वाराणसी:
धर्म की नगरी वाराणसी में गंगा किनारे आस्था और विश्वास का अटूट संगम का नज़ारा उस वक़्त देखने को मिला जब यहां के तुलसी घाट पर गंगा कुछ समय के लिए यमुना में परिवर्तित हो गई और गंगा तट वृन्दावन के घाट में बदल गए. मौक़ा था कार्तिक मास में होने वाले लगभग 450 वर्ष पुराने श्री कृष्ण लीला की श्रृंखला में नागनथैया लीला के आयोजन का.
लीला को देखने के लिए गंगा तट के तुलसी घाट पर लाखों की भीड़ जुटी. नागनथैया त्योहार तुलसी घाट पर मनाया गया. इस दौरान देश के विभिन्न भागों के पर्यटकों सहित विदेशी मेहमानों ने लुत्फ़ उठाया.
श्री कृष्णलीला में लाखों भक्तों की भीड़ आस्था और श्रद्धा में सारबोर रही. आज के युग में इस लीला का उद्देश्य मात्र यह है कि गंगा को कालियानाग रूपी प्रदूषण से मुक्त करना है.
450 वर्ष पुरानी है परंपरा
कला और संस्कृति की नगरी वाराणसी में ये परंपरा 450 वर्ष पुरानी है जो कि कार्तिक मास की नाग चतुर्थी को हर साल यहां होती है. नाग नथैया का ये मेला गोस्वामी तुलसी दास जी के द्वारा शुरू किया गया था, तभी से ये लीला तुलसी घाट पर होती चली आ रही है.
लीला को देखने के लिए गंगा तट के तुलसी घाट पर लाखों की भीड़ जुटी. नागनथैया त्योहार तुलसी घाट पर मनाया गया. इस दौरान देश के विभिन्न भागों के पर्यटकों सहित विदेशी मेहमानों ने लुत्फ़ उठाया.
श्री कृष्णलीला में लाखों भक्तों की भीड़ आस्था और श्रद्धा में सारबोर रही. आज के युग में इस लीला का उद्देश्य मात्र यह है कि गंगा को कालियानाग रूपी प्रदूषण से मुक्त करना है.
450 वर्ष पुरानी है परंपरा
कला और संस्कृति की नगरी वाराणसी में ये परंपरा 450 वर्ष पुरानी है जो कि कार्तिक मास की नाग चतुर्थी को हर साल यहां होती है. नाग नथैया का ये मेला गोस्वामी तुलसी दास जी के द्वारा शुरू किया गया था, तभी से ये लीला तुलसी घाट पर होती चली आ रही है.
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