोनी के साथ प्रशासकीय समिति के चेयरमैन विनोद राय के साथ मिलकर खिलाड़ियों को बीसीसीआई के राजस्व में ज्यादा हिस्सा दिए जाने की बात कही. विनोद राय ने इस पर विचार करने का आश्वासन भी दिया है, लेकिन यह मसला आसानी से हल होता दिखाई नहीं पड़ रहा. वास्तव में पेंच कई जगह फंसे हैं और इन्हें 'ढीले करने' के लिए बोर्ड के अाला अधिकारी शायद ही राजी हों! लेकिन अगर यह पेंच 'ढीले' हो जाएं हो जाए, तो कहा जा सकता है कि बीसीसीआई से अनुबंंधित ए ग्रेड के क्रिकेटर की सालाना फीस कम से कम 25 करोड़ रुपये हो सकती है. 

पेंच की कहानी हम आगे आपको बताएंगे, लेकिन पहले बता दें कि बीसीसीआई के संविधान के अनुसार बोर्ड अपने कुल राजस्व का 70 फीसदी हिस्सा घरेलू राज्य इकाइयों और 26 फीसदी खिलाड़ियों को देता है. इस 26 में से 13 फीसदी इंटरनेशनल क्रिकेटरों और 10.6 हिस्सा घरेलू क्रिकेटरों को चला जाता है. वहीं बचा करीब 2.4 फीसदी राजस्व जूनियर क्रिकेटरों और महिला खिलाड़ियों को दिया जाता है. तीस में से शेष चार फीसदी राजस्व स्टेडियमों के निर्माण, रख-रखाव और प्रशासकीय खर्चों में चला जाता है. बहरहाल इस फॉर्मूले को पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने साल 2004 में पूर्व क्रिकेटरों अनिल कुंबले और राहुल द्रविड़ से बातचीत के बाद ही हरी झंडी दिखाई थी.

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लेकिन साल 2008 में आईपीएल शुरू होने के बाद खिलाड़ियों की मांगों के साथ-साथ तेवर भी बदल गए. वहीं हाल ही में आईपीएल के चार साल के करीब 16,000 करोड़ रुपये में बिके प्रसारण अधिकार के बाद खिलाड़ियों की सोच अपने हिस्से
को लेकर धीरे-धीरे और आक्रामक और मुखर होती जा रही है, लेकिन यह मुद्दा इतनी आसानी से हल होने वाला नहीं है. दरअसल पेंच कई फंसे हैं. पहला पेंच तो यही है कि खिलाड़ियों को दिए जाने वाला कुल राजस्व 70 में से बाकी बचे 30 फीसदी के राजस्व में से दिया जाता है, बोर्ड के कुल राजस्व में नहीं. दूसरा पेंच यह है कि दिए जाने वाले 26 फीसदी राजस्व में मीडिया, या प्रसारण अधिकारों (टीवी, इंटरनेट और मोबाइल) से हासिल होने वाली कमाई को शामिल नहीं किया जाता. जबकि आईपीएल के प्रसारण अधिकारों की बिक्री से मिले पैसे को खिलाड़ियों को दिए जाने वाले हिस्से में शामिल करने की बात ही स्वप्न सरीखी लगती है.

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वहीं, खिलाड़ियों को प्रायोजन अधिकार और आईसीसी प्रतियोगिताओं से मिली रकम में से भी बहुत ही मामूली हिस्सा मिलता है. लेकिन अब अब विराट एंड कंपनी चाहती है कि खिलाड़ियों को बोर्ड को प्रसारण अधिकारों से होने वाली मोटी कमाई से भी हिस्सा मिले. मतलब भारतीय टीम के प्रसारण अधिकार और आईपीएल दोनों के ही प्रसारणअधिकार से. ध्यान दिला दें कि टीम इंडिया के इंटरनेशनल मैच और आईपीएल दोनों के ही प्रसारण अधिकार स्टार स्पोर्ट्स के पास हैं. भारतीय टीम के मैचों के जुलाई 2012 से मार्च 2018 तक मीडिया अधिकार (टीवी, इंटरनेट और मोबाइल) के लिए स्टार स्पोर्ट्स ने करीब 37,00 करोड़ रुपये चुकाए थे.  इससे एक अंतरराष्ट्रीय मैच बीसीसीआई के लिए औसत 40 करोड़ रुपये लेकर आता है.  

