टीम इंडिया के मुंबई वनडे के साथ ही सीरीज हारने के 5 कारण

टीम इंडिया के मुंबई वनडे के साथ ही सीरीज हारने के 5 कारण

एमएस धोनी (फाइल फोटो)

लंबे समय से वनडे सीरीज में जीत का इंतजार कर रही टीम इंडिया को एक बार फिर झटका लगा। मुंबई में पांच वनडे मैचों की सीरीज के अंतिम और निर्णायक मैच में दक्षिण अफ्रीका ने टीम इंडिया को बुरी तरह पराजित किया। गौरतलब है कि साल 2015 में टीम जिम्बाब्वे सीरीज को छोड़कर कोई भी वनडे सीरीज नहीं जीत सकी है। यहां तक कि उसे बांगलादेश जैसी 7वीं रैंकिंग की टीम भी हरा चुकी है। मुंबई वनडे में जहां टीम इंडिया ने बॉलिंग और फील्डिंग में स्तरहीन प्रदर्शन किया, वहीं बैंटिंग भी आशा के अनुरूप नहीं रही। इस मैच और पूरी सीरीज में टीम के हार के ये पांच कारण रहे :

रन देने के मामले में भुवी का शतक, अन्य गेंदबाज भी पिटे
गेंदबाजी में टीम इंडिया की उम्मीद मीडियम पेसर भुवनेश्वर कुमार से रहती है, लेकिन उन्होंने सबको निराश किया। उनकी दिशाहीन गेंदबाजी पर दक्षिण अफ्रीका के प्लेयर्स ने ऐसी बैटिंग की जैसे वे किसी घरेलू क्रिकेट के गेंदबाज के खिलाफ खेल रहे हों। टीम इंडिया का कोई भी गेंदबाज नहीं चला। भुवनेश्वर कुमार ने तो गेंदबाजी में रन देने का शतक बना दिया। उन्होंने 10 ओवर में एक विकेट लेकर 106 रन दिए। उनके अलावा पिछले मैच के हीरो रहे तीनों स्पिनरों की भी जमकर पिटाई हुई। टीम इंडिया के सबसे किफायती गेंदबाज सुरेश रैना रहे, उन्होंने 3 ओवर में 19 रन देकर एक विकेट लिया। यदि पूरी सीरीज की बात करें तो भी दो मैचों में स्पिनरों को छोड़कर अन्य गेंदबाजों ने निराश किया।

घटिया फील्डिंग, चार कैच छूटे
टीम इंडिया की फील्डिंग एक बार फिर सवालों में रही। टीम ने एक नहीं बल्कि चार कैच छोड़े। मोहित शर्मा ने शतकवीर ओपनर क्विंटन डि कॉक का कैच छोड़ा, जबकि अजिंक्य रहाणे ने डु प्लेसिस का कैच 45 के निजी स्कोर पर छोड़ दिया, वहीं अमित मिश्रा ने भी डु प्लेसिस का कैच 85 के स्कोर पर टपका दिया, डु प्लेसिस ने भी शतक बनाया। सुरेश रैना ने बेहारदीन कैच छोड़ा, हालांकि वे ज्यादा रन नहीं बना सके और 16 रन पर आउट हो गए। टीम की फील्डिंग का यही हाल लगभग पूरी सीरीज में रहा। हमने सीरीज के अन्य मैचों में रनआउट के मौके गंवाए और कैच भी छोड़े।

स्तरहीन बल्लेबाजी, कोहली का जल्दी आउट होना
जहां दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों ने आसानी से शॉट खेले और तीन शतक लगाए, वहीं टीम इंडिया के दो विकेट 44 रन पर ही गिर गए, जबकि टीम को लंबी साझेदारी की जरूरत थी। 439 रन के विशाल लक्ष्य का पीछा करने के लिए तेज और लंबी साझेदारी की जरूरत थी। लक्ष्य का पीछा करने में विराट कोहली का टिकना जरूरी रहता है, क्योंकि दूसरी पारी में उनका औसत अधिक बेहतर है, लेकिन वे जल्दी आउट हो गए। शिखर धवन ने 59 गेंदों में 60 रन बनाए, लेकिन यह जरूरत के मुताबिक नहीं था। अजिंक्य रहाणे ने जरूर कुछ संघर्ष किया और 87 रन बनाए, लेकिन अन्य किसी ने उनका साथ नहीं दिया। यदि सीरीज की बात करें, तो टीम को फिनिशर की कमी खली, क्योंकि एमएस धोनी में अब वह दम नहीं दिखता, जो उनमें हुआ करता था। एक मैच तो हम उनकी वजह से ही हार गए।

स्ट्रोक प्लेयर की कमी
दक्षिण अफ्रीका की टीम में लंबी हिट लगाने वाले कई खिलाड़ी हैं। क्विंटन डि कॉक ने जहां तेज और सधी हुई पारी खेली, वहीं फॉफ डु प्लेसिस और एबी डिविलियर्स ने बीच के ओवरों में रन गति कम नहीं होने दी और विशाल स्कोर खड़ा कर दिया। टीम इंडिया में बीच के ओवरों में स्ट्रोक प्लेयर की कमी महसूस की गई। टीम में ऐसा कोई बल्लेबाज नहीं रहा जो टिकने के साथ ही डिविलयर्स की तरह लंबी और क्लीन हिट लगा सके। दक्षिण अफ्रीका के शतक बनाने वाले हर खिलाड़ी ने कम गेंदों पर अधिक रन बनाए, जबकि रहाणे को छोड़कर हमारे बल्लेबाजों का स्ट्राइक रेट आधुनिक वनडे क्रिकेट के अनुरूप नहीं रहा। हमने अधिक गेंदें खेलीं और कम रन बनाए, जबकि इस लक्ष्य के लिए कम से कम 120 से अधिक का स्ट्राइक रेट चाहिए था।

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आखिरी के 10 ओवरों में 150 रन लुटाए, लक्ष्य हुआ पहुंच से दूर
टीम इंडिया ने एक बार फिर आखिरी के ओवरों में जबर्दस्त रन लुटाए। हमारे गेंदबाजों ने 41 से 50 ओवर के बीच 144 रन दिए। यानी हमने लगभग 14 रन प्रति ओवर की दर से रन दिए, जिससे स्कोर 400 रन को पार गया। यह एक असंभव लक्ष्य था। हालांकि दक्षिण अफ्रीका इससे पहले 400 से ऊपर के लक्ष्य का पीछा करके ऑस्ट्रेलिया को हरा चुका है। स्लॉग ओवरों में गेंदबाजी की हमारी पुरानी समस्या रही है। हमारे पास ऐसा कोई गेंदबाज नहीं है, जो स्लॉग ओवरों में रन गति पर अंकुश लगा सके।