हैदराबाद:
हैदराबाद में होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे एक छात्र की गिरफ्तारी के साथ ही अवैध अंग व्यापार के एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है। तेलंगाना में नालगोंडा पुलिस के मुताबिक, कस्पराजू सुरेश नाम के इस 22 वर्षीय छात्र ने पहले तो अपनी किडनी बेची और फिर 15 अन्य लोगों को भी इसकी लालच दी।
पुलिस का कहना है कि सुरेश की गिरफ्तारी से एक बड़े अंतरराष्ट्रीय किडनी रैकेट का भंडाफोड़ किया है, जो कि कोलंबो से चला करता था। पुलिस के मुताबिक, सुरेश नवंबर 2014 में ineedkidney.com नाम की वेबसाइट पर पहुंचा और फिर इस साइट पर हुए संपर्क के बाद वह जांच के लिए गुजरात गया। वहां जांच में पास होने के बाद एक एजेंट ने उसके लिए पासपोर्ट और वीजा का बंदोबस्त किया और उसे कोलंबो भेज दिया गया। वहां उसकी एक किडनी निकाल ली गई और इसके ऐवज में उसे पांच लाख रुपये दिए गए।
कोलंबो के एक अस्पताल में चार महीने आराम करने के बाद वह भारत लौटा और यहां खुद इस रैकेट का एक एजेंट बन गया। दैनिक मजदूर के बेटा सुरेश ने फिर कार में घूमने लगा और आलिशान जिंदगी जीने लगा।
पुलिस का कहना है कि उसने 20 से ज्यादा लोगों को अपने जाल में फांसा और महाराष्ट्र या गुजरात में टेस्ट के लिए भेजा, जहां पर इस धंधे के दलाल भोपाल निवासी अंबरीश और अहमदाबाद का प्रताप काम करते थे। बताया तो यह भी जाता है कि इन लोगों ने सोशल मीडिया साइट और व्हाट्सऐप का भी इस्तेमाल अपने धंधे को बढ़ाने के लिए किया। इस मामले में तीन और लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसमें नालगोंडा के अब्दुल हफीज उर्फ कासिम, महेश और नरेश है। ये तीनों दानकर्ता हैं।
इस पूरे गोरखधंधे का खुलासा तब हुआ जब हफीज के परिवार को शक हुआ कि नौकरी छोड़ने के बाद भी उसकी लाइफस्टाइल काफी बदल गई थी। उसने कार खरीदी। उसने अपने परिवार को बताया कि उसने सुरेश के माध्यम से किडनी बेची है। इसके बाद परिवार का सुरेश से झगड़ा हुआ, जिसके बाद मामला पुलिस के पास पहुंचा।
पिछले एक महीने में केवल सुरेश के माध्यम से 15 लोगों ने अपनी किडनी बेची। इनमें चार नालगोंडा, चार हैदराबाद, चार बैंगलुरु, दो तमिलनाडु और एक-एक मुंबई तथा दिल्ली का है। एजेंट के माध्यम से पासपोर्ट और वीजा भी उपलब्ध कराया जाता है। यह सब सर्जरी कोलंबो में की गई।
बताया जाता है कि क्लाइंट से एक किडनी के 27 लाख रुपये लिए जाते थे और इसमें से आधे अस्पताल रख लेता था। बाकी रुपयों से दानकर्ता के आने जाने और रहने का खर्च आदि दिया जाता है और पांच लाख रुपये किडनी दानकर्ता को मिलते थे। कहा जाता है कि एक केस में एजेंट के 50,000 रुपये बन जाते थे।
इस गोरखधंधे में कथित रूप से कोलंबो के तीन अस्पताल लिप्त हैं। इस मामले में आईपीसी की धाराओं और एपी अंग प्रत्यर्पण कानून के तहत केस दर्ज किया गया है।
पुलिस का कहना है कि सुरेश की गिरफ्तारी से एक बड़े अंतरराष्ट्रीय किडनी रैकेट का भंडाफोड़ किया है, जो कि कोलंबो से चला करता था। पुलिस के मुताबिक, सुरेश नवंबर 2014 में ineedkidney.com नाम की वेबसाइट पर पहुंचा और फिर इस साइट पर हुए संपर्क के बाद वह जांच के लिए गुजरात गया। वहां जांच में पास होने के बाद एक एजेंट ने उसके लिए पासपोर्ट और वीजा का बंदोबस्त किया और उसे कोलंबो भेज दिया गया। वहां उसकी एक किडनी निकाल ली गई और इसके ऐवज में उसे पांच लाख रुपये दिए गए।
कोलंबो के एक अस्पताल में चार महीने आराम करने के बाद वह भारत लौटा और यहां खुद इस रैकेट का एक एजेंट बन गया। दैनिक मजदूर के बेटा सुरेश ने फिर कार में घूमने लगा और आलिशान जिंदगी जीने लगा।
पुलिस का कहना है कि उसने 20 से ज्यादा लोगों को अपने जाल में फांसा और महाराष्ट्र या गुजरात में टेस्ट के लिए भेजा, जहां पर इस धंधे के दलाल भोपाल निवासी अंबरीश और अहमदाबाद का प्रताप काम करते थे। बताया तो यह भी जाता है कि इन लोगों ने सोशल मीडिया साइट और व्हाट्सऐप का भी इस्तेमाल अपने धंधे को बढ़ाने के लिए किया। इस मामले में तीन और लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसमें नालगोंडा के अब्दुल हफीज उर्फ कासिम, महेश और नरेश है। ये तीनों दानकर्ता हैं।
इस पूरे गोरखधंधे का खुलासा तब हुआ जब हफीज के परिवार को शक हुआ कि नौकरी छोड़ने के बाद भी उसकी लाइफस्टाइल काफी बदल गई थी। उसने कार खरीदी। उसने अपने परिवार को बताया कि उसने सुरेश के माध्यम से किडनी बेची है। इसके बाद परिवार का सुरेश से झगड़ा हुआ, जिसके बाद मामला पुलिस के पास पहुंचा।
पिछले एक महीने में केवल सुरेश के माध्यम से 15 लोगों ने अपनी किडनी बेची। इनमें चार नालगोंडा, चार हैदराबाद, चार बैंगलुरु, दो तमिलनाडु और एक-एक मुंबई तथा दिल्ली का है। एजेंट के माध्यम से पासपोर्ट और वीजा भी उपलब्ध कराया जाता है। यह सब सर्जरी कोलंबो में की गई।
बताया जाता है कि क्लाइंट से एक किडनी के 27 लाख रुपये लिए जाते थे और इसमें से आधे अस्पताल रख लेता था। बाकी रुपयों से दानकर्ता के आने जाने और रहने का खर्च आदि दिया जाता है और पांच लाख रुपये किडनी दानकर्ता को मिलते थे। कहा जाता है कि एक केस में एजेंट के 50,000 रुपये बन जाते थे।
इस गोरखधंधे में कथित रूप से कोलंबो के तीन अस्पताल लिप्त हैं। इस मामले में आईपीसी की धाराओं और एपी अंग प्रत्यर्पण कानून के तहत केस दर्ज किया गया है।
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