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बांग्लादेश की स्थिरता भारत के लिए ज़रूरी क्यों...?

Harish Chandra Burnwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 07, 2024 14:02 pm IST
    • Published On अगस्त 07, 2024 14:02 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 07, 2024 14:02 pm IST

पड़ोसी देश बांग्लादेश में घटनाक्रम जिस तेज़ी से बदल रहा है, उसे देखते हुए पूरी दुनिया की नज़र भारत पर टिकी है. बांग्लादेश के लिए आने वाला समय कैसा होगा, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है, मगर इस खेल में लगी तमाम शक्तियों को पता है कि भारत की रणनीति इसकी दिशा और दशा तय कर सकती है. जिस प्रकार बांग्लादेश में तख्तापलट की कहानी सामने आ रही है, वह एक सुनियोजित योजना का हिस्सा नज़र आता है, ताकि सत्ता का हस्तांतरण तेज़ी से हो सके. वही हुआ भी है.

5 अगस्त को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इस्तीफ़ा देती हैं और निर्णय लेती हैं कि देश की स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए वह तुरंत बांग्लादेश छोड़ रही हैं. यह निर्णय उस प्रधानमंत्री का है, जो पिछले 15 साल से देश पर बहुमत की सरकार के साथ शासन करती आ रही थी. इतना ही नहीं, शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश आर्थिक रूप से मज़बूत राष्ट्र बनने की दिशा में भी बढ़ रहा था. प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस निर्णय को देश के सेनाध्यक्ष वकार उर ज़मान ने भी हरी झंडी दे दी और उन्हें देश से जाने के लिए बांग्लादेश वायुसेना का सी-130 जे एयरक्राफ्ट भी उपलब्ध करा दिया. इस एयरक्राफ्ट से सेना ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश की सीमा तक सुरक्षित पहुंचाया और फिर वहां से भारतीय वायुसेना के दो राफेल विमानों के सुरक्षा घेरे में वह उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित हिंडन एयरबेस पहुंचीं. यहां उनका स्वागत भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने किया.

बांग्लादेश सेना की भूमिका

बांग्लादेश में जून से ही सरकारी नौकरियों में आरक्षण के ख़िलाफ़ सड़कों पर ज़बरदस्त प्रदर्शन और हिंसा चल रही है. इस हिंसा के पीछे बांग्लादेश कोर्ट का वह निर्णय है, जिसमें न्यायालय ने सरकार के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें सरकार ने सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों के लिए 30 प्रतिशत के आरक्षण को खत्म कर दिया था. सड़कों पर आरक्षण के खिलाफ लगी इस आग को शांत करने के लिए प्रधानमंत्री शेख हसीना ने पुलिस की कार्रवाई को तेज़ कर दिया, लेकिन हिंसा और प्रदर्शन थम नहीं रहे थे.

आखिरकार, प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सेना को सड़क पर उतारने के बारे में सोचा, लेकिन इसके लिए सेनाध्यक्ष तैयार नहीं हुए. दरअसल सेनाध्यक्ष वकार उर ज़मान समझते थे कि इस बेकाबू हिंसक भीड़ को रोकने में सेना फंस सकती है. इसी स्थिति में सेनाध्यक्ष के साथ मिलकर शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर देश छोड़ने का कदम उठाया और स्थिति को काबू में करने की ज़िम्मेदारी सेना को दे दी. इस निर्णय के तहत सेनाध्यक्ष ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को सकुशल देश छोड़ने के लिए बांग्लादेश वायुसेना का एयरक्राफ्ट उपलब्ध करवाया. बांग्लादेश में हर घंटे बदलती हुई परिस्थितियों में सेना ही वह धुरी है, जिसकी ताकत पर बांग्लादेश में शांति और स्थायित्व लौट सकता है.

बांग्लादेश के हालात और भारत

बांग्लादेश में शांति और स्थायित्व का सीधा असर भारत की सुरक्षा से जुड़ा है, इसलिए यह बांग्लादेश का अंदरूनी मामला होते हुए भी भारत के लिए अहम मामला बन जाता है, क्योंकि बांग्लादेश हर तरफ से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों से जुड़ा हुआ है. बांग्लादेश की स्थिति का सीधा प्रभाव इन राज्यों पर पड़ता है. यही कारण है कि जैसे ही बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफ़ा देने और देश छोड़ने का निर्णय लिया, भारत ने सबसे पहले अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए BSF को अलर्ट किया और तुरंत ही BSF के डायरेक्टर जनरल दलजीत सिंह चौधरी को सीमा के हालात का जायज़ा लेने रवाना कर दिया.

घटनाएं बांग्लादेश में हो रही थीं, लेकिन भारत के विदेशमंत्री एस. जयशंकर सीधा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पल-पल की सूचना दे रहे थे. वहीं, विदेशमंत्री ने प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी से मिलकर भी बांग्लादेश की स्थिति के बारे में जानकारी दी. शाम होते-होते बांग्लादेश के मुद्दे पर सुरक्षा मामलों की कैबिनेट बैठक हुई, जिसमें रक्षामंत्री, गृहमंत्री, विदेशमंत्री, वित्तमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शामिल हुए. दूसरे दिन सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें सभी दलों के नेताओं को बांग्लादेश की स्थिति के बारे में जानकारी देने के लिए विदेशमंत्री और रक्षामंत्री पहुंचे. यही नहीं, विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने लोकसभा में बांग्लादेश की स्थिति पर देश को विस्तृत जानकारी दी. बांग्लादेश के मामले में सरकार का एक्टिव मोड बताता है कि वहां का मामला भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है.