इसका अर्थ यह है कि हर साल सिर्फ टीम इंडिया के प्रसारण अधिकार से ही बीसीसीआई को करीब सवा छह सौ करोड़ रुपये आते हैं. इस रकम का 26 फीसदी करीब 160 करोड़ रुपये बैठता है. इस रकम का 13 फीसदी यानी अस्सी करोड़ रुपये बैठता है. अब आप खुद ही सोचिए कि अगर सिर्फ यही 80 करोड़ रुपये इंटरनेशनल खिलाड़ियों को सालाना मिल जाएं, तो हर खिलाड़ी के हिस्से में कितनी ज्यादा रकम आएगी. वहीं, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब बीसीसीआई इन्हीं प्रसारण अधिकारों का हिस्सा खिलाड़ियों के साथ नहीं बांट रहा, तो वह आईपीएल के प्रसारण अधिकारों से मिली भारी भरकम 16,000 करोड़ रुपये की रकम को खिलाड़ियों के साथ साझा करने का बड़ा दिल कैसे दिखाएगा. आप देखिए कि 16000 करोड़ का 26 फीसदी 4160 करोड़ रुपये बैठता है.

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अगर इस रकम को सालाना आमदनी में तब्दील की जाए, तो 832 करोड़ रुपये बैठती है. इस 832 करोड़ रुपये का मतलब यह है कि इस सालाना 26 फीसदी का 13 फीसदी 416 करोड़ रुपये हो जाता है. सोचिए कि अगर यह 416 करोड़ रुपये  सिर्फ भारतीय टीम के तीनों ग्रेडों में शामिल खिलाड़ियों को बांटी जाए, तो ग्रेड ए में शामिल शीर्ष आठ या दस खिलाड़ियों में से प्रत्येक के हिस्से में कम से कम 20  करोड़ रुपये तो आएंगी ही! वहीं, अगर इसमें टीम इंडिया के प्रसारण अधिकार और साल में खेले जाने वाले मैचों (प्रति टेस्ट-15 लाख, वनडे-6 लाख, टी-20-3 लाख रुपये) को इस रकम में शामिल कर लिया जाए, तो यह सालाना फीस कम से कम 25 करोड़ रुपये हो जाती है. एक तरह से यह रकम बीसीसीआई के संविधान (26 फीसदी) के अनुसार (प्रसारण अधिकारों को खिलाड़ियों के हिस्से में शामिल करने पर, जो कि नहीं हैं) ही बनती  है, लेकिन यह हकीकत कम ख्वाब ज्यादा दिखाई पड़ती है. ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर विराट कोहली ग्रेड के खिलाड़ियों के लिए दो की जगह सालाना पांच करोड़ रुपये दिए जाने की मांग कर रहे हैं, तो क्या गलत कर रहे हैं. 

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बहरहाल, अब जबकि बीसीसीआई की सत्ता सुप्रीम कोर्ट के हाथ में होने के बाद हालात बदल रहे हैं, तो अब देखने वाली बात यही होगी कि क्या खिलाड़ियों को बोर्ड के संविधान और नियम के अनुसार उनका वास्तविक 26 फीसदी का हिस्सा मिलता भी है, या नहीं क्योंकि अभी भी प्रसारण अधिकारों में 26 फीसदी हिस्सा भारतीय खिलाड़ियों की झोली में गिरने की राह बिल्कुल भी आसान नहीं दिख रही. 


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