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This Article is From May 09, 2015

सिर्फ सलमान पर हाय-तौबा क्यों?

Sunil Kumar Singh
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 09, 2015 17:54 pm IST
    • Published On मई 09, 2015 17:36 pm IST
    • Last Updated On मई 09, 2015 17:54 pm IST
गैरइरादतन हत्या के दोषी और 5 साल की सजा पाए अभिनेता सलमान खान को तुरंत जमानत मिल जाने पर हर तरफ इस तरह हाय-तौबा मची है, जैसे इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। सोशल मीडिया पर ही नहीं अखबारों और टीवी में भी ये सवाल पूछा जाने लगा है कि क्या न्यायपालिका इतनी ही तेजी आम आदमी के मामलों भी दिखती है?

तो मेरा जवाब है नही... बेचारे आम आदमी की तो फाइल ही बोर्ड पर आने में महीनो और कभी-कभी सालों  लग जाते है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि सलमान को मिली जमानत नियमों को ताक पर रखकर मिली है। कानून में 7 साल तक की सजा पाए मुजरिमों के लिए जमानत का प्रावधान है।

बॉम्बे हाईकोर्ट के बड़े वकीलों के साथ खुद विशेष सरकारी वकील उज्जवल निकम भी इसे गलत नहीं मानते। हाईकोर्ट के वकील नीलेश पावस्कर ने एक दिन पहले ही बाकायदा कैमरे पर कहा था कि मेरिट के आधार पर भी देंखे तो सलमान की अपील एडमिट होने और जमानत आगे बढ़ने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। उन्होंने इसके लिए 4 बातें गिनाई थी, जो सलमान के हक़ में थी। पहली वो शुरू से जमानत पर हैं। दूसरी सलमान ने कभी जमानत की शर्तों का उलंघन नहीं किया। तीसरे उन्हें जो सजा हुई है वो सिर्फ 5 साल है और चौथी सलमान का यहां घर-परिवार और व्यवसाय है यानी उनके भागने की संभावना काफी कम है। और हुआ भी वही।

मुझे याद है साल 2006 में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अधिकारी दया नायक पर जब आय से अधिक संपत्ति का मामला चल रहा था तब सत्र न्यायालय ने उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी ख़ारिज कर दी थी। तब दोपहर 1 बजे का वक्त था, लगा कि अब उनकी गिरफ़्तारी तय है। लेकिन उसी दिन उनके वकील श्याम मारवाड़ी की टीम ने अपने कुशल नियोजन का परिचय देते हए तक़रीबन 3 बजे ही बॉम्बे हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगवाने में सफल हो गए थे।

मतलब सलमान की जमानत वकील श्रीकांत शिवदे की टीम के बेहतरीन नियोजन का नतीजा है। हां ये बात सही है कि बड़े वकीलों की फ़ौज खड़ी करने के लिए धन की दरकार होती है। अभिनेता सलमान के पास उनका अपना एक चेहरा भी है और पानी की तरह बहाने के लिए पैसा भी। इसलिए हम ये मान भी लें कि सब कुछ पैसे का कमाल है तो गलत नहीं होगा। अगर सलमान के पास पैसा नहीं होता तो वकीलों की इतनी बड़ी फ़ौज और हरीश साल्वे व अमित देसाई जैसे बड़े वकीलों को अपने लिए खड़ा नहीं कर पाते। यानी 'ना नौ मन तेल होता ना राधा नाच पाती।'

मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त और वर्तमान बीजेपी सांसद डॉक्टर सत्यपाल सिंह ने बयान दिया है कि अमीरों के सामने गरीबों को न्याय नहीं मिलता। बड़ा सवाल है कि ऐसा क्या सिर्फ न्यायपालिका में होता है? दूसरे सरकारी महकमों और पुलिस में क्या पहुंच और रुपया नहीं बोलता? बेचारा गरीब आदमी तो अपने हक़ की पेंशन लेने के लिए भी सरकारी दफ्तर के चक्कर लगा-लगा कर थक जाता है। जबकि पैसे और पहुंच वाले कौड़ी के दाम पर करोड़ों की सरकारी जमीन तक हड़प कर जाते है। आम आदमी को पुलिस स्टेशन में चोरी की एक  एफआईआर तक लिखवाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है, दूसरों से फोन करवाना पड़ता है।

डॉक्टर सत्यपाल सिंह जिस पुलिस के मुखिया रह चुके हैं। उसी पुलिस के जवान अदालातों में पेशी पर आए अंडरवर्ल्ड और पैसे वाले आरोपियों को बाहर का खाना खाने से लेकर सिगरेट पीने और अपनों से घंटों बात तक करने का पूरा मौका देते हैं। जबकि गरीब आरोपियों के परिवार वालों को जल्दी बात तक करने नहीं देते। यहां फुटपाथ बनते तो आम लोगों के चलने के लिए हैं, लेकिन उस पर लोग नहीं चल पाते। अवैध धंधे वाले उस पर कब्ज़ा जमाए रहते हैं। जिन पर अवैध निर्माण या कब्ज़ा रोकने या हटाने की जिम्मेदारी है वो ही रुपये लेकर उन्हें बैठाते और बचाते हैं। राजनीतिक पार्टियां भी तो टिकट देने के लिए खास लोगों की ही तलाश करती हैं।

कहने का मतलब ये कि इस देश का पूरा सिस्टम ही कुछ ऐसा बन चुका है जहां आम आदमी के लिए कांटे ही कांटे है और धनवानों और रसूखदारों के लिए लाल कालीन बिछा हैं। सवाल है सरकारी महकमों, पुलिस और न्यायपालिका में काम करने वालों में ज्यादातर आम परिवार से आने वाले ही हैं। लेकिन वही आम आदमी जब ओहदे पर होता है तो वो खुद खास बन जाता है और खास आदमी की सेवा करना ही अपना फर्ज समझता है।

सलमान खान के घर के सामने हजारों की तादाद में जमा उनके प्रशंशक भी तो आम आदमी ही थे। उनमें से कुछ तो सलमान की बजाय खुद ही जेल में जाने को तैयार थे। ये जानते हुए भी कि सलमान खान की वजह से एक शख्स की मौत हुई है और 4 जख्मी हैं। हैरानी की बात है कि खुद पीड़ित परिवार भी सलमान को सजा दिलाने में रूचि नहीं रखते हैं। वो तो बस अपने लिए कुछ मदद चाहते हैं।

ऐसे में अब अगर सलमान खान जैसे लोग इसका फायदा उठाते हैं तो दोष किसे दें और इतनी हाय-तौबा क्यों?

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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