1971 में बांग्लादेश की उत्पत्ति में भारत की बहुत बड़ी भूमिका रही है और भारतीय सेना के सहयोग से ही मुक्तिवाहिनी ने बांग्लादेश को स्वतंत्र कराया था. लेकिन एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश भारत के लिए चुनौती बना रहा है, क्योंकि पाकिस्तान और चीन बांग्लादेश को भारत के प्रभाव से अलग करने का लगातार प्रयास करते रहे हैं. इस प्रयास में कभी वे सफल भी हुए, तो कभी उनकी एक नहीं चली. पिछले 15 साल से प्रधानमंत्री शेख हसीना के दौर में बांग्लादेश में उनकी दाल नहीं गल रही थी.

प्रधानमंत्री शेख हसीना स्वतंत्र नीति अपनाते हुए चीन और पाकिस्तान से अधिक भारत के हितों का ध्यान रखती रहीं और भारत शेख हसीना को हर तरह से समर्थन देता रहा है. तीस्ता प्रोजेक्ट में चीन के ऊपर भारत को तरजीह दिया जाना इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है. आज बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था और इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में भारत का बड़ा योगदान है. यही नहीं, बांग्लादेश की सेना के साथ भी भारत का गहरा सहयोग है. आज बांग्लादेश जिन परिस्थितियों से गुज़र रहा है, उनमें बांग्लादेश की सेना को ही महत्वपूर्ण फैसले लेने हैं. चाहे वह अंतरिम सरकार में शामिल होने वाले लोगों के बारे में निर्णय लेना हो या अन्य कोई आर्थिक या सैन्य फैसला.

अनिश्चय के माहौल में भ्रम का जाल

15 साल से बांग्लादेश जिस अनिश्चितता के दौर से दूर था, उस दौर में वह कुछ ही दिनों में प्रवेश कर गया है. अनिश्चय का माहौल भ्रम तो पैदा करता ही है, सो, बांग्लादेश को लेकर इस समय कुछ वैसा ही माहौल है, जैसा 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े से हुआ था और 2022 में श्रीलंका में राष्ट्रपति राजपक्षे के ख़िलाफ़ जनता के सड़क पर उतरने से हुआ था. अफगानिस्तान और श्रीलंका की तरह ही बांग्लादेश में बदली हुई स्थिति भारत की विदेश नीति और कूटनीति के लिए चुनौती है. लेकिन पिछले अनुभव बताते हैं कि भारत इन चुनौतियों से पार पाने में सक्षम है. इस चुनौती के बीच भारत को पाकिस्तान और चीन के साथ-साथ पश्चिमी देशों की कूटनीतिक रणनीतियों का भी जवाब देना है. यह जवाब उन चालों और साज़िशों का होगा, जो आने वाले दिनों में बांग्लादेश में चली और रची जाएंगी.

चीन और पाकिस्तान की मंशा

चीन और पाकिस्तान सीमा विवादों के ज़रिये भारत की सीमाओं को हर समय संवेदनशील स्थिति में बनाए रखने के प्रयास में लगे हुए हैं. अपने मंसूबों में अक्सर नाकाम रहने के बावजूद पाकिस्तान जम्मू एवं कश्मीर में किसी न किसी तरीके से आतंकवादी वारदात की साज़िश में जुटा रहता है. वहीं, चीन भी भारत को सीमा पर उलझाए रखने के लिए सीमा विवाद की वार्ता को पिछले पांच साल से लटकाए हुए है. ज़ाहिर है, इसी वजह से सीमा पर हज़ारों सैनिकों की तैनाती लगातार बनी हुई है. अब चीन और पाकिस्तान चाहते हैं कि बांग्लादेश में मौजूद भारत-विरोधी ताकतों को खड़ा कर भारत की एक और सीमा को संवेदनशील बना दिया जाए.

पश्चिमी देशों की भूमिका

बांग्लादेश में लगातार 15 साल से शेख हसीना जिस तरह चुनाव जीतकर सत्ता में आ रही थीं, उससे अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन के देशों को लोकतंत्र और मानवाधिकारों की चिंता सता रही थी. वे मानते थे कि शेख हसीना की सरकार अलोकतांत्रिक तरीके से शासन चलाती है, जिसके नाम पर वे लगातार इस सरकार का विरोध करते रहते थे. इसीलिए शेख हसीना को लेकर पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया नकारात्मक दिखाई देती है.

इन तमाम परिस्थितियों के बीच बांग्लादेश में पैदा हुई इस अराजक स्थिति के लिए बांग्लादेश में मौजूद वे ताकतें ज़िम्मेदार हैं, जो शेख हसीना के काम करने के तरीके से नाराज़ थीं और चाहती थीं कि वह किसी तरह सत्ता छोड़ दें. लेकिन शेख हसीना के इस तरह सत्ता छोड़ने पर देश के क्या हालात होंगे, इसका अंदाज़ा उन्हें नहीं था. उन्हें यह भी अहसास नहीं है कि सत्ता के इस संघर्ष में बांग्लादेश जिस अनिश्चितता के दौर में पहुंच गया है, उससे वह कब तक बाहर निकलेगा. ज़ाहिर है, बांग्लादेश की मौजूदा उथल-पुथल में भारत को हर कदम फूंक-फूंककर रखने की ज़रूरत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत वही कर भी रहा है.

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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