Coronavirus: लॉकडाउन के बीच बाहरी दिल्ली के गांवों के किसान परेशान हैं. ये किसान ज्यादातर फल और सब्जियां पैदा करते हैं. हालात ये हैं कि लॉकडाउन के चलते फल और सब्जियां खेतों में सड़ रही हैं. मजदूर नहीं है और न ही किसान की पैदावार मंडी तक पहुंच पा रही है.
बाहरी दिल्ली के सुंगरपुर गांव में स्ट्राबेरी की फसल जितनी हरी भरी दिख रही है, स्ट्राबेरी के फल का रंग उतना ही बेरंग हो गया है. लगभग पूरी फसल खेत में ही सड़ गई है. किसान सतीश कुमार ने फसल के लिए स्ट्राबेरी के पुणे से पौधे मंगाए. एक बीघा खेती के लिए करीब 80 हज़ार रुपये ख़र्च किए और 33 बीघा में स्ट्राबेरी की फसल ढाई महीने में तैयार हो गई. लेकिन जब फसल के मंडी पहुंचने का समय आया तो लॉकडाउन हो गया.
किसान सतीश कुमार ने कहा कि लॉकडाउन के कारण मंडी बन्द होने के कारण और जो हमारे यहां कंपनियां हैं, रिलायंस, बिग बास्केट, मदर डेरी, उनके कलेक्शन सेंटर थे वो भी सब बंद पड़े हैं. मंडी माल भेजा हमने एक दो बार, बिका नहीं, पड़ा रहा. आढ़ती से पूछा तो बोला ग्राहक ही नहीं है, अब लेबर नहीं है तो यहीं माल सड़ रहा है.
इसी गांव के नरेंद्र कुमार खीरा, ककड़ी और प्याज़ की खेती करते हैं. उनका कहना है कि फसल की पैदावार तो ठीक है लेकिन खरीददार नहीं. लॉकडाउन की वजह से उनकी सब्ज़ियां मंडी पहुंच नहीं पातीं. कोरोना के खौफ की वजह से वो मंडी जाते नहीं. गांव में वे छोटे दुकानदारों को औने पौने दाम में सब्ज़ियां बेच रहे हैं. नरेंद्र कुमार ने कहा कि कोरोनो की वजह से ही नुकसान हो रहा है ज्यादा. पहले जाता था 40-50 रुपये किलो, अब जा रहा है 10-12 रुपये किलो 8 रुपये किलो. खीरा, ककड़ी, प्याज़, सभी के रेट डाउन हैं.
इस गांव के बगल में दूसरे गांव तिगीपुर में पोली फार्म है जिसमें टमाटर और शिमला मिर्च की खेती हो रही है. गांव के किसान कुणाल चौहान के यहां इस बार अच्छी पैदावार तो हुई,लेकिन लॉकडाउन ने इनकी भी कमर तोड़ दी. गांव में कोई बड़ी कंपनी खरीददारी करने नहीं आ रही और और इनकी फसल मंडी नहीं पहुंच पाई. इसलिए शिमला मिर्च सड़ गई. कुणाल चौहान ने कहा कि शिमला मिर्च सब फार्म में ही खराब होने लग रही है, क्योंकि तुड़ाई नहीं हो पा रही है. तो ये सब हम तोड़ तोड़कर फेंकने लगे हैं. क्या करें इनका. नई फसल तो आए.
किसान कर्मवीर सिंह कहते हैं कि पहली बात तो ये है कि दिल्ली में फसल बोने पर हमें खाद बीज पर कोई सब्सिडी नहीं है, जबकि हरियाणा, यूपी और बाकी जगहों पर है. न मजदूर मिल रहा है. हर तरह से परेशान हो रहे हैं इस समय.
फल सब्ज़ियों की तरह गेहूं की खेती काटने के लिए फिलहाल मजदूर नहीं हैं. जिसके पास अपने हार्वेस्टर हैं वो खेती की कटाई कर रहा है. कई लोग खुद ही फसल काट रहे हैं. लेकिन शिकायत है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जो सरकार ने तय किया है, उस दर पर खरीददारी नहीं हो रही.
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