दिल्ली की केजरीवाल सरकार का एक बहुत बड़ा चुनावी वादा था, पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरे लगवाने का. इस पर अब जमीन पर काम दिखने लगा है. सीसीटीवी कैमरे लगने शुरू हो गए हैं. हालांकि इन कैमरों से लाइव मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था न होने से इस पर सवाल भी उठने लगे हैं.
दिल्ली के मोतीनगर के मनोहर पार्क डी ब्लॉक के निवासी इन दिनों खुश हैं और खुद को सुरक्षित भी महसूस कर रहे हैं क्योंकि दिल्ली सरकार ने इनके मोहल्ले में सीसीटीवी कैमरे लगवाए हैं. दिल्ली के मोतीनगर विधानसभा मनोहर पार्क डी ब्लॉक निवासी ओम प्रकाश नारंग ने बताया कि 'अब कोई डर नहीं लगता हमें. सो जाओ ठाठ से आराम से. कैमरा पर रिकॉर्डिंग हो ही रही है. कोई बंदा गैर भी आएगा बाहर से तो अपने आप रिकॉर्डिंग हो जाएगी. अब हमें डर नहीं हैं.' ऐसी ही राय प्रभा वर्मा की है जिनके मुताबिक 'सीसीटीवी कैमरा लगने के बाद हमारे अंदर कॉन्फिडेंस आ गया है कि एक ऐसी आंख है जिसकी हमेशा चोरों पर नजर है या किसी गलत एक्टिविटी के ऊपर, और मुझे नहीं लगता अब आगे कुछ होगा गड़बड़ और बाक़ी सब ठीक चल रहा है.'
क्या है योजना?
सीसीटीवी कैमरा लगवाना मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का चुनावी वादा था. इसलिए दिल्ली सरकार का पीडब्ल्यूडी विभाग दिसंबर तक दिल्ली में पहले चरण में 1,40,000 सीसीटीवी कैमरे लगाने के काम में जुटा है. अभी तक चार विधानसभा क्षेत्रों में करीब 1300 सीसीटीवी कैमरे लगाए जा चुके हैं. हर विधानसभा क्षेत्र में 2,000 कैमरे लगने हैं जिनका सर्वे विधायक RWA के साथ मिलकर करवा रहे हैं. दिल्ली के मोती नगर से आम आदमी पार्टी विधायक ने कहा कि 'जब इसका पता लगा हमारे क्षेत्र में कि सीसीटीवी लग रहे हैं तो पूरे क्षेत्र के निवासी कह रहे हैं कि जहां लग रहे हैं लग रहे हैं, हमारे यहां भी लगाओ क्योंकि सिक्योरिटी हर आदमी चाहता है. चाहे महिलाएं हैं, बुजुर्ग हैं, बच्चे हैं आज सिक्योरिटी सबसे पहले हैं.'
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क्या है सीसीटीवी का सिस्टम?
दिल्ली सरकार सूत्रों के मुताबिक सीसीटीवी वीडियो देखने का अधिकार केवल 5 लोगों को होगा- RWA अध्यक्ष, स्थानीय PWD अधिकारी, सीसीटीवी लगाने वाली कंपनी BEL, लोकल पुलिस थाने के SHO और PWD कंट्रोल रूम. सीसीटीवी से छेड़छाड़ होने या खराब होने पर सबको SMS जाएगा. किसी खराबी की सूरत में कैमरा लगाने वाली कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) 24 घंटे के भीतर इसको ठीक कराएगी नहीं तो 500 रुपये प्रति कैमरा रोज़ाना की पेनाल्टी लगेगी. सीसीटीवी चार मेगापिक्सेल कैमरा है, जो रात में देखने मे सक्षम है. लेकिन सबसे अहम बात है कि सीसीटीवी की लाइव मॉनिटरिंग नहीं होगी जिसके चलते जानकार इस पूरी योजना के उद्देश्य पर सवाल उठा रहे हैं. पूछ रहे हैं कि अगर कुछ अनहोनी हुई तो सबसे पहले एक्शन लेने की ज़िम्मेदारी किसकी होगी?
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लाइव मॉनिटरिंग न होना बड़ा सवाल
नागरिक अधिकारों पर काम करने वाली संस्था URJA के सीईओ आशुतोष दीक्षित के मुताबिक 'महज़ कैमरे लगा देना और 5 लोगों को उसका एक्सेस दे देना, कि जब वह लोग चाहे तो फुटेज को एक्सेस कर सकें, से होगा क्या? पहला रिस्पांडर कौन होगा. अगर मान लीजिए एक क्राइम होता है या कोई सड़क पर वारदात हो जाती है या मोब वाईलेंस हो जाती है या सड़क पर ट्रैफिक जमा हो जाता है तो इसमें पहले रिस्पॉन्ड करने की ज़िम्मेदारी किसकी है? कौन रिस्पांड करेगा? क्या इसकी फुटेज किसी को देखना अनिवार्य है? क्या ये पुलिस का ज़िम्मा है? क्या थाने में ज़रूरी सर्विलांस स्टेशन लगा होगा जहां पुलिस एकदम रिस्पांड करेगी या फिर जब मर्ज़ी आएगी RWA वाले, या विधायक या PWD से कोई पुलिस को इन्फॉर्म करेगा? तब तक तो वारदात हो चुकी होगी. तो क्या यह सिस्टम किसी घटना को रिकॉर्ड करने और सबूत जुटाने का तरीका है या फिर अपराध को रोकने का एक हथियार है? इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है और मुझे लगता है सरकार यह साफ़ करे कि इतनी अहम और इतनी बड़ी योजना के पीछे उसका उद्देश्य क्या है?'
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