दस साल पहले उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी में मंजूनाथ की हत्या कर दी गई थी। दस साल बाद भी लखनऊ स्थित भारतीय प्रबंध संस्थान के कैंपस में मंजूनाथ ज़िंदा हैं। 21 घंटे तक लगातार काम करते हुए जब छात्रों ने रूबिक क्यूब से उनके चेहरे का कोलाज बनाया होगा, तब उन्होंने हर पल मंजूनाथ को जीया होगा। महसूस किया होगा वर्ना चौकोर रूबिक क्यूब से मंजू सर की तस्वीर का अंडाकार कोलाज बन ही नहीं सकता था। मंजूनाथ ने यूपी के लखीमपुर खीरी में एक भ्रष्ट पेट्रोल पंप को सील कर दिया था, लेकिन इंडियन ऑयल कार्पोरेशन के इस ईमानदार अफसर को हत्यारों ने मार दिया।
शनिवार को आईआईएम लखनऊ गया था। छात्रों को सबसे अधिक दिलचस्पी और जल्दबाज़ी मंजूनाथ के कोलाज को दिखाने की थी। अपने इस जांबाज सीनियर पर बनी कृति को दिखाने के लिए वे न सिर्फ बेचैन थे, बल्कि उनके चेहरे पर मंजू सर के लिए खूब सारा प्यार भी झलक रहा था। "सर हमने 21 घंटे तक लगातार काम किया। सोए भी नहीं। यहीं खुले आसमान के नीचे गद्दे बिछाकर सोते रहे कि कहीं कुत्ते कोलाज से छेड़छाड़ न कर दें।" मुझे कोलाज तक ले जाते हुए हर छात्र कुछ न कुछ कहना चाहता था। मनी और नंदिनी एयरपोर्ट के लिए निकलने से पहले अपने कैंपस के इस कमाल को दिखा ही देना चाहते थे।
"23 फ़रवरी, 1978 मंजू सर का जन्मदिन है। इसलिए हमने 23278 रूबिक क्यूब से उनकी तस्वीर बनाने की सोची। पांचू, मनीष और तनुज ने सोचा कि क्यूब से मंजूनाथ के चेहरे का मोज़ेक (कोलाज) बनाते हैं ताकि ईमानदारी और निष्ठा के आदर्श को सभी तक पहुंचाया जा सके। जिसके लिए मंजूनाथ ने जान दे दी। पंचू रूबिक क्यूब के माहिर माने जाते हैं। पंचू और मनीष की कल्पना को आईआईएम लखनऊ की ही छात्रा खुश्बू ने कंप्यूटर पर उतार दिया। फोटोशॉप के ज़रिये देखा गया कि हज़ारों क्यूब से मंजूनाथ का अंडाकार चेहरा कैसे बनेगा। किस कोने से कितना क्यूब लगाया जाएगा इसके लिए काग़ज़ पर रूपरेखा तैयार की गई और टीम बना दी गई।
क्यूब में छह रंग होते हैं। सफेद, पीला, नीला, लाल, नारंगी और हरा। मंजूनाथ के चेहरे के हर पिक्सेल यानी हिस्से का किसी न किसी रंग से नक़्शा तैयार हुआ। कंप्यूटर पर बनी इस छवि को एक्सेल शीट पर उतारा गया। एक्सेल शीट के हर खांचे को एक रंग दिया गया। मंजूनाथ के चेहरे को कई हिस्से में बांटकर कई माइक्रो इमेज बनाई गईं। वॉलेंटियर के कई दल बने और उन्हें ट्रेनिंग दी गई। कैंपस में मौजूद रूबिक क्यूब के सभी दीवानों को जमाकर काम शुरू कर दिया गया। टीम के छात्र क्लास भी करते रहे और कई शिफ़्ट में काम भी। मिलजुल कर जो कोलाज बना है वो वाक़ई देखने लायक है। 18 नवंबर से काम शुरू हुआ और 19 नवंबर के दिन मंजूनाथ का मुस्कुराता हुआ चेहरा कैंपस में फैल गया। उसी दिन उनकी हत्या हुई थी।
बाद में छात्रों ने कैंडल मार्च भी निकाला और ईमानदारी से काम करने का प्रण किया। अपने इस जांबाज सीनियर के लिए छात्रों के चेहरे पर जो प्रेम की गहराई दिखी वो मुझे भीतर तक भिगा गई। हमारे युवा वाक़ई बहुत अच्छे हैं। कुछ लोगों का समूह हर जगह मिल जाता है जो भीतर और बाहर फैली निराशा को तोड़ देता है। कुछ की ही तो ज़रूरत है और उतने तो हैं ही। जैसे मंजूनाथ तो अकेले ही थे। ये क्या कम है कि उनके जूनियर कुछ कुछ मंजूनाथ सा होना चाहते हैं।
This Article is From Nov 22, 2015
मंजूनाथ आज भी ज़िंदा हैं
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 22, 2015 10:16 am IST
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Published On नवंबर 22, 2015 09:21 am IST
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Last Updated On नवंबर 22, 2015 10:16 am IST
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