टीम इंडिया के गेंदबाजों ने एक बार फिर निराश किया (फाइल फोटो)
मेजबान ऑस्ट्रेलिया ने एक बार फिर टीम इंडिया को करारी मात दी। इस जीत के साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने पांच मैचों की वनडे सीरीज में 3-0 से अजेय बढ़त बना ली। टीम इंडिया के फैन एक बार फिर निराश हैं। आखिर टीम को सफलता क्यों नहीं मिल पा रही है। हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस मैच में हम कहां पीछे रह गए।
फील्डिंग का घटिया स्तर : माना जाता है कि युवाओं के आने से टीम की फील्डिंग सुधरती है, लेकिन यहां उल्टा होता हुआ दिख रहा है। लगातार तीसरे मैच में हमारी फील्डिंग कम से कम इंटरनेशनल स्तर की तो बिल्कुल भी नहीं थी। हमने न केवल कैच छोड़ा बल्कि हमारी ग्राउंड फील्डिंग भी खराब रही। हमने रोके जा सकने वाले शॉट भी बाउंड्री के बाहर जाने दिए। सपाट विकेट पर जब विकेट नहीं मिल रहे हों, तो फील्डिंग ही दबाव बनाने का तरीका होता है, क्योंकि रन नहीं बनने पर बल्लेबाज गलत शॉट खेलने को मजबूर हो जाता है और विकेट दे बैठता है।
बॉलिंग के तो क्या कहने! : माना कि अब तक के सभी मैचों में विकेट सपाट रहे, लेकिन भारत में भी वनडे में हम ऐसे ही विकेट पर खेलते हैं। ऐसे में हमें सपाट विकेट पर विकटे-टू-विकेट की रणनीति पर बॉलिंग करनी चाहिए थी, जबकि हमारे गेंदबाजों ने हर कहीं गेंदें फेंकी। इसका नतीजा यह रहा कि ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों को खुलकर खेलने का मौका मिल गया और हमारे हिस्से में एक और हार आ गई। 77 वनडे खेलकर 107 विकेट अपने नाम कर चुके सीनियर गेंदबाज ईशांत शर्मा भी लाइन लेंथ को तरसते दिखे। न केवल मेलबर्न बल्कि ब्रिस्बेन में भी उनका यही हाल था। उमेश यादव ने विकेट जरूर लिया, लेकिन उनकी भी दिशा सही नहीं थी। कम से कम इस गेंदबाजी यूनिट से तो हमें जीत दिलाने की आस छोड़ ही देनी चाहिए।
धीमी बल्लेबाजी : मेलबर्न में तीन भारतीय बल्लेबाज स्कोर करने में सफल रहे। यदि आप उनके रन देखेंगे, तो आपको लगेगा कि उन्होंने गजब की बैटिंग की है, लेकिन जैसे ही आप उनके स्ट्राइक रेट पर नजर दौड़ाएंगे, तो आपको लगेगा कि जैसे हम मॉडर्न क्रिकेट खेल ही नहीं रहे हैं। विराट कोहली ने शतक जरूर बनाया, लेकिन उन्होंने 117 रन बनाने के लिए 117 गेंदें खेलीं। उनके स्तर के बल्लेबाज का स्ट्राइक रेट 100 से अधिक होने की आशा की जाती है। अजिंक्य रहाणे ने 50 रन बनाने के लिए 55 गेंदें खेलीं, वहीं अपनी ससुराल के मैदान पर खेले शिखर धवन का तो और बुरा हाल रहा। धवन ने 68 रन बनाने के लिए 91 गेंदें खेल डालीं।
अब इस बीच यदि आप न्यूजीलैंड और पाकिस्तान के बीच रविवार को हुए मैच या हाल ही में हुए उनके अन्य मैचों पर नजर डालेंगे, तो आपको लगेगा कि जैसे हमारे बल्लेबाज टेस्ट मैच खेल रहे थे। इस मैच में मार्टिन गप्टिल ने 58 गेंदों में 87 रन और केन विलियम्सन ने 48 गेंदों में 72 रन ठोके और टीम को 10 विकेट से जीत दिला दी। माना कि यह टी-20 मैच था, लेकिन वनडे के आखिरी ओवरों में भी टी-20 की तरह ही बल्लेबाजी करनी होती है, खासतौर से जब विकेट हाथ में हों। गौरतलब है कि 40 ओवर तक टीम इंडिया के 207 रन पर दो विकेट ही गिरे थे, जबकि 30 ओवर तक हमने दो विकेट पर 147 रन बनाए थे। इस प्रकार 30-40 ओवर के बीच में हमने बिना विकेट खोए महज 60 बनाए, अन्यथा हम 300 से अधिक का लक्ष्य खड़ा कर लेते।
टीम चयन/कप्तानी: आप कह सकते हैं कि धोनी और टीम प्रबंधन ने दो नए खिलाड़ियों (ऋषि धवन और गुरकीरत सिंह) को मौका दिया, लेकिन उन्हें उमेश यादव की जगह भुवनेश्वर कुमार को प्लेइंग इलेवन में रखना चाहिए था, क्योंकि सपाट विकेट पर लाइन-लेंथ पर गेंद फेंकने वाले गेंदबाज की जरूरत होती है।