बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार पटना यात्रा पर आए अमित शाह ने जो संवाददाता सम्मलेन को संबोधित किया, उसके बाद सब इस सवाल का जवाब खोज रहे हैं कि अमित शाह को गुस्सा क्यों आता है...
अमित शाह को दिल्ली में अपनी पार्टी के खिलाफ आने वाले हर सर्वेक्षणों से नाराजगी नहीं है, बल्कि उन्हें उस सर्वे को दिखाने वाले चैनल पर गुस्सा आता है। और वह चैनल का नाम लेकर अपना फैसला सुनाते हैं कि फलां चैनल पक्षपाती है और अमुक पार्टी का एजेंडा उसने लिया है। यह अमित शाह का नया चेहरा हैं, जो पटना में दिखा।
विभिन्न राजनेता और खुद बीजेपी के नेता मानते हैं कि जब अखबार या चैनल का नाम लेकर आलोचना हो, तो उसका मतलब आपका फीडबैक सिस्टम प्रतिकूल रिपोर्ट दे रहा है और आप अपने खराब प्रदर्शन का ठीकरा मीडिया पर फोड़ रहे हैं।
अमित शाह बीजेपी के रातोंरात सदस्य बनने के बाद उसके इतिहास में मुख्यमंत्री की उम्मीदवार बनने का रिकॉर्ड बनानेवाली किरण बेदी के बारे में भी सवाल किए जाने पर उखड़ जाते हैं। इसका कोई संतोषजनक जवाब न देकर वह यह कहकर निकल जाते हैं कि इससे संबंधित सवालों का जवाब उन्होंने दिल्ली में दे दिया है।
दरअसल, बीजेपी के हर वरिष्ठ नेता हर राज्य में इस नए प्रयोग से खफा हैं और अमित शाह को मालूम है कि उनका यह दांव अगर काम नहीं कर पाया, तो संसदीय दल में उनके निर्णय पर सवाल करने वालों की संज्ञा बढ़ेगी।
हां, एक बात तय है कि बिहार के लिए नरेंद्र मोदी ने जो वादा किया था कि उनकी सरकार बनने के बाद विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा, विशेष आर्थिक पैकेज दिया जाएगा, वह अब शाह के शब्दों में "अच्छी सरकार आने के बाद पूरा किया जाएगा"। लेकिन अमित शाह को इस बात पर गुस्सा आता है, जब उनसे कोई पूछ लेता है कि आखिर यह अच्छी और खराब सरकार का निर्णय किस आयोग ने किया।
अब अमित शाह के गुस्से का आखिरी कारण है, उनका अपना बयान। जहां वह लालू और नीतीश के गठबंधन को अनैतिक बताते हैं, वहीं उनसे कश्मीर में पीडीपी के साथ तालमेल और सरकार बनाने की कवायद के बारे में पूछने पर कि ये नैतिक है या अनैतिक, क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने बाप-बेटे और पीडीपी के कर्ता-धर्ता बाप-बेटी के खिलाफ प्रचार और जनादेश दोनों मांगा था। फिलहाल तो लगता है कि अमित शाह भविष्य में पटना में किसी संवाददाता सम्मलेन करने से जरूर बचना चाहेंगे।